नई दिल्लीः गुरुवार को दंगे के मामले से जुड़े 2 अधिवक्ताओं के दफ्तर पर हुई छापेमारी को लेकर दिल्ली पुलिस की तरफ से बयान जारी किया गया है. दिल्ली पुलिस का आरोप है कि एक अधिवक्ता ने जहां जांच में सहयोग किया, तो वहीं दूसरे अधिवक्ता महमूद प्राचा ने उनकी टीम का विरोध किया. इसे लेकर उन्होंने निजामुद्दीन थाने में शिकायत भी दर्ज कराई है.
डीसीपी मनीषी चंद्रा के अनुसार स्पेशल सेल द्वारा 22 अगस्त 2020 को फर्जीवाड़े सहित विभिन्न धाराओं में एक मामला दर्ज किया गया था. यह मामला अदालत के उस आदेश पर दर्ज किया गया था जिसमें फर्जी दस्तावेज अदालत के समक्ष जमा कराए गए थे. अदालत में जो दस्तावेज जमा कराए गए थे, उनमें एक नोटरी ऐसे अधिवक्ता की लगाई गई थी, जिसका देहांत 3 साल पहले हो चुका है. इसके अलावा एक फर्जी शिकायत भी अदालत के समक्ष जमा कराई गई. इस मामले की जांच कर रही स्पेशल सेल ने अदालत से दोनों अधिवक्ता के घर पर दफ्तर पर छापेमारी करने की अनुमति मांगी थी, ताकि वहां से दस्तावेज बरामद किए जा सके.
अधिवक्ता जावेद अली ने किया जांच में सहयोग
24 दिसंबर को अदालत से अनुमति लेकर स्पेशल सेल की टीम ने अधिवक्ता जावेद अली और महमूद प्राचा के दफ्तरों पर छापा मारा. इस छापेमारी में गवाह के अलावा वर्दी में पुलिसकर्मी, महिला पुलिसकर्मी और वीडियोग्राफर भी रखे गए थे. यमुना विहार में जावेद अली ने सर्च वारंट देखकर पुलिस टीम को पूरी तरीके से सहयोग किया. वहां से जब्त की गई हार्ड डिस्क की एक कॉपी भी अधिवक्ता को दी गई, ताकि उनका काम बाधित ना हो. रात लगभग एक बजे तक उनके यहां छापेमारी चली और वहां से स्पेशल सेल की टीम लौट आई.
महमूद प्राचा करते रहे विरोध
स्पेशल सेल की दूसरी टीम महमूद प्राचा के निजामुद्दीन स्थित दफ्तर पर छापेमारी के लिए गई थी. उन्हें अधिवक्ता एवं उनके सहयोगियों से खासे विरोध का सामना करना पड़ा. उन्होंने पुलिस टीम की जांच को बाधित करने की कोशिश की. अधिकारियों का आरोप है कि पुलिस टीम के साथ उन्होंने अभद्र व्यवहार किया. कंप्यूटर की जांच करने में भी उन्होंने बाधा पहुंचाई. इस पूरी घटना की वीडियो रिकॉर्डिंग करने के साथी स्पेशल सेल ने लोकल पुलिस में भी इस बाबत शिकायत दी है.