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दिल्ली में इस बार प्रदूषण का कारण नहीं बनेंगे पंजाब और हरियाणा ! जानें बड़ी वजह...

दिल्ली और आसपास के राज्यों में प्रदूषण का एक सबसे बड़ा कारण पराली को माना जाता है. इससे बचाव के लिए पूसा इंस्टीट्यूट (Pusa Institute) ने बायो डीकंपोजर घोल (Bio-Decomposer Solution) को तैयार किया है. जो पराली के धुएं का समाधान है. पंजाब और हरियाणा ने बायो-डीकंपोजर घोल की डिमांड की है.

bio decomposer solution
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Published : Oct 14, 2021, 11:22 AM IST

नई दिल्ली: पराली के चलते हर बार पंजाब और हरियाणा (Punjab and Haryana) जैसे राज्यों को दिल्ली में बढ़े प्रदूषण (Pollution) स्तर के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है. हालांकि इस बार ये संभावना कम है. वजह है बायो-डीकंपोजर घोल (Bio-Decomposer Solution), जिसे दिल्ली सरकार पराली का समाधान बता रही है. पूसा इस्टीट्यूट (Pusa Institute) के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के हेड डॉ. सुनील पब्बी (Dr. Sunil Pabbi) ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया है कि दोनों ही राज्यों ने घोल में अपनी दिलचस्पी दिखाते हुए इंस्टिट्यूट से इसकी डिमांड की है.

पूसा इंस्टिट्यूट (Pusa Institute) के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के हेड डॉ. सुनील पब्बी (Dr. Sunil Pabbi) के मुताबिक हरियाणा (Haryana) ने करीब एक लाख एकड़ के लिए इसकी मांग की है, जिसके संबंध में प्रक्रिया चल रही है. वहीं पंजाब (Punjab) में इसे तीन हजार एकड़ तक फैलाने की कोशिश चल रही है. पब्बी ने बताया कि बायो-डीकंपोजर घोल (Bio-Decomposer Solution) को बनाने के लिए 11 निजी कंपनियों को लाइसेंस दिया गया है. ऐसे में किसान अपने स्तर पर या सरकारें यहां से भी इन्हें खरीद सकती हैं.

बायो डीकंपोजर घोल की पंजाब और हरियाणा में डिमांड बढ़ी.

ये भी पढ़ें: दो दिनों के बाद आज बढ़े पेट्रोल और डीजल के दाम, जानें अपने शहर के रेट

डॉ. पब्बी बताते हैं कि अलग-अलग राज्यों के किसान विकास केंद्रों (Farmer Development Centers) से भी डिमांड आ रही है. इसमें 11 हजार किटों की डिमांड पूरी की जा चुकी है. इसमें न सिर्फ पंजाब और हरियाणा बल्कि अन्य जगहों पर भी इसे भेजा जा रहा है. पूसा इंस्टिट्यूट एक किट 50 रुपये में दे रहा है. डॉ. पब्बी बताते हैं कि एक किट में 4 कैप्सूल होते हैं. इससे 25 लीटर घोल बनता है जो कि एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त है. इस साल इसकी गुणवत्ता पर ध्यान दिया गया है. इस बार जीवाणु के मिश्रण में बेहतर डिकम्पोजीशन (Decomposition) पर काम किया गया है. इसमें 25 दिन का समय लगता है जिसे और कम करने पर काम किया जा रहा है.

ये भी पढ़ें: CNG की बढ़ती कीमतों से ऑटो और टैक्सी चालक परेशान, सरकार से की किराया बढ़ाने की मांग

डॉ. पब्बी बताते हैं कि किसान अगर चाहें तो सीधा ये कैप्सूल खरीद सकते हैं. ये किट सभी के लिए उपलब्ध है. इस बार प्रोडक्शन बढ़ाया गया है. इस कीट को डिमांड के हिसाब से तैयार किया जा रहा है.

नई दिल्ली: पराली के चलते हर बार पंजाब और हरियाणा (Punjab and Haryana) जैसे राज्यों को दिल्ली में बढ़े प्रदूषण (Pollution) स्तर के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है. हालांकि इस बार ये संभावना कम है. वजह है बायो-डीकंपोजर घोल (Bio-Decomposer Solution), जिसे दिल्ली सरकार पराली का समाधान बता रही है. पूसा इस्टीट्यूट (Pusa Institute) के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के हेड डॉ. सुनील पब्बी (Dr. Sunil Pabbi) ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया है कि दोनों ही राज्यों ने घोल में अपनी दिलचस्पी दिखाते हुए इंस्टिट्यूट से इसकी डिमांड की है.

पूसा इंस्टिट्यूट (Pusa Institute) के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के हेड डॉ. सुनील पब्बी (Dr. Sunil Pabbi) के मुताबिक हरियाणा (Haryana) ने करीब एक लाख एकड़ के लिए इसकी मांग की है, जिसके संबंध में प्रक्रिया चल रही है. वहीं पंजाब (Punjab) में इसे तीन हजार एकड़ तक फैलाने की कोशिश चल रही है. पब्बी ने बताया कि बायो-डीकंपोजर घोल (Bio-Decomposer Solution) को बनाने के लिए 11 निजी कंपनियों को लाइसेंस दिया गया है. ऐसे में किसान अपने स्तर पर या सरकारें यहां से भी इन्हें खरीद सकती हैं.

बायो डीकंपोजर घोल की पंजाब और हरियाणा में डिमांड बढ़ी.

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डॉ. पब्बी बताते हैं कि अलग-अलग राज्यों के किसान विकास केंद्रों (Farmer Development Centers) से भी डिमांड आ रही है. इसमें 11 हजार किटों की डिमांड पूरी की जा चुकी है. इसमें न सिर्फ पंजाब और हरियाणा बल्कि अन्य जगहों पर भी इसे भेजा जा रहा है. पूसा इंस्टिट्यूट एक किट 50 रुपये में दे रहा है. डॉ. पब्बी बताते हैं कि एक किट में 4 कैप्सूल होते हैं. इससे 25 लीटर घोल बनता है जो कि एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त है. इस साल इसकी गुणवत्ता पर ध्यान दिया गया है. इस बार जीवाणु के मिश्रण में बेहतर डिकम्पोजीशन (Decomposition) पर काम किया गया है. इसमें 25 दिन का समय लगता है जिसे और कम करने पर काम किया जा रहा है.

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डॉ. पब्बी बताते हैं कि किसान अगर चाहें तो सीधा ये कैप्सूल खरीद सकते हैं. ये किट सभी के लिए उपलब्ध है. इस बार प्रोडक्शन बढ़ाया गया है. इस कीट को डिमांड के हिसाब से तैयार किया जा रहा है.

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