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13 साल 5 एग्जाम फिर भी नहीं मिला प्रमोशन! न्याय के लिए भटकता रहा रेलकर्मी - Railway employe

भारत में आज भी कई लोग भ्रष्टाचार से पीड़ित हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ लोग भ्रष्टाचार से लड़ते हैं और हार मान कर बैठ जाते हैं. यह उस शख्स की कहानी है जिसने अपने साथ हुए भ्रष्टाचार को संघर्ष के तौर पर लिया और तब तक लड़ता रहा जब तक जीत नहीं मिली.

रेलवे विभाग पर आरोप etv bharat
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Published : Jul 28, 2019, 11:38 PM IST

Updated : Jul 29, 2019, 10:27 AM IST

नई दिल्ली: खेलकूद कोटे से 1981 में रेलवे में भर्ती हुए राकेश कुमार ने नौकरी के कुछ दिनों बाद हर उस आदमी की तरह विभागीय परीक्षा दी, जो पदोन्नति के लिए ऐसा करता है. लेकिन उन्हें पता नहीं था कि उन्हें एक बार नहीं 5 बार यह परीक्षा देनी पड़ेगी और पांचों बार पास होने के बावजूद उन्हें पदोन्नति नहीं मिलेगी.

राकेश कुमार ने हर बार परीक्षा पास की लेकिन पदोन्नति के लिए रिश्वत की मंशा और इसी मंशा ने उन्हें उनके हक से 13 साल तक वंचित रखा.

रेलकर्मी ने लगाया आरोप

नहीं हुई कोई कार्रवाई
2003, 05, 08, 09 और 2013 में उन्होंने विभागीय परीक्षा दी, हर बार पास भी हुए लेकिन उन्होंने पदोन्नति की कीमत पर हर बार रिश्वत की मांग ठुकरा दी. राकेश कुमार ने इसकी शिकायत विजिलेंस डिपार्टमेंट में भी की और अधिकारियों पर आरोप भी साबित हुए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.

मामला कोर्ट में भी गया, लेकिन तारीख-दर-तारीख रेलवे ने मामले को साढ़े तीन साल खींचा. मई 2015 में कैट (सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल) कोर्ट की चंडीगढ़ शाखा ने राकेश कुमार के पक्ष में फैसला भी सुना दिया, लेकिन फिर भी उन्हें न तो वाजिब पोस्टिंग मिल सकी और न ही बकाया पैसा.

एरियर देने से किया मना
कोर्ट के डर से रेलवे प्रशासन राकेश कुमार को अलग-अलग पदों पर तो नियुक्ति देता रहा, इधर-उधर ट्रांसफर करता रहा. यहां तक कि उन्हें श्रीनगर के बड़गांव भेज दिया, लेकिन उन्हें वाजिब हक नहीं मिला.

उसके बाद राकेश कुमार ने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन तक शिकायत पहुंचाई और उनके हस्तक्षेप से उन्हें अमृतसर पोस्टिंग मिली, लेकिन उनका पे-फिक्सेशन गलत बना दिया गया. इसकी शिकायत पर इसे ठीक तो किया गया, लेकिन फिर पिछली तारीख से एरियर देने से मना कर दिया गया.

कोर्ट के आदेश के बाद किया भुगतान
कोर्ट के आदेश के बावजूद हक पाने में इतनी परेशानी को लेकर राकेश कुमार ने इसे अवमानना का मामला बनाकर फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और 10 मई 2019 को कैट कोर्ट की चंडीगढ़ शाखा ने नॉर्दर्न रेलवे के जीएम और डीआरएम को फटकार लगाते हुए आदेश दिया कि कर्मचारी को 30 मई 2019 तक की सभी बकाया राशि जल्द से जल्द दी जाए. इस आदेश के बाद रेलवे को राकेश कुमार को बकाया भुगतान करना पड़ा.

