नई दिल्ली: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने शनिवार को इंट्रा ओकुलर इम्प्लांट एंड रिफ्रैक्टिव सोसाइटी ऑफ इंडिया (आईआईआरएसआई) की दो दिवसीय बैठक का उद्घाटन किया. वार्षिक बैठक के इस साल के संस्करण में भारत और विदेशों के 1000 से अधिक नेत्र रोग विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया. इस कार्यक्रम में सबसे अहम स्मूथ इंसान लेंटीकुल केराटोमिलेसिस (SILK) प्रक्रिया की शुरूआत थी. इस तकनीक में नेत्र रोगियों को चश्मे या संपर्क लेंस के बिना क्लियर विजन मिलता है.
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि रोकथाम योग्य अंधापन में मोतियाबिंद, अपवर्तक त्रुटियां, ग्लूकोमा और डायबिटिक रेटिनोपैथी सहित कई कंडिशन होती है. अच्छी खबर यह है कि इनमें से कई स्थितियां न केवल इलाज योग्य है, बल्कि समय पर हस्तक्षेप और जागरूकता से इसकी रोकथाम भी की जा सकती है. दृष्टि सुधार प्रौद्योगिकी का विकास राष्ट्र के लिए उपयोगी होता है.
तकनीकी प्रगति ने आज के दौर में आम से लेकर सबसे जटिल बीमारियों के इलाज को भी संभव बना दिया है. हमारे दैनिक कामों को करने, विचार करने और हमारे जीवन में चीजों का आविष्कार करने में एक सही दृष्टि होना बहुत महत्वपूर्ण है. सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ आई हॉस्पिटल्स के अध्यक्ष प्रो. डॉक्टर महिपाल एस सचदेव ने बताया कि सिल्क प्रक्रिया मायोपिया रोगियों के लिए नई उम्मीद देती है, जिससे उन्हें चश्मे या संपर्क लेंस के बिना क्लियर विजन मिलता है. भारतीय नेत्र रोग विशेषज्ञों ने इस नवीनतम तकनीक के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जो अब पूरे भारत में चुनिंदा केंद्रों पर उपलब्ध है.
मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया में कॉर्निया के अंदर एक छोटा डिस्क के आकार का लेंस बनता है, जिसे लेंटिकुल के रूप में जाना जाता है. इस लेंस (लेंटिकुल) को छोटे से चीरे के जरिए बहुत ही सावधानी से हटा दिया जाता है, जिससे रोगियों को जीवंत दृष्टि प्रदान करने के लिए कॉर्निया को फिर से आकार दिया जाता है. मायोपिया में वृद्धि के साथ अपवर्तक सर्जरी एक उभरती हुई आवश्यकता है, जबकि मोतियाबिंद हमारे देश में रोकथाम योग्य अंधापन का सबसे आम कारण बना हुआ है.
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