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कोरोना आपदा में पैसे बनाने का अवसर देख रहे हैं कई निजी अस्पताल - corona pandemic

दिल्ली में ऐसे कई कॉरपोरेट हॉस्पिटल हैं, जो मरीज की मृत्यु होने के बाद भी उनके परिजनों से मोटा बिल लेने के बाद ही उन्हें डेड बॉडी देते हैं. दिल्ली में ज्यादातर ऐसे मामले सामने आते हैं, जो किसी प्राइवेट हॉस्पिटल की ओर से मोटे बिन लेने के शिकार होते हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता इस पर कौन नियंत्रण रखेगा?

private hospitals looting patients on name of corona pandemic
कोरोना आपदा में पैसे बनाने का अवसर देख रहे हैं निजी अस्पताल
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Published : Sep 7, 2020, 11:08 AM IST

Updated : Sep 7, 2020, 12:24 PM IST

नई दिल्ली: कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. प्राइवेट हॉस्पिटल आपदा की इस घड़ी में भी मोटी कमाई का अवसर तलाश रहे हैं. दिल्ली में कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल्स में किस मद में कितना बिल दिया जाएगा. सरकार ने इस पर कैपिंग लगा रखी है, लेकिन इसके बावजूद कुछ निजी अस्पताल सरकार की गाइडलाइन की अवहेलना करते हुए मन मुताबिक बिल मरीजों से वसूल रहे हैं.

निजी अस्पताल ने बनाया लाखों का बिल


मेडिकल इंश्योरेंस से ज्यादा का बिल


बड़े कॉरपोरेट हॉस्पिटल्स में कोविड कॉम्प्लिकेशंस की वजह से मरीजों की मौत हो रही है. प्राइवेट अस्पताल मरीज के परिजनों से 10 से 20 लाख रुपए तक वसूल रहे हैं. जिन मरीजों का मेडिकल इंश्योरेंस कवर है. उनसे भी मेडिकल इंश्योरेंस से ज्यादा का बिल ले रहे हैं.

दिल्ली में ऐसे कई कॉरपोरेट हॉस्पिटल हैं, जो मरीज की मृत्यु होने के बाद भी उनके परिजनों से मोटा बिल लेने के बाद ही उन्हें डेड बॉडी देते हैं. दिल्ली में ज्यादातर ऐसे मामले सामने आते हैं, जो किसी प्राइवेट हॉस्पिटल की ओर से मोटे बिन लेने के शिकार होते हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता इस पर कौन नियंत्रण रखेगा?

अगस्त महीने में दिल्ली सरकार ने अधिकतम बिल पर कैपिंग लगाई



काफी शिकायतें मिलने के बाद दिल्ली सरकार ने 9 अगस्त को कोविड के इलाज के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल्स के अधिकतम बिल पर कैपिंग कर निजी अस्पतालों की मनमानी पर रोक लगाने का काम किया. दिल्ली सरकार के आदेश के मुताबिक नेशनल एक्रीडेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थ केयर प्रोवाइडर (NABH) के एक्रेडिटेड हॉस्पिटल में कोविड के मरीजों के इलाज के लिए 10,000 से लेकर के 18000 रुपए प्रतिदिन निर्धारित कर दिया है.

इसके अलावा मरीजों को ऑक्सीजन की आवश्यकता है, तो इसके लिए प्रतिदिन 2000 रुपये अतिरिक्त देना निश्चत कर दिया है. आइसोलेशन के लिए 10000 रुपये, बिना वेंटीलेटर्स के आईसीयू बेड के लिए 15000 रुपये वेंटिलेटर की सुविधा के साथ आईसीयू बेड के लिए 18000 रुपये प्रतिदिन चार्ज निर्धारित कर दिया गया है.


नॉन एनएबीएच हॉस्पिटल के लिए अधिकतम चार्ज



इसी तरह से नॉन एनएबीएच हॉस्पिटल के लिए आइसोलेशन बेड के लिए 8000 बिना वेंटीलेटर के आईसीयू बेड के लिए 13000 रुपये और वेंटीलेटर्स के साथ आईसीयू बेड के लिए 15000 रुपये निर्धारित कर दिया गया है.



