नई दिल्ली/गाजियाबाद: 85 वर्षीय इंदिरा चौधरी पिछले 5 वर्षों से दुहाई (Duhai ) स्थित वृद्धाश्रम में रह रही है. शुरुआत में जब इंदिरा वृद्धा आश्रम में आई थी तब काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था. घर और परिवार के बारे में सोच के इंदिरा के आंसू निकल आते थे. समय के साथ सब ठीक होता गया और अब इंदिरा का नया घर दुहाई वृद्धा आश्रम ही है. दुहाई वृद्धा आश्रम में करीब 86 बुजुर्ग रह रहे हैं. इंदिरा मिलनसार स्वभाव की है. सारे बुजुर्ग उनकी इज्जत भी करते हैं.
पांच साल से आश्रम में रह रही इंद्रा चौधरी बताती हैं कि शुरुआत में आश्रम में रहना आसान नहीं था. मन हमेशा परेशान रहता था. अपना घर छूटने पर परेशान रहना स्वाभाविक है. धीरे-धीरे मन को समझ आ गया कि अब यही सच्चाई है. उन्होंने कहा कि आश्रम संचालिका कभी उनकी मां, कभी बहन तो बेटी बनकर समझाया और संभाला. आश्रम में सभी लोग बेहद अच्छे हैं और मिलनसार हैं.
त्योहार पर जहां एक तरफ लोग घरों में अपने परिवार के साथ त्योहार मनाते हैं. वहीं आश्रम में रह रहे लोगों के लिए आश्रम ही घर है. वहां मौजूद लोग उनका परिवार हैं. ऐसे में हम सभी लोग एक साथ दिवाली का त्यौहार मनाते हैं. त्योहारों पर आश्रम में काफी रौनक होती है. दुनिया की सच्चाई के बारे में इंदिरा बताती हैं कि इस दुनिया में कोई किसी का सगा नहीं होता. दुनिया में हम अकेले आए हैं और अकेले ही जाना है.
मुश्किल थी आश्रम की जिंदगी
आश्रम की संचालिका बताती हैं कि इंद्रा पांच साल से आश्रम में रह रही हैं. शुरुआत में इंदिरा जब आश्रम आई थी. काफी परेशान रहती थी अकेले बैठकर कुछ बातें किया करती थी. जो की याद आती थी तो बहुत रोती थी धीरे-धीरे उन्हें समझाया गया. उनके किसी रिश्तेदार ने उन्हें एक बेहतरीन आश्रम में शिफ्ट करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने इस आश्रम को छोड़ने से इनकार कर दिया.
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इंदिरा की कहानी
इंदिरा चौधरी का बेटा जब केवल पांच साल का था तब इनके पति की मृत्यु हो गई. इसके बाद कड़ी मेहनत करके इंदिरा ने अपने बेटे को बड़ा किया. पढ़ा लिखा के बेटे की शादी भी कराई. बेटा जिस कंपनी में नौकरी करता था उस कंपनी द्वारा बेटे पर मुकदमा दर्ज हो गया, जिसके बाद वह तिहाड़ जेल चला गया. कोई ठिकाना ना होने पर इंदिरा गाजियाबाद के दुहाई वृद्ध आश्रम में आ गई और यहीं से अपने बेटे को जेल से बाहर निकालने के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी.
रिश्तेदारों से पैसे मांगे और कोर्ट की तारीख तय की. जेल से आने के बाद जब 2 महीने तक बेटे को नौकरी नहीं मिली तो आश्रम संचालिका से दरखास्त करके इंदिरा ने बेटे को वही रखा, नौकरी मिलने के बाद बेटा अपनी बहू बच्चे और मां इंदिरा को इंदौर ले गया. इसके कुछ दिन बाद ही वह वापस अपनी मां को आश्रम में ही छोड़ गया.
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