नई दिल्ली: दिल्ली सरकार की साहित्य कला परिषद, कला, संस्कृति और भाषा विभाग ने गालिब की याद में सांस्कृतिक कार्यक्रम 'रिमेम्बरिंग गालिब' की शुरुआत की. बुधवार को इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में आयोजित इस कार्यक्रम में प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना डॉ. उमा शर्मा ने प्रख्यात लेखक एवं राजनयिक पवन के. वर्मा की पुस्तक से प्रेरणा लेते हुए कथक भाव से मंच पर ग़ालिब के जीवन को जीवंत कर दिया. तीन दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम का आज यानी 28 दिसंबर को समापन हो जाएगा.
27 दिसंबर 1797 में आगरा में जन्में मिर्जा हेग असदुल्ला खान जिन्हें प्यार से आप मिर्जा गालिब के नाम से जानते हैं. उनकी याद में इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. नृत्य की शुरुआत ग़ालिब की काव्यात्मक अभिव्यक्ति, 'मुद्दत हुई है यार को मेहमां किए हुए.. से हुई, जो जुए खेलने के दौरान उनकी शुरुआती खुशी और अच्छे स्वास्थ्य को दर्शाती है.
इसके बाद, दर्शक देखते हैं कि ग़ालिब के जीवन में तब उथल-पुथल मच गई जब वह शराब की लत में पड़ गए और उन्हें जुए संबंधित अपराधों के लिए गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि निजी जीवन की दिक्कतों के बावजूद उनकी ग़ज़लों को खूब सराहा गया. ग़ालिब ने एक दरबारी नर्तक के साथ अपने स्नेहपूर्ण रिश्ते को दर्शाते हुए भावुकता से लिखा है कि
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है
न शो'ले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा
कोई बताओ कि वो शोख़-ए-तुंद-ख़ू क्या है
यह गजल आज भी लोगों की जुबां पर है. ग़ालिब ने कठिन समय के दौरान अपने अकेलेपन पर कई गजल लिखा है. वे अपने पीछे गजलों की विरासत छोड़ गए. उनके कई शेर माहौल में मदहोशी घोल देते हैं और टूटे हुए दिल की दास्तां भी सुनाते हैं. गालिब की शायरी का दर्द कहीं ना कहीं उनके जीवन की कहानी था. जो उनके इसी दर्द को बयां करती है.