इन अलग-अलग मैन्यू में हॉस्पिटल एडमिशन से संबंधित सारे खर्च शामिल हैं, जिसमें बेड और जरूरत की और सामग्री, नर्सिंग केयर, डॉक्टर विजिट, कंसल्ट इन्वेस्टिगेशन और इमेजिंग ट्रीटमेंट सब शामिल है. ऑक्सीजन ब्लड ट्रांसफ्यूजन भी इसमें शामिल है.

'मरीजों को नहीं दी जाती निर्धारित मूल्य की जानकारी'


सरकार के प्राइस कैपिंग के बावजूद प्राइवेट हॉस्पिटल मरीजों से ज्यादा चार्ज वसूलने में लगे हैं. वहीं ज्यादा बिल वसूलने मामले सामने आ रहे हैं. इसको लेकर के मरीज हंगामा करता है. वहीं जो बिल चुपचाप भुगतान कर दिए जाते हैं, वो मामले दबे रह जाते हैं. प्राइवेट हॉस्पिटल सरकार द्वारा निर्धारित प्राइस के बारे में लोगों को बताते तक नहीं हैं. उन्हें लगता है कि अगर उन्हें बता दिया जाएगा, तो उनका मरीजों से ज्यादा बिल लेने का मंसूबा कैसे पुरा होगा ? इस मामले को लेकर सिविल सोसायटी और हेल्थ एक्टिविस्ट समय-समय पर सरकार के सामने आवाज उठाते रहे हैं, लेकिन इस को लेकर सरकार गंभीर बिल्कुल नहीं दिखाई दे रही है.

'एक अस्पताल ने साढ़े 12 लाख तो दूसरे ने वसूले 7 लाख'



दिल्ली के मॉडल टाउन में रहने वाले शुभम मित्तल के साथ ऐसा ही कुछ हुआ. शुभम 3 जून को कोविड पॉजिटिव हुए जब सांस लेने में तकलीफ हुई तो उसके अगले दिन मॉडल टाउन स्थित एक बड़े कॉरपोरेट हॉस्पिटल में एडमिट हुए. इस हॉस्पिटल में शुभम के इलाज के 12,50,000 रुपए का बिल बना दिया. परिजनों का आरोप है कि निर्धारित बिल से बहुत ज्यादा बिल वसूला गया.


परिजनों के मुताबिक उन्हें जो बिल दिया गया उसमें कोई डिस्क्रिप्शन नहीं दी गई थी. 3 जून को रात करीब 12:30 बजे एक निजी अस्पताल में भर्ती हुए थे. ठीक नहीं होने की वजह से वो 29 जून को वहां से डिस्चार्ज होकर सर गंगा राम हॉस्पिटल में एडमिट हुए. उन्हें 26 दिनों में शुरुआती दिनों में जनरल वार्ड में रखा गया. वहां उन्हें ठीक से केयर नहीं दिया गया. इस वजह से शुभम का केस काफी क्रिटिकल हो गया.


'सामान्य वार्ड और ऑक्सीजन के ही बनाए लाखों के बिल'

शुभम के परिजनों के मुताबिक शुभम जिस हॉस्पिटल में भर्ती थे. वहां उन्हें सिर्फ ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था. ना कोई डॉक्टर और ना कोई नर्सिंग स्टाफ उन्हें देखने के लिए आता था. जब तबियत ज्यादा खराब होने लगी, तो परिजनों ने तय किया कि इस अस्पताल से निकाल कर के मरीज को सर गंगा राम हॉस्पिटल में शिफ्ट किया जाए.

इसके लिए जब बिलिंग काउंटर पर गए, तो उन्हें पता चला कि 12,50,000 रुपए का बिल शुभम के नाम बना दिया गया है. अभी कुछ दिन पहले ही 26 अगस्त को नेगेटिव रिपोर्ट आने के बाद घर लौट आए हैं, लेकिन अभी भी ऑक्सीजन सपोर्ट पर है.



शुभम जो पहले प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे. वहां पर ठीक से केयर ना होने की वजह से उनका लंग काफी डैमेज हो गया है. जिसका असर अभी भी है. पावरफुल स्टेरॉयड के 3 इंजेक्शन उन्हें लगाए गए, जिनका काफी साइड इफेक्ट लंग के ऊपर पड़ा.


