नई दिल्ली: बड़े अपराधियों और गैंगस्टर के चक्कर में पड़कर राजधानी और आसपास के इलाकों के बच्चों का भविष्य चौपट हो रहा है. 15 साल के नाबालिग से लेकर 20 साल तक के युवाओं को ये अपराधी कभी बरगलाकर, कभी लालच देकर और कभी उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर अपने गिरोह में शामिल कर लेते हैं और उनसे बड़ी वारदात करवाते हैं. इससे किशोरों और युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो रहा है. हाल में क्राइम ब्रांच में ऐसे किशोरों को पकड़ा है, जो कच्ची उम्र में गोल्डी बराड़, लॉरेंस बिश्नोई और काला जठेड़ी गिरोह में शामिल होकर जबरन वसूली, रंगदारी, धमकाने, अपहरण और हत्या जैसे गंभीर अपराध कर रहे थे.
किशोर और कम उम्र के युवा हैं सॉफ्ट टारगेटः अपने गिरोह को बढ़ाने के लिए बड़े अपराधी और गैंगस्टर हमेशा नए-नए लोगों को भर्ती करते हैं. इसके लिए किशोर और कम उम्र के युवा उनके सबसे सॉफ्ट टारगेट होते हैं, क्योंकि यह लोग बहुत कम पैसे में इनके लिए काम करते हैं. ये लोग किशोरों को कानून की कुछ कमजोरियां बताकर उन्हें अपने गिरोह में आसानी से भर्ती कर लेते हैं. किशोरों को बताया जाता है कि वह कितना भी गंभीर अपराध करें, कानून से बचना बहुत आसान है. इससे आकर्षित होकर किशोर गिरोह में शामिल हो जाते हैं.
कोर्ट कचहरी में करते हैं ऐसे किशोरों की तलाशः क्राइम ब्रांच के स्पेशल पुलिस कमिश्नर आरएस यादव ने बताया कि अपने गिरोह में भर्ती करने के लिए गैंगस्टर और बड़े अपराधी किशोरों की तलाश में रहते हैं. ये ऐसे किशोरों की तलाश करते हैं जो किसी छोटे-मोटे झगड़े में या मारपीट के केस में फंस गए हैं. यह लोग उनको बताते हैं कि वह उनके लिए वकील करेंगे और उनको इस मामले से बचाएंगे. यहीं से इनका खेल शुरू होता है. मदद के नाम पर यह उन्हें अपने लिए काम करने के लिए राजी कर लेते हैं. उन्हें हथियार, गाड़ी और पैसे के साथ ही रहने के लिए जगह भी उपलब्ध कराते हैं. इससे किशोर और कम उम्र के युवा धीरे-धीरे उनके चंगुल में फंसते जाते हैं.
1-2 वारदात के बाद यह लोग कोर्ट कचहरी और कानून में इस तरह उलझ जाते हैं कि वह चाहकर भी वापस सामान्य जीवन नहीं जी पाते. आरएस यादव ने कहा कि यदि इन्हें पता चल जाए कि किसी किशोर या युवक की किसी से कोई रंजिश है तो यह संपर्क करके उसे अभी कहते हैं कि तुम्हारे दुश्मन को हम देख लेंगे. तुम हमारे साथ काम करो. इस तरह से भी लोगों को अपने गिरोह में शामिल कर लेते हैं.
कमाई का बहुत छोटा हिस्सा इनको मिलता हैः स्पेशल कमिश्नर ने बताया कि यह किशोर और युवा गैंगस्टर के गिरोह में एंट्री तो कर लेते हैं लेकिन उन्हें वहां से कुछ हासिल नहीं होता. अपराध की कमाई का बड़ा हिस्सा उनके सरगना को ही मिलता है. उनके लिए काम करने वाले किशोरों को बस नाम मात्र का मेहनताना मिलता है. यह पैसा भी कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने में बर्बाद हो जाता है.
किशोरों को पता भी नहीं चलता कि वह किसके चक्कर में फंस रहेः पुलिस अधिकारी ने बताया कि जब गिरोह में नए किशोर की भर्ती होती है तो उसे रुपए, हथियार, रहने के लिए जगह और उनकी जरूरत का सारा सामान मिलता है. यह सामान उन्हें इस तरह से दिया जाता है कि किशोर को पता ही नहीं चलता है कि उन्हें कौन दे रहा है. किशोरों को कभी किसी बाग में या खेत में या किसी मॉल में किसी जगह सामान उपलब्ध कराया जाता है. भर्ती करने वाले गिरोह के पुराने बदमाश कभी उनके सामने नहीं आते हैं. उन्हें पता भी नहीं चलता है कि उनकी भर्ती किसने की. इसलिए जब भी किशोर पकड़े जाते हैं तो पुलिस को उनसे गिरोह के बारे में कोई बड़ा सुराग नहीं मिल पाता है.
यूपी, बिहार, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और राजस्थान के किशोरों को बनाते हैं निशानाः पुलिस अधिकारी ने बताया कि गैंगस्टरों को ऐसे किशोरों की तलाश दिल्ली एनसीआर ही नहीं बल्कि आसपास के राज्यों में भी होती है. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश और गुजरात तक से ऐसे किशोरों और कम उम्र के युवाओं की तलाश की जाती है, जो किसी न किसी कारण से अपराधियों के चंगुल में फंस जाते हैं. दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि पुलिस के इंटर स्टेट को-ऑर्डिनेशन प्रोग्राम के तहत एक राज्य जी पुलिस दूसरे राज्य के अपराधियों के बारे में इनपुट देती है जिससे अपराधी पकड़े जाते हैं.