नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अविवाहित युवती के गर्भ में पल रहे 23 हफ्ते से ज्यादा के भ्रूण को हटाने की मांग वाली याचिका को शनिवार को खारिज कर दिया. इस पर कानून के जानकारों का कहना है कि एमटीपी कानून में जो संशोधन किया गया है, उसके मुताबिक 24 हफ्ते के भ्रूण को भी हटाने की अनुमति दी जा सकती है लेकिन जिन परिस्थितियों के तहत वो अनुमति दी जानी है, उसे देखकर कहा जा सकता है कि सैद्धांतिक रूप से अभी गर्भपात कराने की अनुमति 20 हफ्ते से ज्यादा अवधि के लिए नहीं है. अधिवक्ताओं ने ईटीवी भारत की टीम को बताया कि किन परिस्थितियों में लोगों को एमटीपी कानून के नए संशोधन का लाभ मिल सकता है.
दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करनेवाले वकील अरुण गुप्ता बताते हैं एमटीपी एक्ट 1971 में गर्भावस्था के निस्तारण का प्रावधान है, उसके तहत 20 हफ्ते तक के भ्रूण को हटाया जा सकता है. लेकिन 2021 में जो संशोधन किया गया उसमें 20 हफ्ते की सीमा को 24 हफ्ते कर दिया. अरुण गुप्ता बताते हैं कि जस्टिस पुट्टुस्वामी बनाम भारत सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रजनन एक महिला का कानूनी अधिकार है.
एमटीपी और बांबे हाई कोर्टः एडवोकेट अरुण गुप्ता ने बताया कि बांबे हाईकोर्ट का एक फैसला है जिसमें कहा गया है कि किसी को भी जबरन माता बनने के लिए नहीं कहा जा सकता है. अगर किसी का रेप हुआ हो और उसे माता बनने के लिए कहा जाए, ये उसके लिए जिंदगी भर मानसिक प्रताड़ना की बात होगी. अगर भ्रूण का अंग ठीक से विकसित नहीं हुआ हो या कोई अंग काम नहीं कर रहा हो तो भी भ्रूण को हटाने की अनुमति दी जा सकती है. ऐसे में सैद्धांतिक रूप से 20 हफ्ते की ही सीमा कायम है.
चिकित्सक डॉ. अमरेंद्र झा बताते हैं एमटीपी एक्ट 1971 के तहत अगर कोई 12 हफ्ते के भ्रूण वाली महिला है और उसके भ्रूण की वजह से उसके शारीरिक या मानसिक परेशानी होने या भ्रूण में कोई विकार आने की आशंका हो तो वो एक रजिस्टर्ड डॉक्टर से अपना भ्रूण हटवा सकती है. 12 हफ्ते से 20 हफ्ते के भ्रूण को हटाने के लिए दो डॉक्टरों के पैनल के जरिये भ्रूण हटवाया जा सकता है.
एमटीपी कानून में नए संशोधन के मुताबिक भ्रूण हटवाने की 24 हफ्ते की सीमा शर्तों के साथ है, अगर महिला रेप पीड़िता हो, नाबालिग हो , उसके अंदर विकलांगता हो या जबरन शादी की गई है या भ्रूण में विकार की आशंका है तो मेडिकल बोर्ड की अनुमति के बाद ही भ्रूण को हटाने की अनुमति दी जा सकती है.