सरकारी अव्यवस्था पर निजी अस्पताल भारी

हेल्थ एक्टिविस्ट अशोक अग्रवाल बताते हैं कि हमारे देश में पब्लिक हेल्थ सिस्टम को कभी भी मजबूत बनाने की कोशिश नहीं की गई. जिसका नतीजा है कि प्राइवेट हॉस्पिटल लूट का अड्डा बन गया है. इन पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं होता है. जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है. देश में 90 फ़ीसदी से ज्यादा हेल्थ स्ट्रक्चर निजी हाथों में है. मुश्किल से 10 परसेंट हेल्थ सिस्टम सरकारी नियंत्रण में है.

सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था अच्छी नहीं है. इसलिए मजबूरी में लोगों को निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है, जहां उनकी जेब कटती है. इन दिनों पूरे देश में कोरोना महामारी फैला हुआ है. प्राइवेट हॉस्पिटल इस आपदा को भी अवसर में बदल लिए हैं और भरपूर मुनाफा कमाने का इसे एक अवसर के रूप में देख रहे हैं.


रेगुलेट ना करने से मिली मरीजों को लूटने की छूट


काफी समय तक सरकार ने तो निजी अस्पतालों को रेगुलेट नहीं किया. इसका फायदा उठाते हुए निजी अस्पताल मनमाफिक बिल वसूलते रहे. अगस्त महीने में दिल्ली सरकार ने निजी अस्पतालों में कोरोना मरीजों के इलाज के लिए अधिकतम बिल की कैपिंग लगा दी. इसके बावजूद कोविड मरीजों से 10-20 लाख रुपए वसूले जा रहे हैं.

अशोक अग्रवाल कहते हैं कि महामारी के दौरान होना ये चाहिए था कि चाहे प्राइवेट हॉस्पिटल हो या सरकारी हॉस्पिटल हो मरीजोंं को मुफ्त में इलाज मिलना चाहिए था. लेकिन उल्टा हो रहा है. प्राइवेट हॉस्पिटल में अगर कोई इलाज कराने के लिए जा रहा है, तो लोगों को अपना मकान-जायदाद और गहने तक भी बेचने पड़ रहे हैं. सरकार को अपनी सिस्टम को काफी मजबूत बनाने की जरूरत है, ताकि लोगों की निजी अस्पतालों पर निर्भरता ना रहे.

नई दिल्ली: कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. प्राइवेट हॉस्पिटल आपदा की इस घड़ी में भी मोटी कमाई का अवसर तलाश रहे हैं. दिल्ली में कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल्स में किस मद में कितना बिल दिया जाएगा. सरकार ने इस पर कैपिंग लगा रखी है, लेकिन इसके बावजूद कुछ निजी अस्पताल सरकार की गाइडलाइन की अवहेलना करते हुए मन मुताबिक बिल मरीजों से वसूल रहे हैं.

निजी अस्पताल ने बनाया लाखों का बिल


मेडिकल इंश्योरेंस से ज्यादा का बिल


बड़े कॉरपोरेट हॉस्पिटल्स में कोविड कॉम्प्लिकेशंस की वजह से मरीजों की मौत हो रही है. प्राइवेट अस्पताल मरीज के परिजनों से 10 से 20 लाख रुपए तक वसूल रहे हैं. जिन मरीजों का मेडिकल इंश्योरेंस कवर है. उनसे भी मेडिकल इंश्योरेंस से ज्यादा का बिल ले रहे हैं.

दिल्ली में ऐसे कई कॉरपोरेट हॉस्पिटल हैं, जो मरीज की मृत्यु होने के बाद भी उनके परिजनों से मोटा बिल लेने के बाद ही उन्हें डेड बॉडी देते हैं. दिल्ली में ज्यादातर ऐसे मामले सामने आते हैं, जो किसी प्राइवेट हॉस्पिटल की ओर से मोटे बिन लेने के शिकार होते हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता इस पर कौन नियंत्रण रखेगा?

