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'हिंदी के लिए गूगल हिंदी इनपुट और सोशल मीडिया का योगदान आदरणीय है' - professor

प्रोफेसर चंद्रदेव यादव ने हिंदी दिवस पर कहा कि गूगल हिंदी इनपुट और सोशल मीडिया का हिंदी के लिए योगदान आदरणीय है.

हिन्दी दिवस पर प्रो चंद्रदेव से खास बातचीत
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Published : Sep 14, 2019, 8:21 PM IST

नई दिल्ली: वर्तमान समय में हिंदी को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या क्लिष्ट शब्द हिंदी की जरूरत हैं या इनकी अनिवार्यता है और क्या इसे आम लोगों की भाषा बने रहने के लिए और आसान नहीं बनाया जाना चाहिए? इसे लेकर सवाल करने पर चंद्रदेव यादव का कहना था हिंदी को अनुवाद की भाषा के दायरे से बाहर निकाला जाना चाहिए.

हिन्दी दिवस पर प्रो चंद्रदेव से खास बातचीत

उन्होंने कहा कि हमारे यहां आज रेलवे स्टेशनों हो या बैंकों में जिस तरह की हिंदी प्रयुक्त होती है, वो अनुवाद की भाषा है ना कि आम लोगों वाली हिंदी. उन्होंने कहा कि हिंदी को अगर आम लोगों से जोड़े रखना है और इसे बढ़ावा देते रहना है, तो हिंदी को अनुवादिका भाषा से बाहर निकालना पड़ेगा.


'सभी भाषाएं अलग होती हैं'
जिस तरह विभिन्न भाषाओं के शब्दों को हिंदी के साथ जोड़कर प्रयोग में लाया जाता है, इसे लेकर भी चंद्रदेव यादव ने नाखुशी जाहिर की. उनका कहना था कि सभी भाषाएं अपने अलग-अलग रूप में अलग-अलग होती हैं और इन्हें किसी तरह मिश्रित नहीं किया जाना चाहिए, ऐसा करने और न तो यह कर्णप्रिय होता है और न ही व्याकरण की दृष्टि से सही होता है. उन्होंने कहा अगर अनुशासन की बात करते हैं तो सभी जगह अनुशासन होनी चाहिए और अनुशासन भाषा और व्याकरण में भी जरूरी है.

'मूलरूप को बनाए रखने की जरूरत'
वर्तमान समय में हिंदी को लेकर सबसे बड़ी चर्चा का विषय ये है कि सोशल मीडिया की भाषा असली हिंदी नहीं है और इसे बहुत लोग स्वीकार भी नहीं करते हैं. लेकिन प्रोफेसर चंद्रदेव यादव की राय इससे अलग है. उनका कहना था कि गूगल हिंदी इनपुट और सोशल मीडिया का हिंदी के लिए योगदान आदरणीय है.
उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि मैं बहुत से अपने लेख अपनी किताबें मोबाइल या लैपटॉप पर जल्दी टाइप कर लेता हूं, क्योंकि हमारे पास गूगल हिंदी इनपुट है.

कुल मिलाकर चंद्रदेव यादव का यह कहना था कि हिंदी जिस तरह हमारी सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी रही है, इसे देखते हुए हम इसे इसके मूल स्वरूप में रखकर भी वर्तमान में आधुनिकता से जोड़ सकते हैं और ऐसा हो भी रहा है, जो वर्तमान में हिंदी की सार्थकता को प्रतिबिंबित करता है.

नई दिल्ली: वर्तमान समय में हिंदी को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या क्लिष्ट शब्द हिंदी की जरूरत हैं या इनकी अनिवार्यता है और क्या इसे आम लोगों की भाषा बने रहने के लिए और आसान नहीं बनाया जाना चाहिए? इसे लेकर सवाल करने पर चंद्रदेव यादव का कहना था हिंदी को अनुवाद की भाषा के दायरे से बाहर निकाला जाना चाहिए.

हिन्दी दिवस पर प्रो चंद्रदेव से खास बातचीत

उन्होंने कहा कि हमारे यहां आज रेलवे स्टेशनों हो या बैंकों में जिस तरह की हिंदी प्रयुक्त होती है, वो अनुवाद की भाषा है ना कि आम लोगों वाली हिंदी. उन्होंने कहा कि हिंदी को अगर आम लोगों से जोड़े रखना है और इसे बढ़ावा देते रहना है, तो हिंदी को अनुवादिका भाषा से बाहर निकालना पड़ेगा.


