नई दिल्ली: राजधानी के दिल कनॉट प्लेस से सटे गोल मार्केट का इतिहास बहुत पुराना है. जब दिल्ली को राजधानी घोषित किया गया था, तब दिल्ली को डिजाइन करने वाले सर एडविन लुटियन ने सन् 1921 में गोल मार्केट का निर्माण करवाया था.
1921 में हुआ था निर्माण
1921 में ब्रिटिश नौकरशाहों और भारतीय सरकारी कर्मचारियों के लिए गोल मार्केट बनाई गई थी. जिसमें सब्जी, अंडे और मछलियों की बिक्री होती थी. साथ ही इसमें कई दुकानें भी खोली गई थी. उस समय इसमें एक इंस्टिट्यूट भी चलाया जाता था.
चौराहे के बीच में बनी गोल इमारत
गोल मार्केट इसलिए भी खास है क्योंकि जब दिल्ली को राजधानी घोषित किया गया, तभी मार्केट का भी निर्माण हुआ था. यानी कि गोल मार्केट से राजधानी दिल्ली का इतिहास जुड़ा हुआ है. इसे गोल मार्केट इसलिए कहा जाता है क्योंकि रोड के चौराहे के बीचो-बीच गोलाई वाले आकार की बनी इमारत बेहद ही आकर्षित है. इसे आसपास के अधिकारियों के दफ्तरों को ध्यान में रखते हुए बीच में बनाया गया था. जिसके बाद इसका नाम गोल मार्केट रखा गया.
'नई दिल्ली म्यूजियम' में किया जाएगा तब्दील
आज गोल्ड मार्केट अपना वजूद खोती हुई नजर आ रही है, क्योंकि गोल मार्केट को 'नई दिल्ली म्यूजियम' बनाए जाने वाले प्रस्ताव के चलते सील किया हुआ है. जिसके कारण इस मार्केट की सुंदरता खो रही है. एनडीएमसी ने बेजान पड़े गोल मार्केट को रंगत देने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन व्यापारियों के विरोध की वजह से यह काम रुका हुआ है.
गोल मार्केट के इतिहास को जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम जब यहां पहुंची तो हमने देखा कि गोल मार्केट में स्थित तमाम इमारतें जर्जर हो चुकी है. जिन्हें रंगाई पुताई की बेहद आवश्यकता है. वही यहां की गलियों में दिल्ली की वह प्राचीन तस्वीर नजर आती है. जो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है.