अगस्त महीने में दिल्ली सरकार ने अधिकतम बिल पर कैपिंग लगाई



काफी शिकायतें मिलने के बाद दिल्ली सरकार ने 9 अगस्त को कोविड के इलाज के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल्स के अधिकतम बिल पर कैपिंग कर निजी अस्पतालों की मनमानी पर रोक लगाने का काम किया. दिल्ली सरकार के आदेश के मुताबिक नेशनल एक्रीडेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थ केयर प्रोवाइडर (NABH) के एक्रेडिटेड हॉस्पिटल में कोविड के मरीजों के इलाज के लिए 10,000 से लेकर के 18000 रुपए प्रतिदिन निर्धारित कर दिया है.

इसके अलावा मरीजों को ऑक्सीजन की आवश्यकता है, तो इसके लिए प्रतिदिन 2000 रुपये अतिरिक्त देना निश्चत कर दिया है. आइसोलेशन के लिए 10000 रुपये, बिना वेंटीलेटर्स के आईसीयू बेड के लिए 15000 रुपये वेंटिलेटर की सुविधा के साथ आईसीयू बेड के लिए 18000 रुपये प्रतिदिन चार्ज निर्धारित कर दिया गया है.


नॉन एनएबीएच हॉस्पिटल के लिए अधिकतम चार्ज



इसी तरह से नॉन एनएबीएच हॉस्पिटल के लिए आइसोलेशन बेड के लिए 8000 बिना वेंटीलेटर के आईसीयू बेड के लिए 13000 रुपये और वेंटीलेटर्स के साथ आईसीयू बेड के लिए 15000 रुपये निर्धारित कर दिया गया है.



इन अलग-अलग मैन्यू में हॉस्पिटल एडमिशन से संबंधित सारे खर्च शामिल हैं, जिसमें बेड और जरूरत की और सामग्री, नर्सिंग केयर, डॉक्टर विजिट, कंसल्ट इन्वेस्टिगेशन और इमेजिंग ट्रीटमेंट सब शामिल है. ऑक्सीजन ब्लड ट्रांसफ्यूजन भी इसमें शामिल है.

'मरीजों को नहीं दी जाती निर्धारित मूल्य की जानकारी'


सरकार के प्राइस कैपिंग के बावजूद प्राइवेट हॉस्पिटल मरीजों से ज्यादा चार्ज वसूलने में लगे हैं. वहीं ज्यादा बिल वसूलने मामले सामने आ रहे हैं. इसको लेकर के मरीज हंगामा करता है. वहीं जो बिल चुपचाप भुगतान कर दिए जाते हैं, वो मामले दबे रह जाते हैं. प्राइवेट हॉस्पिटल सरकार द्वारा निर्धारित प्राइस के बारे में लोगों को बताते तक नहीं हैं. उन्हें लगता है कि अगर उन्हें बता दिया जाएगा, तो उनका मरीजों से ज्यादा बिल लेने का मंसूबा कैसे पुरा होगा ? इस मामले को लेकर सिविल सोसायटी और हेल्थ एक्टिविस्ट समय-समय पर सरकार के सामने आवाज उठाते रहे हैं, लेकिन इस को लेकर सरकार गंभीर बिल्कुल नहीं दिखाई दे रही है.

'एक अस्पताल ने साढ़े 12 लाख तो दूसरे ने वसूले 7 लाख'



दिल्ली के मॉडल टाउन में रहने वाले शुभम मित्तल के साथ ऐसा ही कुछ हुआ. शुभम 3 जून को कोविड पॉजिटिव हुए जब सांस लेने में तकलीफ हुई तो उसके अगले दिन मॉडल टाउन स्थित एक बड़े कॉरपोरेट हॉस्पिटल में एडमिट हुए. इस हॉस्पिटल में शुभम के इलाज के 12,50,000 रुपए का बिल बना दिया. परिजनों का आरोप है कि निर्धारित बिल से बहुत ज्यादा बिल वसूला गया.


