नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने सोमवार को कहा कि सामान्य तरीके से स्पर्श करने को पेनिट्रेटिव यौन अपराध करने के लिए किसी नाबालिग के शरीर से छेड़छाड़ नहीं माना जा सकता है. न्यायमूर्ति अमित बंसल की पीठ ने कहा कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट एक अलग तरह का अपराध है.
इसके साथ ही अदालत ने आरोपी को 6 साल की बच्ची के निजी अंग को छूने पर एग्रेवेटिड पेनट्रेटिव यौन अपराध का दोषी ठहराये जाने के फैसले को खारिज कर दिया. हालांकि अदालत ने कानून के तहत एग्रेवेटिड यौन अपराध के लिए व्यक्ति को दोषी ठहराये जाने तथा 5 साल कैद की सजा सुनाये जाने के फैसले में हस्तक्षेप करने से भी इनकार कर दिया.
अदालत ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दोषी की अपील को निपटाते हुए कहा कि, "पॉक्सो अधिनियम की धारा 3 (सी) के अवलोकन से पता चलता है कि पेनिट्रेटिव यौन अपराध के लिए आरोपी को पेनिट्रेशन के लिए बच्ची के शरीर से छेड़छाड़ करनी होती. आदेश में कहा गया है कि स्पर्श करने के सामान्य कृत्य को कानून की धारा 3 (सी) के तहत छेड़छाड़ करने वाला नहीं समझा जा सकता है."
यह भी पढ़ें- Delhi High Court: बिना फायर NOC चल रहे कोचिंग सेंटरों को 30 दिनों में बंद करने का आदेश
वहीं, मौजूदा मामले में, व्यक्ति को 2020 में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 (गंभीर प्रवेशन यौन उत्पीड़न) के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था. न्यायमूर्ति बंसल ने फैसला सुनाया कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत अपराध उचित संदेह से परे साबित नहीं हुआ है, लेकिन धारा 10 के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न का अपराध उचित संदेह से परे साबित हुआ है.
उन्होंने फैसले में संशोधन करते हुए अपीलकर्ता को पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत दोषी ठहराया है, उसे 5 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई और निचली अदालत के 5,000 रुपये जुर्माना की सजा बरकरार रखी।अदालत ने समय-समय पर नाबालिग पीड़िता के बयानों में विसंगतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी दोषसिद्धि का समर्थन करने के लिए उसकी गवाही की गुणवत्ता उच्च मानक की होनी चाहिए.