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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली की जनता से जुड़े लंबित कामों में तेजी आने की उम्मीद - नौकरशाही पर अब दिल्ली सरकार का नियंत्रण होगा

दिल्ली में अधिकारियों के पोस्टिंग-ट्रांसफर के मसले पर दिल्ली सरकार के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राजधानी में कई बदलाव देखने को मिलेंगे. जनता से जुड़े कई ऐसे काम पेंडिंग पड़े थे, जिसको लेकर दिल्ली सरकार इसका ठीकरा उपराज्यपाल पर फोड़ देते थे. अब फैसले के बाद इन कामों में तेजी आने की उम्मीद की जा रही है.

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Published : May 12, 2023, 10:45 AM IST

Updated : May 12, 2023, 11:07 AM IST

नई दिल्ली: दिल्ली सरकार के संदर्भ में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद नौकरशाही पर अब दिल्ली सरकार का नियंत्रण होगा. ऐसे में दिल्ली सरकार की जवाबदेही भी अब बढ़ गई है. अब यह बहाना नहीं होगा कि अधिकारी की वजह नहीं हो रहा, वे कहीं और रिपोर्ट करते हैं और उनके आदेश का नहीं मानते हैं. अभी तक केजरीवाल सरकार जनहित से जुड़ी कई योजना को पूरा नहीं होने को लेकर आम जनता से जो तर्क दे रहे थे, अब इसकी बजाय उस काम में तेजी आने की उम्मीद की जा रही है.

गत वर्ष चाहे दिल्ली के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों और प्रिंसिपलों को ट्रेनिंग के लिए फिनलैंड भेजने का मसला हो या अस्पतालों, मोहल्ला क्लीनिक में दवाईयां, जांच आदि की सुविधा बढ़ाने या फिर बुजुर्गों विधवाओं को पेंशन मिलने में देरी, इन सब मसले पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों के बीच टकराव रहा. लेकिन अब यह सब लागू करना दिल्ली सरकार के लिए संभव होगा. ऐसे में कामों में तेजी आने की उम्मीद है.

दिल्ली सरकार के अलग-अलग विभागों से जुड़ीं योजनाएं/कार्य जिनके चलते होता रहा टकराव

