नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को भाजपा नेता और पूर्व विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि सांसदों या विधायकों के खिलाफ आपराधिक शिकायत के मामलों से निपटने के लिए गठित विशेष अदालत में उन पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. क्योंकि यह तब दायर किया गया था जब वह विधायक नहीं थे.
सुनवाई के दौरान मनजिंदर सिंह सिरसा की ओर से वकील आरके हांडु ने कहा कि स्पेशल कोर्ट गठित करने के पीछे उद्देश्य था कि वर्तमान विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों की तेजी से सुनवाई हो. इस कोर्ट का क्षेत्राधिकार उन नेताओं के खिलाफ नहीं हो सकता, जिनकी विधानसभा सदस्यता खत्म हो चुकी हो. हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के अश्विनी कुमार उपाध्याय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि स्पेशल कोर्ट सांसदों और विधायकों चाहे वो वर्तमान हों या पूर्व, दोनों के खिलाफ दर्ज मामले की सुनवाई कर सकती है. हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में ऐसा कहीं नहीं कहा कि स्पेशल कोर्ट केवल वर्तमान सांसद या विधायक के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान ही दर्ज मामले की सुनवाई कर सकती है.
दरअसल, मनजिंदर सिंह सिरसा के खिलाफ मनजीत सिंह जीके ने राऊज एवेन्यू कोर्ट में आपराधिक अवमानना याचिका दायर किया है. मनजीत सिंह जीके ने सिरसा के अलावा हरमीत सिंह कालका और जगदीप सिंह कहलोन को आरोपी बनाया है. जीके की शिकायत में कहा गया है कि तीनों ने प्रेस कांफ्रेंस कर उनके खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाते हुए उन्हें गोलक चोर, कलंकित प्रधान इत्यादि शब्दों से संबोधित किया.
जीके की शिकायत में कहा गया है कि तीनों आरोपियों ने उनके खिलाफ आरोप लगाया कि उन्होंने हरिनगर स्थित गुर हरकिशन पब्लिक स्कूल की संपत्ति को अवतार सिंह हित को सौंप दिया. इसे लेकर मनजीत सिंह जीके के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई है. जीके की शिकायत में कहा गया है कि सिरसा समेत तीनों आरोपियों के उनके खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस और मीडिया में लगाए गए आरोप झूठे और मनगढ़ंत हैं. जीके की अर्जी पर सुनवाई करते हुए राऊज एवेन्यू कोर्ट ने 30 जून 2023 को संज्ञान लिया था और सिरसा समेत तीनों आरोपियों को समन जारी किया था.
समन जारी होने के बाद सिरसा ने ट्रायल कोर्ट से कहा कि आरोप 16 फरवरी 2020 के बाद का है, जब वो विधायक नहीं थे. वे 14 अप्रैल 2017 को विधायक बने और उन्होंने 11 फरवरी 2020 को विधायकी छोड़ दी. ऐसे में एमपी-एमएलए कोर्ट को उनके खिलाफ दर्ज केस को सुनने का अधिकार नहीं है. ट्रायल कोर्ट ने सिरसा की अर्जी खारिज कर दी, जिसे उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.