परिजनों के मुताबिक उन्हें जो बिल दिया गया उसमें कोई डिस्क्रिप्शन नहीं दी गई थी. 3 जून को रात करीब 12:30 बजे एक निजी अस्पताल में भर्ती हुए थे. ठीक नहीं होने की वजह से वो 29 जून को वहां से डिस्चार्ज होकर सर गंगा राम हॉस्पिटल में एडमिट हुए. उन्हें 26 दिनों में शुरुआती दिनों में जनरल वार्ड में रखा गया. वहां उन्हें ठीक से केयर नहीं दिया गया. इस वजह से शुभम का केस काफी क्रिटिकल हो गया.


'सामान्य वार्ड और ऑक्सीजन के ही बनाए लाखों के बिल'

शुभम के परिजनों के मुताबिक शुभम जिस हॉस्पिटल में भर्ती थे. वहां उन्हें सिर्फ ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था. ना कोई डॉक्टर और ना कोई नर्सिंग स्टाफ उन्हें देखने के लिए आता था. जब तबियत ज्यादा खराब होने लगी, तो परिजनों ने तय किया कि इस अस्पताल से निकाल कर के मरीज को सर गंगा राम हॉस्पिटल में शिफ्ट किया जाए.

इसके लिए जब बिलिंग काउंटर पर गए, तो उन्हें पता चला कि 12,50,000 रुपए का बिल शुभम के नाम बना दिया गया है. अभी कुछ दिन पहले ही 26 अगस्त को नेगेटिव रिपोर्ट आने के बाद घर लौट आए हैं, लेकिन अभी भी ऑक्सीजन सपोर्ट पर है.



शुभम जो पहले प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे. वहां पर ठीक से केयर ना होने की वजह से उनका लंग काफी डैमेज हो गया है. जिसका असर अभी भी है. पावरफुल स्टेरॉयड के 3 इंजेक्शन उन्हें लगाए गए, जिनका काफी साइड इफेक्ट लंग के ऊपर पड़ा.


सरकारी अव्यवस्था पर निजी अस्पताल भारी

हेल्थ एक्टिविस्ट अशोक अग्रवाल बताते हैं कि हमारे देश में पब्लिक हेल्थ सिस्टम को कभी भी मजबूत बनाने की कोशिश नहीं की गई. जिसका नतीजा है कि प्राइवेट हॉस्पिटल लूट का अड्डा बन गया है. इन पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं होता है. जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है. देश में 90 फ़ीसदी से ज्यादा हेल्थ स्ट्रक्चर निजी हाथों में है. मुश्किल से 10 परसेंट हेल्थ सिस्टम सरकारी नियंत्रण में है.

सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था अच्छी नहीं है. इसलिए मजबूरी में लोगों को निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है, जहां उनकी जेब कटती है. इन दिनों पूरे देश में कोरोना महामारी फैला हुआ है. प्राइवेट हॉस्पिटल इस आपदा को भी अवसर में बदल लिए हैं और भरपूर मुनाफा कमाने का इसे एक अवसर के रूप में देख रहे हैं.


रेगुलेट ना करने से मिली मरीजों को लूटने की छूट


काफी समय तक सरकार ने तो निजी अस्पतालों को रेगुलेट नहीं किया. इसका फायदा उठाते हुए निजी अस्पताल मनमाफिक बिल वसूलते रहे. अगस्त महीने में दिल्ली सरकार ने निजी अस्पतालों में कोरोना मरीजों के इलाज के लिए अधिकतम बिल की कैपिंग लगा दी. इसके बावजूद कोविड मरीजों से 10-20 लाख रुपए वसूले जा रहे हैं.

अशोक अग्रवाल कहते हैं कि महामारी के दौरान होना ये चाहिए था कि चाहे प्राइवेट हॉस्पिटल हो या सरकारी हॉस्पिटल हो मरीजोंं को मुफ्त में इलाज मिलना चाहिए था. लेकिन उल्टा हो रहा है. प्राइवेट हॉस्पिटल में अगर कोई इलाज कराने के लिए जा रहा है, तो लोगों को अपना मकान-जायदाद और गहने तक भी बेचने पड़ रहे हैं. सरकार को अपनी सिस्टम को काफी मजबूत बनाने की जरूरत है, ताकि लोगों की निजी अस्पतालों पर निर्भरता ना रहे.

Last Updated : Sep 7, 2020, 12:24 PM IST
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