  1. केजरीवाल सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट में शुमार मोहल्ला क्लीनिक में डॉक्टरों और अन्य कर्मचारियों को समय पर सैलरी नहीं मिलने के कारण कई क्लीनिक बंद होने करने की नौबत आ गई है. लंबे समय से भुगतान लंबित होने के कारण एजेंसियों ने मुफ्त टेस्ट भी बंद कर दिए. फ्री दवाइयां मिलने में भी कई दिक्कतें आई. दिल्ली विधानसभा में भी यह मुद्दा उठा था. विधानसभा की याचिका समिति ने इसके लिए सरकार के हेल्थ सेक्रेट्री और वित्त विभाग के प्रमुख सचिव को जिम्मेदार मानते हुए उन्हें तलब किया था. अब इस तरह की स्थिति शायद ना बने और सोच के अनुरूप दिल्ली सरकार ने इस योजना को चला सकती है.
  2. दिल्ली के तमाम सरकारी अस्पतालों में मरीजों की पर्ची बनाने वाले डाटा एंट्री ऑपरेटर की नियुक्ति को लेकर की भी दिल्ली सरकार के अधिकारियों के साथ टकराव होता रहा है. गत वर्ष के अंत तक इन डाटा एंट्री ऑपरेटर का कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू नहीं किया गया. जिसके बाद अस्पतालों में व्यवस्थाएं चरमरा गई. ओपीडी में इलाज के लिए पहुंचे मरीजों को मैनुअल तरीके से पर्चियां बनवानी पड़ी. इस मामले में दिल्ली सरकार ने हेल्थ सेक्रेटरी और प्रिंसिपल सेक्रेटरी को जिम्मेदार ठहराया था. लेकिन चाह करके भी वे उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकते थे. अब ऐसा नहीं होगा.
  3. दिल्ली जल बोर्ड को लेकर के भी दिल्ली सरकार और जल बोर्ड के अधिकारियों के बीच टकराव देखने को मिल रहा था. दिल्ली सरकार का आरोप था कि विधानसभा से बजट पास करने के बावजूद वित्त विभाग के द्वारा समय पर पूरा फंड जारी नहीं करने के कारण जल बोर्ड की कई परियोजनाओं पर गंभीर असर पड़ा है. समय पर भुगतान ना होने से पानी और सीवर लाइनें नहीं बिछाई गई है. कई ठेकेदारों ने काम अधूरा छोड़ दिया और वे भाग गए. जिसके चलते दिल्ली के रिहायशी, सघन आबादी वाले इलाके में सड़कें तक टूटी-फूटी है. अब अधिकारियों पर नियंत्रण के अधिकार मिलने से उम्मीद की जा रही है कि इन कामों में तेज़ी आएगी.
  4. दिल्ली सरकार की तरफ से विधवाओं, बुजुर्गों और दिव्यांगों को दी जाने वाली पेंशन को लेकर भी जबरदस्त टकराव गत दो-तीन वर्षों से देखने को मिल रहा है. दिल्ली सरकार का आरोप था कि फंड रोके जाने के चलते पिछले साल सितंबर से दिसंबर के बीच बुजुर्गों को समय पर पेंशन नहीं मिल पाया. जिसके चलते उन्हें भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. अब इस तरह कि काम में भी तेजी आने की उम्मीद की जा रही है.
  5. बिजली सब्सिडी को लेकर के भी पिछले दिनों दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद हुआ. सरकार ने उपराज्यपाल पर सब्सिडी रोकने की साजिश करने का आरोप लगाया. बाद में उपराज्यपाल ने इसकी स्वीकृति दे दी. बिजली कंपनियों को दी गई सब्सिडी पर ऑडिट कराने के मुद्दे पर भी उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला. सरकार ने उपराज्यपाल पर मामले को लटकाने का आरोप लगाया है. अब इस तरह के आरोप सरकार नहीं लगा पाएगी.

ये भी पढे़ंः सुप्रीम कोर्ट के आदेश का चौधरी अनिल कुमार ने किया स्वागत, कहा- अब कोई बहाना नहीं चलेगा

नई दिल्ली: दिल्ली सरकार के संदर्भ में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद नौकरशाही पर अब दिल्ली सरकार का नियंत्रण होगा. ऐसे में दिल्ली सरकार की जवाबदेही भी अब बढ़ गई है. अब यह बहाना नहीं होगा कि अधिकारी की वजह नहीं हो रहा, वे कहीं और रिपोर्ट करते हैं और उनके आदेश का नहीं मानते हैं. अभी तक केजरीवाल सरकार जनहित से जुड़ी कई योजना को पूरा नहीं होने को लेकर आम जनता से जो तर्क दे रहे थे, अब इसकी बजाय उस काम में तेजी आने की उम्मीद की जा रही है.

गत वर्ष चाहे दिल्ली के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों और प्रिंसिपलों को ट्रेनिंग के लिए फिनलैंड भेजने का मसला हो या अस्पतालों, मोहल्ला क्लीनिक में दवाईयां, जांच आदि की सुविधा बढ़ाने या फिर बुजुर्गों विधवाओं को पेंशन मिलने में देरी, इन सब मसले पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों के बीच टकराव रहा. लेकिन अब यह सब लागू करना दिल्ली सरकार के लिए संभव होगा. ऐसे में कामों में तेजी आने की उम्मीद है.

