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साहित्य अकादमी में पूर्वोत्तर और पश्चिमी लेखकों का ऑनलाइन सम्मेलन - पूर्वोत्तर और पश्चिमी लेखकों का ऑनलाइन सम्मेलन

साहित्य अकादमी की ओर से ऑनलाइन साहित्य श्रृंखला के अंतर्गत आभासी मंच पर पूर्वोत्तर और पश्चिमी लेखक सम्मेलन का आयोजन किया गया. इसमें दोनों क्षेत्रों के 27 रचनाकारों ने भाग लिया.

ऑनलाइन सम्मेलन
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Published : Jul 28, 2021, 2:23 AM IST

नई दिल्लीः साहित्य अकादमी की ओर से ऑनलाइन साहित्य श्रृंखला के अंतर्गत आभासी मंच पर पूर्वोत्तर और पश्चिमी लेखक सम्मेलन का आयोजन किया गया. इसमें दोनों क्षेत्रों के 27 रचनाकारों ने भाग लिया. इस दौरान सबसे पहले स्वागत भाषण साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने देते हुए कहा कि दो विभिन्न क्षेत्रों के रचनाकारों को एक-दूसरे के पास लाने के उद्देश्य से, इस सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है.


के. श्रीनिवासराव ने कहा कि यह सम्मेलन दो क्षेत्रों की विभिन्न संस्कृतियों को एक-दूसरे से जोड़ने का प्रयास है. प्रख्यात असमिया लेखक एवं साहित्य अकादमी के महत्तर सदस्य नगेन शइकिया ने कहा कि इस सम्मेलन में जहां से सूर्य उगता है और जहां डूबता है, के प्रतिकात्मक स्वरूप को महसूस कर पा रहा हूं. यह बिल्कुल ही अनूठी कल्पना है, जो बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक है.

ये भी पढ़ेंःतीन और भाषाओं में साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2020 की घोषणा, जानें किसको मिला


उन्होंने कहा कि भाषाओं की विविधता के बाद भी, हर भाषा का साहित्य मानवता की ही आवाज़ होता है. उन्होंने इस सम्मेलन में युवाओं की भागेदारी पर भी हर्ष व्यक्त किया. साहित्य अकादमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने कहा कि यह दो विभिन्न क्षेत्रों के बीच का मिलन है और इसमें अपार संभावनाएं हैं. यह दोनों क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से जुड़े हुए हैं. इस कार्यक्रम के दौरान ब्रिटेन के उपनिवेश और स्वाधीन भारत के बाद के साहित्य को जानने और समझने में आसानी होगी.

ये भी पढ़ेंःगंगा को बताया 'शव वाहिनी', मोदी को 'नग्न राजा', बढ़ा विवाद


उन्होंने कहा कि भूमंडलीयकरण के इस समय में गांव और वहां की स्थानीय संस्कृति, किस प्रकार प्रभावित हो रही है, यह जानना भी रोचक होगा. उन्होंने ऐसे आयोजनों को भाषाई विविधता के उत्सव की संज्ञा देते हुए स्थानीय परंपराओं का संरक्षक बताया. इसके बाद कविता पाठ कार्यक्रम था. इसमें कौशिक किसलय (असमिया), गोपीनाथ ब्रह्मा ( बोडो) , डेसमंड खर्माफ्लांग (अंग्रेजी-पूर्वोत्तर), हिमल पांड्या ( गुजराती), पूर्णानंद चारी (कोंकणी), विनोद कुमार सिन्हा (मणिपुरी), प्रकाश होलकर (मराठी) और विनोद असुदानी (सिंधी) ने कविताएं प्रस्तुत की.

सभी कवियों ने पहले मातृभाषा और उसके बाद अंग्रेजी और हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किए. अंत में साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि दोनों क्षेत्रों की भाषाओं के कवियों का सरोकार एक ही है.

नई दिल्लीः साहित्य अकादमी की ओर से ऑनलाइन साहित्य श्रृंखला के अंतर्गत आभासी मंच पर पूर्वोत्तर और पश्चिमी लेखक सम्मेलन का आयोजन किया गया. इसमें दोनों क्षेत्रों के 27 रचनाकारों ने भाग लिया. इस दौरान सबसे पहले स्वागत भाषण साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने देते हुए कहा कि दो विभिन्न क्षेत्रों के रचनाकारों को एक-दूसरे के पास लाने के उद्देश्य से, इस सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है.


के. श्रीनिवासराव ने कहा कि यह सम्मेलन दो क्षेत्रों की विभिन्न संस्कृतियों को एक-दूसरे से जोड़ने का प्रयास है. प्रख्यात असमिया लेखक एवं साहित्य अकादमी के महत्तर सदस्य नगेन शइकिया ने कहा कि इस सम्मेलन में जहां से सूर्य उगता है और जहां डूबता है, के प्रतिकात्मक स्वरूप को महसूस कर पा रहा हूं. यह बिल्कुल ही अनूठी कल्पना है, जो बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक है.

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उन्होंने कहा कि भाषाओं की विविधता के बाद भी, हर भाषा का साहित्य मानवता की ही आवाज़ होता है. उन्होंने इस सम्मेलन में युवाओं की भागेदारी पर भी हर्ष व्यक्त किया. साहित्य अकादमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने कहा कि यह दो विभिन्न क्षेत्रों के बीच का मिलन है और इसमें अपार संभावनाएं हैं. यह दोनों क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से जुड़े हुए हैं. इस कार्यक्रम के दौरान ब्रिटेन के उपनिवेश और स्वाधीन भारत के बाद के साहित्य को जानने और समझने में आसानी होगी.

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उन्होंने कहा कि भूमंडलीयकरण के इस समय में गांव और वहां की स्थानीय संस्कृति, किस प्रकार प्रभावित हो रही है, यह जानना भी रोचक होगा. उन्होंने ऐसे आयोजनों को भाषाई विविधता के उत्सव की संज्ञा देते हुए स्थानीय परंपराओं का संरक्षक बताया. इसके बाद कविता पाठ कार्यक्रम था. इसमें कौशिक किसलय (असमिया), गोपीनाथ ब्रह्मा ( बोडो) , डेसमंड खर्माफ्लांग (अंग्रेजी-पूर्वोत्तर), हिमल पांड्या ( गुजराती), पूर्णानंद चारी (कोंकणी), विनोद कुमार सिन्हा (मणिपुरी), प्रकाश होलकर (मराठी) और विनोद असुदानी (सिंधी) ने कविताएं प्रस्तुत की.

सभी कवियों ने पहले मातृभाषा और उसके बाद अंग्रेजी और हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किए. अंत में साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि दोनों क्षेत्रों की भाषाओं के कवियों का सरोकार एक ही है.

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