नई दिल्ली: राष्ट्रवादी मुस्लिम संगठन ने हमास, हिजबुल्लाह, लश्कर, अलकायदा, बोकोहराम, हिजबुल, ISIS और PFI जैसे संगठनों और उनके द्वारा फैलाए गए हिंसा और आतंकवाद के मकड़जाल की कड़ी निंदा की. साथ ही मंच ने देश की मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भी कटघरे में खड़ा किया. मंच का मानना है कि ऐसी कोई लड़ाई, असहमति या विवाद नहीं जो वार्ता के जरिए हल नहीं की जा सकती. हमास की खौफनाक आतंकी घटना ने इंसानियत को तार तार करते हुए दरिंदगी की इंतहा कर दी.
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मीडिया प्रभारी शाहिद सईद ने बताया कि दिल्ली के झंडेवालान स्थित कलाम भवन में गुरुवार को एमआरएम की एक आपात बैठक हुई. बैठक का स्वरूप ऑफ़ लाइन एवं ऑन लाइन दोनों था. इस बैठक में हमास के हरकतों की कड़ी आलोचना की गई. मंच का मानना है कि हमास द्वारा की गई मौजूदा गतिविधि कोई भी सभ्य समाज बर्दाश्त नहीं कर सकता है.
हमास पर भारत का रुख: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने हमास की आलोचना करते हुए इजरायल का पक्ष लिया है. वहीं कांग्रेस अब फिलिस्तीनी नागरिकों के अधिकारों की बात कर रही है. प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा कि भारत आतंकवाद के हर रूप की निंदा करता है और इस मुश्किल घड़ी में भारत के लोग इजरायल के साथ मजबूती से खड़े हैं. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच भी हमास की निंदा करता है और संकट के समय पूरी तरह इजरायली अवाम के साथ है.
कांग्रेस फिर से बेनकाब: मंच का कहना है कि हमास की आतंकी गरिविधियों की मुस्लिम देशों समेत दुनिया के सभी मुल्कों को विरोध करना चाहिए. कांग्रेस नेतृत्व की भी मंच ने कड़ी आलोचना की. मंच का मानना है कि आतंक की प्रकाष्ठा के बावजूद हमास की आलोचना करने की बजाए कांग्रेस उसका बचाव करने में लगी है, जो निंदनीय है.
अहिंसा और वार्ता जरूरी: मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का मानना है कि झगड़े का जो भी कारण रहें, इसका हल बात-चीत और शांतिपूर्ण तरीके से निकाला जाना चाहिए. हिंसा, अत्याचार, आतंकवाद समस्या का समाधान नहीं है. मंच ने हमास के आतंकी हमले के दौरान इजरायली नागरिकों, औरतों और बच्चों के साथ की गई क्रूरता की कड़ी भर्त्सना की.
आतंकी नहीं पढ़ते कुरान या बाइबिल: मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का मानना है कि कुरान शरीफ समेत दुनिया के हर धार्मिक ग्रंथ में अमन, अपनापन, प्यार और शांति की बात कही गई है, खून खराबे और हत्याओं को कहीं भी जायज नहीं ठहराया गया है. इस्लाम और मुसलमानों के नाम पर जितने भी जेहादी संगठन है उन सभी ने इस्लाम का नाम खराब किया है. मंच का मानना है कि इस्लाम अमन, शांति और खुशहाली का पैगाम देता है, बम, बारूद और गोलियों का नहीं.
झगड़े का केंद्र बिंदु: येरुशलम विवादित क्षेत्रों के केंद्र में है, जिसको लेकर दोनों देशों के बीच शुरू से ही ठनी हुई है. इजरायली यहूदी और फिलिस्तीनी अरब, दोनों की पहचान, संस्कृति और इतिहास येरुशलम से जुड़ी हुई है. दोनों ही इस पर अपना दावा करते हैं. यहां की अल-अक्सा मस्जिद, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित कर रखा है, दोनों के लिए बेहद अहम और पवित्र है. इस पवित्र स्थल को यहूदी 'टेंपल माउंट' बताते हैं, जबकि मुसलमानों के लिए ये ‘अल-हराम अल शरीफ’ है. यहां मौजूद 'डोम ऑफ द रॉक' को यहूदी धर्म में सबसे पवित्र धर्म स्थल कहा गया है, लेकिन इससे पैगंबर मोहम्मद का जुड़ाव होने के कारण मुसलमान भी इसे उतना ही अपना मानते हैं.
मुस्लिम नमाज यहां पढ़ सकते हैं लेकिन गैर-मुस्लिमों को यहां केवल एंट्री मिलती है. पिछले दिनों यहूदी फसल उत्सव 'सुक्कोट' के दौरान यहूदियों और इजरायली कार्यकर्ताओं ने यहां का दौरा किया था तो हमास ने इसकी निंदा की थी. हमास का आरोप था कि यहूदियों ने यथास्थिति समझौते का उल्लंघन कर यहां प्रार्थना की. इन दोनों के अलावा ईसाई धर्म के लोग भी इस स्थान पर अपना दावा ठोकते हैं. अब इतनी बड़ी आबादी के मानने वाले धर्मों की अलग अलग महत्वाकांक्षाएं हैं जिसके कारण समस्याएं रहती हैं जिसका उपाय जरूरी है. अन्यथा मासूमों के हत्याओं की आशंका बनी रहेगी.
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