दिल्ली सरकार के अलग-अलग विभागों से जुड़ीं योजनाएं/कार्य जिनके चलते होता रहा टकराव

  1. केजरीवाल सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट में शुमार मोहल्ला क्लीनिक में डॉक्टरों और अन्य कर्मचारियों को समय पर सैलरी नहीं मिलने के कारण कई क्लीनिक बंद होने करने की नौबत आ गई है. लंबे समय से भुगतान लंबित होने के कारण एजेंसियों ने मुफ्त टेस्ट भी बंद कर दिए. फ्री दवाइयां मिलने में भी कई दिक्कतें आई. दिल्ली विधानसभा में भी यह मुद्दा उठा था. विधानसभा की याचिका समिति ने इसके लिए सरकार के हेल्थ सेक्रेट्री और वित्त विभाग के प्रमुख सचिव को जिम्मेदार मानते हुए उन्हें तलब किया था. अब इस तरह की स्थिति शायद ना बने और सोच के अनुरूप दिल्ली सरकार ने इस योजना को चला सकती है.
  2. दिल्ली के तमाम सरकारी अस्पतालों में मरीजों की पर्ची बनाने वाले डाटा एंट्री ऑपरेटर की नियुक्ति को लेकर की भी दिल्ली सरकार के अधिकारियों के साथ टकराव होता रहा है. गत वर्ष के अंत तक इन डाटा एंट्री ऑपरेटर का कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू नहीं किया गया. जिसके बाद अस्पतालों में व्यवस्थाएं चरमरा गई. ओपीडी में इलाज के लिए पहुंचे मरीजों को मैनुअल तरीके से पर्चियां बनवानी पड़ी. इस मामले में दिल्ली सरकार ने हेल्थ सेक्रेटरी और प्रिंसिपल सेक्रेटरी को जिम्मेदार ठहराया था. लेकिन चाह करके भी वे उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकते थे. अब ऐसा नहीं होगा.
  3. दिल्ली जल बोर्ड को लेकर के भी दिल्ली सरकार और जल बोर्ड के अधिकारियों के बीच टकराव देखने को मिल रहा था. दिल्ली सरकार का आरोप था कि विधानसभा से बजट पास करने के बावजूद वित्त विभाग के द्वारा समय पर पूरा फंड जारी नहीं करने के कारण जल बोर्ड की कई परियोजनाओं पर गंभीर असर पड़ा है. समय पर भुगतान ना होने से पानी और सीवर लाइनें नहीं बिछाई गई है. कई ठेकेदारों ने काम अधूरा छोड़ दिया और वे भाग गए. जिसके चलते दिल्ली के रिहायशी, सघन आबादी वाले इलाके में सड़कें तक टूटी-फूटी है. अब अधिकारियों पर नियंत्रण के अधिकार मिलने से उम्मीद की जा रही है कि इन कामों में तेज़ी आएगी.
  4. दिल्ली सरकार की तरफ से विधवाओं, बुजुर्गों और दिव्यांगों को दी जाने वाली पेंशन को लेकर भी जबरदस्त टकराव गत दो-तीन वर्षों से देखने को मिल रहा है. दिल्ली सरकार का आरोप था कि फंड रोके जाने के चलते पिछले साल सितंबर से दिसंबर के बीच बुजुर्गों को समय पर पेंशन नहीं मिल पाया. जिसके चलते उन्हें भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. अब इस तरह कि काम में भी तेजी आने की उम्मीद की जा रही है.
  5. बिजली सब्सिडी को लेकर के भी पिछले दिनों दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद हुआ. सरकार ने उपराज्यपाल पर सब्सिडी रोकने की साजिश करने का आरोप लगाया. बाद में उपराज्यपाल ने इसकी स्वीकृति दे दी. बिजली कंपनियों को दी गई सब्सिडी पर ऑडिट कराने के मुद्दे पर भी उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला. सरकार ने उपराज्यपाल पर मामले को लटकाने का आरोप लगाया है. अब इस तरह के आरोप सरकार नहीं लगा पाएगी.

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Last Updated : May 12, 2023, 11:07 AM IST

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