नई दिल्ली: एनडीएमसी के पूर्व सदस्य बीएस भाटी सदस्यता खत्म होने के बावजूद सरकारी टाइप फाइव बंगला खाली करने को तैयार नहीं हैं. एनडीएमसी पिछले लगभग डेढ़ साल से बंगला खाली करवाने के लिए सारे हथकंडे अपना चुकी है, लेकिन एक पूर्व सदस्य से बंगला वापस नहीं ले पाई है.
डेढ़ साल से है अवैध कब्जा
वैसे तो नगर पालिका परिषद ग्रुप सी और ग्रुप डी के कर्मचारियों को गलत तरीके से सरकारी क्वार्टर लेने के आरोप में 1 महीने के भीतर क्वार्टर खाली करने का आदेश देती है, लेकिन जब मामला एनडीएमसी के पूर्व सदस्य का हो तो उनकी सदस्यता समाप्त होने के डेढ़ साल बाद भी बंगला खाली नहीं करवा पा रही है. एनडीएमसी के पूर्व सदस्य बीएस भाटी का कार्यकाल 2 अक्टूबर 2019 को ही समाप्त हो चुका है. लेकिन उन्होंने अपना बंगला खाली नहीं किया है.
नहीं छूट रहा बंगला प्रेम
बी एस भाटी को उनके गोल्फ लिंक स्थित टाइप फाइव बंगला खाली करने का आदेश 28 अगस्त 2020 को जारी किया गया था. 2 महीना बीत जाने के बावजूद एनडीएमसी के पूर्व सदस्य बी एस भाटी ने बंगला खाली नहीं किया है. वह पूरे ठाठ से बंगले में रह रहे हैं. लिंक सदन का बंगला नंबर 1 पर अभी भी भाटी अवैध तरीके से कब्जा जमाए हुए हैं.
बाकी है 30 लाख किराया
कायदे कानून के मुताबिक एनडीएमसी की सदस्यता समाप्त होने के 1 महीने तक आवंटित बंगले में रह सकते थे. यह मियाद तो अक्टूबर 2019 को ही समाप्त हो गई है. इसके बाद उन्हें बाजार भाव के हिसाब से बंगले का रेंट प्रति महीने डेढ़ लाख रुपये के हिसाब से देना होगा. इस तरह डैमेज चार्ज, मार्केट भाव के हिसाब से रेंट और लाइसेंस यह सब कुल मिलाकर उनके ऊपर करीब 30 लाख रुपये बकाया है. लेकिन किराया देने की बात तो दूर कोर्ट के आदेश के बावजूद पालिका परिषद उनसे बंगला खाली नहीं करवा पाया है.
नगर पालिका कर्मचारी संघ ने लिखा पत्र
नई दिल्ली नगरपालिका कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधाकर कुमार एनडीएमसी के चेयरमैन और गृह मंत्रालय को लिखकर बी एस भाटी से तत्काल बंगला खाली कराने की मांग की है. साथ ही उनके ऊपर बाकी किराये का भुगतान जल्द लेने की मांग की है. कर्मचारी संघ अध्यक्ष ने बताया कि नियम और कानून सिर्फ छोटे लेवल के कर्मचारियों के ऊपर ही लागू होता है, जब बात अधिकारी स्तर की होती है तो उनके साथ दोहरा व्यवहार किया जाता है.
कोरोना काल में खाली करवाये कर्मचारियों के बंगले
कोरोना महामारी के दौरान नगर पालिका परिषद के 64 कर्मचारियों को उनके सरकारी क्वार्टर खाली करने का आदेश जारी कर दिया गया था. जबकि इस मामले में पूरी गलती पालिका परिषद की थी. जब पालिका परिषद को ऐसा लगा कर्मचारी गलत तरीके से आवेदन कर सरकारी क्वार्टर आवंटित करवा रहे हैं तो उसी समय उन्हें रोका नहीं गया. लेकिन जब आवास आवंटित कर दिया गया, उसके साल- डेढ़ साल के बाद कोरोना काल में भी उनके सरकारी आवास खाली करने का आदेश उनके घरों की दीवारों पर जाकर चिपका दिया.
कोर्ट के आदेश की अवहेलना
सुधाकर ने बताया कि टाइप फाईव बंगलों में अधिकारी पालिका परिषद का सदस्य कर्मचारी नहीं होने के बावजूद पिछले डेढ़ साल से रह रहे हैं. उनके खिलाफ कार्यवाही के लिए तत्परता नहीं दिख रही है. हैरानी इस बात की है कि कोर्ट के आदेश की भी इस मामले में अवहेलना की गई है. प्रशासन मौन है और पूर्व सदस्य बांगला खाली करवाने में असमर्थ है. प्रशासन सामर्थ्यवान सिर्फ छोटे लेवल के कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में ही है.