जिस पद पर ज्वाइन किया उसी पद से हुए रिटायर
मई 2018 में राकेश कुमार रिटायर हो चुके थे. गौर करने वाली बात यह है कि वे 2018 में उसी गार्ड के पद से रिटायर हुए, जिस पद पर आने के लिए 2003 में उन्होंने ट्रेन क्लर्क रहते हुए विभागीय परीक्षा दी थी.

नई दिल्ली: खेलकूद कोटे से 1981 में रेलवे में भर्ती हुए राकेश कुमार ने नौकरी के कुछ दिनों बाद हर उस आदमी की तरह विभागीय परीक्षा दी, जो पदोन्नति के लिए ऐसा करता है. लेकिन उन्हें पता नहीं था कि उन्हें एक बार नहीं 5 बार यह परीक्षा देनी पड़ेगी और पांचों बार पास होने के बावजूद उन्हें पदोन्नति नहीं मिलेगी.

राकेश कुमार ने हर बार परीक्षा पास की लेकिन पदोन्नति के लिए रिश्वत की मंशा और इसी मंशा ने उन्हें उनके हक से 13 साल तक वंचित रखा.

रेलकर्मी ने लगाया आरोप

नहीं हुई कोई कार्रवाई
2003, 05, 08, 09 और 2013 में उन्होंने विभागीय परीक्षा दी, हर बार पास भी हुए लेकिन उन्होंने पदोन्नति की कीमत पर हर बार रिश्वत की मांग ठुकरा दी. राकेश कुमार ने इसकी शिकायत विजिलेंस डिपार्टमेंट में भी की और अधिकारियों पर आरोप भी साबित हुए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.

मामला कोर्ट में भी गया, लेकिन तारीख-दर-तारीख रेलवे ने मामले को साढ़े तीन साल खींचा. मई 2015 में कैट (सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल) कोर्ट की चंडीगढ़ शाखा ने राकेश कुमार के पक्ष में फैसला भी सुना दिया, लेकिन फिर भी उन्हें न तो वाजिब पोस्टिंग मिल सकी और न ही बकाया पैसा.

एरियर देने से किया मना
कोर्ट के डर से रेलवे प्रशासन राकेश कुमार को अलग-अलग पदों पर तो नियुक्ति देता रहा, इधर-उधर ट्रांसफर करता रहा. यहां तक कि उन्हें श्रीनगर के बड़गांव भेज दिया, लेकिन उन्हें वाजिब हक नहीं मिला.

उसके बाद राकेश कुमार ने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन तक शिकायत पहुंचाई और उनके हस्तक्षेप से उन्हें अमृतसर पोस्टिंग मिली, लेकिन उनका पे-फिक्सेशन गलत बना दिया गया. इसकी शिकायत पर इसे ठीक तो किया गया, लेकिन फिर पिछली तारीख से एरियर देने से मना कर दिया गया.

कोर्ट के आदेश के बाद किया भुगतान
कोर्ट के आदेश के बावजूद हक पाने में इतनी परेशानी को लेकर राकेश कुमार ने इसे अवमानना का मामला बनाकर फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और 10 मई 2019 को कैट कोर्ट की चंडीगढ़ शाखा ने नॉर्दर्न रेलवे के जीएम और डीआरएम को फटकार लगाते हुए आदेश दिया कि कर्मचारी को 30 मई 2019 तक की सभी बकाया राशि जल्द से जल्द दी जाए. इस आदेश के बाद रेलवे को राकेश कुमार को बकाया भुगतान करना पड़ा.

जिस पद पर ज्वाइन किया उसी पद से हुए रिटायर
मई 2018 में राकेश कुमार रिटायर हो चुके थे. गौर करने वाली बात यह है कि वे 2018 में उसी गार्ड के पद से रिटायर हुए, जिस पद पर आने के लिए 2003 में उन्होंने ट्रेन क्लर्क रहते हुए विभागीय परीक्षा दी थी.