'सभी भाषाएं अलग होती हैं'
जिस तरह विभिन्न भाषाओं के शब्दों को हिंदी के साथ जोड़कर प्रयोग में लाया जाता है, इसे लेकर भी चंद्रदेव यादव ने नाखुशी जाहिर की. उनका कहना था कि सभी भाषाएं अपने अलग-अलग रूप में अलग-अलग होती हैं और इन्हें किसी तरह मिश्रित नहीं किया जाना चाहिए, ऐसा करने और न तो यह कर्णप्रिय होता है और न ही व्याकरण की दृष्टि से सही होता है. उन्होंने कहा अगर अनुशासन की बात करते हैं तो सभी जगह अनुशासन होनी चाहिए और अनुशासन भाषा और व्याकरण में भी जरूरी है.

'मूलरूप को बनाए रखने की जरूरत'
वर्तमान समय में हिंदी को लेकर सबसे बड़ी चर्चा का विषय ये है कि सोशल मीडिया की भाषा असली हिंदी नहीं है और इसे बहुत लोग स्वीकार भी नहीं करते हैं. लेकिन प्रोफेसर चंद्रदेव यादव की राय इससे अलग है. उनका कहना था कि गूगल हिंदी इनपुट और सोशल मीडिया का हिंदी के लिए योगदान आदरणीय है.
उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि मैं बहुत से अपने लेख अपनी किताबें मोबाइल या लैपटॉप पर जल्दी टाइप कर लेता हूं, क्योंकि हमारे पास गूगल हिंदी इनपुट है.

कुल मिलाकर चंद्रदेव यादव का यह कहना था कि हिंदी जिस तरह हमारी सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी रही है, इसे देखते हुए हम इसे इसके मूल स्वरूप में रखकर भी वर्तमान में आधुनिकता से जोड़ सकते हैं और ऐसा हो भी रहा है, जो वर्तमान में हिंदी की सार्थकता को प्रतिबिंबित करता है.

Intro:आज देश विश्व हिंदी दिवस मना रहा है और ऐसे में हिंदी को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं चल रही हैं. इन्हीं कुछ चर्चाओं को।लेकर हमने बातचीत की जामिया में हिंदी के प्रोफेसर और प्रमुख हिंदी आलोचक चंद्रदेव यादव से.


Body:नई दिल्ली: वर्तमान समय में हिंदी को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या क्लिष्ट शब्द हिंदी की जरूरत हैं या इनकी अनिवार्यता है और क्या इसे आम लोगों की भाषा बने रहने के लिए और आसान नहीं बनाया जाना चाहिए? इसे लेकर सवाल करने पर चंद्रदेव यादव का कहना था हिंदी को अनुवाद की भाषा के दायरे से बाहर निकाला जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि हमारे यहां आज रेलवे स्टेशनों हो या बैंकों में जिस तरह की हिंदी प्रयुक्त होती है, वो अनुवाद की भाषा है ना कि आम लोगों वाली हिंदी. उन्होंने कहा कि हिंदी को अगर आम लोगों से जोड़े रखना है और इसे बढ़ावा देते रहना है, तो हिंदी को अनुवादिका भाषा से बाहर निकालना पड़ेगा.

जिस तरह विभिन्न भाषाओं के शब्दों को हिंदी के साथ जोड़कर प्रयोग में लाया जाता है, इसे लेकर भी चंद्रदेव यादव ने नाखुशी जाहिर की. उनका कहना था कि सभी भाषाएं अपने अलग-अलग रूप में अलग-अलग होती हैं और इन्हें किसी तरह मिश्रित नहीं किया जाना चाहिए, ऐसा करने और न तो यह कर्णप्रिय होता है और न ही व्याकरण की दृष्टि से सही होता है. उन्होंने कहा अगर अनुशासन की बात करते हैं तो सभी जगह अनुशासन होनी चाहिए और अनुशासन भाषा और व्याकरण में भी जरूरी है.

वर्तमान समय में हिंदी को लेकर सबसे बड़ी चर्चा का विषय यह है कि सोशल मीडिया की भाषा असली हिंदी नहीं है और इसे बहुत लोग स्वीकार भी नहीं करते हैं. लेकिन प्रोफेसर चंद्रदेव यादव की राय इससे अलग है. उनका कहना था कि गूगल हिंदी इनपुट और सोशल मीडिया का हिंदी के लिए योगदान आदरणीय है. उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि मैं बहुत से अपने लेख अपनी किताबें मोबाइल या लैपटॉप पर जल्दी टाइप कर लेता हूं, क्योंकि हमारे पास गूगल हिंदी इनपुट है.


Conclusion:कुल मिलाकर चंद्रदेव यादव का यह कहना था कि हिंदी जिस तरह हमारी सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी रही है, इसे देखते हुए हम इसे इसके मूल स्वरूप में रखकर भी वर्तमान में आधुनिकता से जोड़ सकते हैं और ऐसा हो भी रहा है, जो वर्तमान में हिंदी की सार्थकता को प्रतिबिंबित करता है.
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