नई दिल्लीः दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव के परिणाम आ चुके हैं. अनुमान के अनुसार ही आम आदमी पार्टी ने स्पष्ट जीत दर्ज कर एमसीडी की सत्ता पर काबिज होने के लिए कमर कस ली है. हालांकि, एक दिन पूर्व आए एक्जिट पोल से पहले न तो आपको इस जीत का अनुमान था और न ही भाजपा को इस निराशाजनक हार का. लेकिन एक्जिट पोल के नतीजे आते ही आप के नेताओं ने विजय जुलूस के बैनर पोस्टर तैयार कर लिए थे, जो रिजल्ट की घोषणा के साथ ही सड़कों पर दिखने लगे.
एमसीडी के लिए गत रविवार को हुई वोटिंग के बाद एक्जिट पोल के सुर में सुर मिलाते हुए आप नेताओं ने भी कहा था कि पूरी उम्मीद है कि ऐसे ही परिणाम आएंगे. ईटीवी भारत की टीम वोटिंग खत्म होने पर जब प्रमुख पार्टियों के कार्यलयों का जायजा लेने शाम को पहुंची तो नजारा कुछ उल्टा ही दिखा. उम्मीद के विपरीत आप के दफ्तर में सन्नाटा था और बीजेपी के दफ्तर में सर्वाधिक चहल पहल.
भाजपा के लोग तब तक मानने को तैयार नहीं थे कि एमसीडी की सत्ता उनके हाथ से निकलने वाली है. ऐसा होने के कारण भी थे. लगातार 15 साल से पार्टी चुनाव जीत रही थी. मोदी जैसा बड़ा ब्रांड-नेम था उनके पास, लेकिन स्थानीय चुनाव का एक अलग मिजाज होता है, यह वे भूल गए थे. लगातार नकारात्मक और अत्याधिक आक्रामक चुनाव प्रचार का वही हस्र हुआ, जब अटल आडवाणी के समय स्व. प्रमोद महाजन की सोच के अनुरूप भाजपा ने "इंडिया शाइनिंग" का नारा देकर आक्रामक चुनाव प्रचार किया था. इतिहास गवाह है कि आक्रमकता को हमारे देश की जनता स्वीकार नहीं करती. फिर राजनधानी दिल्ली के लोग तो सर्वाधिक जागरूक माने जाते हैं.
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BJP की हार के 5 कारणः जब हम आप की जीत और भाजपा की हार के कारणों की पड़ताल करते हैं तो पांच प्रमुख कारण निकलकर सामने आते हैं. इसमें भाजपा नेताओं का अति आत्मविश्वास सबसे ऊपर आता है. इसके साथ ही ग्राउंड लेबल के नेता और कार्यकर्ता नाराज थे, लेकिन भाजपा के किसी बड़े नेता ने उनको मनाने या समझाने की कोशिश नहीं की. लिहाजा वे इस प्रचार से दूर रहे. कमिटमेंट के कारण आप की तरफ नहीं गए और नाराजगी के कारण भाजपा का साथ नहीं दिया. अगर वे नाराज होकर दूसरे खेमें में चले जाते तो रिजल्ट का अंतर कुछ और बड़ा होता.
भाजपा का एग्रेसिव प्रेस कांफ्रेंस, स्टिंग के लगातार खुलासे और नकारातमक प्रचार भी जनता को रास नहीं आया. इसका असर कुछ कम हो सकता था, अगर मोदी इस चुनाव प्रचार का मोर्चा संभाल लेते या एक-दो सभाएं और रोड-शो कर देते. मगर अपनी व्यवस्तता और गुजरात में अत्यधिक समय देने के कारण वे एमसीडी के चुनाव प्रचार से दूर रहे, जबकि स्थानीय नेता कमल के फूल और मोदी का चेहरा दिखाकर ही जनता में गए थे. इस तरह केजरीवाल और सिसोदिया की जोड़ी इस जीत का सेहरा बंधवाने में कामयाब रही.
जीत के साथ मिली जिम्मेदारीः जीत मिली तो जिम्मेदारी भी साथ ले आई है. केजरीवाल-सिसोदिया की जोड़ी ने दिल्ली में डबल इंजिन की सरकार का नारा दिया था तो जनता ने डबल इंजिन लगा दिया लेकिन अब आगे का सफर और चुनौतीपूर्ण हो गया है. दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने, कूड़े के पहाड़ साफ करने के साथ ही नगर निगम के जिन स्कूलों की बदहाली का रोना आप के नेता रोते आए हैं, उन्हें ठीक करना, निगम के 15 हजार करोड़ के बजट का सदुपयोग करते हुए अपने विकास रथ को तेजी से खींचना आप की जिम्मेदारी बन गई है. दिल्ली पुलिस को छोड़ दें तो अब पूरी दिल्ली उनके हवाले है. साथ ही जनता का भरपूर विश्वास. अगर इसपर खरे नहीं उतरे तो राष्ट्रीय पार्टी बनकर भी आगे का राजनीतिक सफर उनका सुगम नहीं होगा. एक और बड़ी चुनौती सुरसा की तरह मुंह बाये उनका इंतेजार कर रही है और वो है निगम के हजारों करोड़ के घाटे को समय पर पाटना.