Intro:भ्रष्टाचार की कहानियां भारत के लिए नई नहीं हैं. रेलवे भी इन्हें लेकर आए दिन सुर्खियों में रहता है. लेकिन यह कहानी भ्रष्टाचार की बाकी कहानियों से अलग है. यह उस शख्स की कहानी है जिसने अपने साथ हुए भ्रष्टाचार को संघर्ष के तौर पर लिया और तब तक लड़ता रहा जब तक जीत नहीं मिल गई.


Body:नई दिल्ली: खेलकूद कोटे से 1981 में रेलवे में भर्ती हुए राकेश कुमार ने नौकरी के कुछ दिनों बाद हर उस आदमी की तरह विभागीय परीक्षा दी, जो पदोन्नति के लिए ऐसा करता है. लेकिन उन्हें पता नहीं था कि उन्हें एक बार नहीं 5 बार यह परीक्षा देनी पड़ेगी और पांचों बार पास होने के बावजूद उन्हें पदोन्नति नहीं मिलेगी. ऐसा नहीं था कि राकेश कुमार के पास काबिलियत नहीं थी या वे उस परीक्षा को पास करने के योग्य नहीं थे, बस नहीं थी तो पदोन्नति के लिए रिश्वत देने की मंशा और इसी मंशा ने उन्हें उनके हक से 13 साल तक वंचित रखा.

2003, 2005, 2008, 2009 और फिर 2013 में उन्होंने विभागीय परीक्षा दी, हर बार पास भी हुए लेकिन पदोन्नति की कीमत पर हर बार रिश्वत की मांग ठुकरा दी. भ्रष्टाचार से राकेश कुमार के संघर्ष को इस बात से समझा जा सकता है कि इस मामले में विजिलेंस द्वारा भी जांच हुई, भ्रष्टाचारी अधिकारियों पर आरोप सिद्ध भी हुआ लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. मामला कोर्ट में भी गया, लेकिन तारीख-दर-तारीख लेकर रेलवे ने मामले को साढ़े तीन साल खींचा. मई 2015 में कैट (सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल) कोर्ट की चंडीगढ़ शाखा ने राकेश कुमार के पक्ष में फैसला भी सुना दिया, लेकिन फिर भी उन्हें न तो वाजिब पोस्टिंग मिल सकी और न ही बकाया पैसा.

कोर्ट के डर से रेलवे प्रशाशन राकेश कुमार को अलग अलग पदों पर तो नियुक्ति देता रहा, इधर-उधर ट्रांसफर करता रहा, यहां तक कि उन्हें श्रीनगर के बड़गांव भेज दिया गया, लेकिन वाजिब हक नहीं दे सका. उसके बाद राकेश कुमार ने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन तक शिकायत पहुंचाई और उनके हस्तक्षेप से उन्हें अमृतसर पोस्टिंग मिली, लेकिन उनका पे-फिक्सेशन गलत बना दिया गया. इसकी शिकायत पर इसे ठीक तो किया गया, लेकिन फिर पिछली तारीख से एरियर देने से मना कर दिया गया.

कोर्ट के आदेश के बावजूद हक पाने में इतनी परेशानी को लेकर राकेश कुमार ने इसे अवमानना का मामला बनाकर फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अंततः 10 मई 2019 को कैट कोर्ट की चंडीगढ़ शाखा ने नॉर्दर्न रेलवे के जीएम और डीआरएम को फटकार लगाते हुए आदेश दिया कि कर्मचारी को 30 मई 2019 तक की बकाया राशि जल्द से जल्द दी जाए. इस आदेश के बाद रेलवे को राकेश कुमार को बकाया भुगतान करना पड़ा.


Conclusion:इन सब के बीच मई 2018 में ही राकेश कुमार रिटायर हो चुके थे और गौर करने वाली बात यह है कि वे 2018 में उसी गार्ड के पद से रिटायर हुए, जिस पद पर आने के लिए 2003 में उन्होंने ट्रेन क्लर्क रहते हुए विभागीय परीक्षा दी थी.
Last Updated : Jul 29, 2019, 10:27 AM IST
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