नई दिल्ली: 29 अक्टूबर का दिन विश्व स्ट्रोक दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को लोगों में मस्तिष्क आघात (ब्रेन स्ट्रोक) जैसी गंभीर समस्या के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है. भारत ही नहीं पूरे विश्व में स्ट्रोक के मरीजों की संख्या हर साल बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही है, जो एक गंभीर स्थिति उत्पन्न करती है. ब्रेन स्ट्रोक पूरी दुनिया में मौत का दूसरा बड़ा कारण है एवं विकलांगता का तीसरा बड़ा कारण. शोधकर्ताओं के अनुसार हर साल लगभग 18 लाख लोग स्ट्रोक से पीड़ित होते हैं. भारत में प्रति एक लाख लोगों पर हर साल 145 लोग स्ट्रोक के शिकार होते हैं. हर एक मिनट में तीन भारतीयों को स्ट्रोक होता है. पहले यह बीमारी अक्सर बुजुर्गों में होती थी लेकिन अब युवा पीढ़ी में भी बड़ी संख्या में देखने को मिल रही है.
क्या होता है स्ट्रोक या ब्रेन स्ट्रोक: जीबी पंत अस्पताल में न्यूरोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. देवाशीष चौधरी का कहना है कि स्ट्रोक मतलब ब्रेन अटैक. इसको हम बोलचाल की भाषा में दिमाग का दौरा पड़ना भी कहते हैं. इसके दो स्वरूप होते हैं. जब दिमाग में रक्त का प्रवाह करने वाली कोशिका या धमनी में रुकावट आ जाती है तो इस स्थिति को ब्रेन स्ट्रोक कहा जाता है. वही जब दिमाग में रक्त का प्रभाव करने वाली कोई कोशिका या धमनी फट जाती है और इससे ब्लीडिंग हो जाती है तो इसे ब्रेन हेमरेज कहते हैं. डॉ देवाशीष चौधरी बताते हैं कि ब्रेन के जिस हिस्से में यह स्ट्रोक आता है वह हिस्सा क्षतिग्रस्त हो जाता है. ऐसे में स्थिति के हिसाब से लक्षण आते हैं.
ब्नेन स्ट्रोक आने पर क्या करें: स्ट्रोक आने पर जितनी जल्दी हो सके मरीज को ऐसी जगह ले जाने का प्रयास करें जहां स्ट्रोक के इलाज की सुविधा उपलब्ध हो. डॉक्टर देवाशीष चौधरी ने बताया कि स्ट्रोक आने पर एक घंटे के अंदर अगर मरीज अस्पताल पहुंच जाता है और उसे समय पर इलाज मिल जाता है तो उसके बचने की अधिक संभावना रहती है. वह सामान्य तरीके से ठीक हो जाता है. स्ट्रोक के मरीज को अधिकतम साढ़े चार घंटे में इलाज मिलना अति आवश्यक होता है. इतने समय तक भी अगर मरीज अस्पताल पहुंच जाता है तो उसकी स्थिति को गंभीर होने से रोका जा सकता है. समय पर इलाज से मरीज के क्लॉट को पिघलाकर निकाला जा सकता है. इस प्रक्रिया को थंबोलाइसिस कहते हैं. समय पर इलाज न मिलने से मरीज के ब्रेन में दबाव बढ़ता है, जिससे मौत हो जाती है.
ये भी पढ़ें: Pollution Effect on Pregnant Lady: प्रदूषण के कुप्रभावों से बचने के लिए गर्भवती महिलाए करें यह काम
सालभर में 30 प्रतिशत मौतें दर्ज: डॉ देवाशीष चौधरी ने बताया कि स्ट्रोक आने के बाद 30 प्रतिशत मरीजों की मौत एक साल के अंदर हो जाती है. इसका बड़ा कारण यह है कि लोग अपनी सेहत का ख्याल नहीं रखते और लापरवाही बरतते हैं. स्ट्रोक आने के बाद 40 प्रतिशत मरीजों में किसी न किसी तरह की दिव्यांगता जरूर रहती है. या वह ठीक से चल फिर नहीं पाते या उनके शरीर का आधा हिस्सा काम नहीं करता है. कुछ मरीजों में देखने की भी समस्या होती है. जीबी पंत हॉस्पिटल में ब्रेन स्ट्रोक के 500 से ज्यादा गंभीर मामले हर महीने आते हैं. जीबी पंत हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर देवाशीष चौधरी के अनुसार पंत अस्पताल में इमरजेंसी में प्रतिदिन 12 से 15 मरीज स्ट्रोक आने के बाद आपातकालीन स्थिति में पहुंचते हैं, जहां उनका इलाज होता है.
ये भी पढ़ें: Use of Dating Apps: डेटिंग ऐप्स पर दोस्ती करने वाले सावधान! EXPERT से जानिए कैसे रहें सुरक्षित?