नई दिल्ली: दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली हिंसा के मामले में भले ही कुछ खबरों में ये चित्रित किया जा रहा है कि ये हिन्दू विरोधी था लेकिन इस हिंसा में हर समुदाय पर असर पड़ा था. चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट दिनेश कुमार ने उमर खालिद की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की जिसमें उसने अपने खिलाफ हो रही मीडिया रिपोर्टिंग और चार्जशीट के लीक होने पर सवाल खड़े किए थे.
'दंगा हिन्दू विरोधी नहीं था'
उमर खालिद के वकील की ओर से कुछ मीडिया खबरों को कोर्ट में पेश किया गया था. एक खबर की शुरुआत “Radical Islamist and Anti Hindu Delhi Riots accused Umar Khalid....” से की गई थी. कोर्ट ने कहा कि इस खबर में ये बताने की कोशिश की गई थी कि दिल्ली दंगा हिन्दू विरोधी था. लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं था. दरअसल इस दंगे में सभी समुदायों के लोगों पर असर पड़ा था. ऐसी खबरों के जरिये ये कहा गया कि उमर खालिद ने दिल्ली दंगों की साजिश रची जो उसने अपने बयान में स्वीकार किया. लेकिन ये कोर्ट का काम है कि वो ट्रायल करे.
'खबर छापने से पहले वेरिफिकेशन करें मीडियाकर्मी'
कोर्ट ने मीडिया के रिपोर्टर्स से उम्मीद जताई कि वे खबरों की रिपोर्टिंग करते समय स्वनियमन का पालन करें. खासकर उन मामलों में जिनमें केस कोर्ट के समक्ष लंबित हो और किसी पक्ष के प्रति भेदभाव नहीं हो. कड़कड़डूमा कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उद्धृत करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति की छवि ही उसका सबसे बड़ा धन होती है. मीडिया की ओर से किया गया कोई भी कार्य जिससे किसी पक्ष की गरिमा को नुकसान होता हो, संबंधित पक्षकार के संविधान प्रदत्त अधिकारों का हनन है. कोर्ट ने मीडियाकर्मियों को किसी भी खबर को छपने से पहले उसका वेरिफिकेशन करने की सलाह दी.
मीडिया ट्रायल चलाने का आरोप
पिछले 14 जनवरी को सुनवाई के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये पेशी के बाद उमर खालिद ने कहा था कि उसके खिलाफ जानबूझकर मीडिया ट्रायल चल रहा है. उसके खिलाफ ऐसे रिपोर्टिंग की जा रही है जैसे वह दोषी है. उसने कहा कि इससे निष्पक्ष ट्रायल पर असर पड़ सकता है. उमर खालिद ने कहा था कि पहले की सुनवाई के दौरान उसने कोर्ट में ये बातें रखी थीं. उसके बावजूद भी फ्रंट पेज की खबर बन रही है कि उमर खालिद और ताहिर हुसैन ने दंगों की साजिश रची.
यह तब है जब कि डिस्क्लोजर स्टेटमेंट में साफ लिखा गया है कि हस्ताक्षर करने से मना किया गया. इसका सीधा मतलब है कि पुलिस कुछ भी लिख सकती है. इन बयानों की कानूनी तौर पर कोई मान्यता नहीं है. इस पर कोर्ट ने कहा था कि ये मामला हमारे पास है और हम कुछ बोलना नहीं चाहते. कोर्ट ने उमर खालिद से कहा था कि अगर वो चाहता है, तो वो अपने वकील को कहे कि संबंधित मीडिया रिपोर्ट को अर्जी में शामिल करे.
'चार्जशीट मिलने के पहले ही लीक कर दी गई'
पिछले 7 जनवरी को सुनवाई के दौरान उमर खालिद ने आरोप लगाया था कि जब उसे चार्जशीट नहीं मिली थी. उसके पहले से ही वो मीडिया में लीक कर दी गई थी. कोर्ट ने इस मामले पर दिल्ली पुलिस को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था. उमर खालिद ने कोर्ट को बताया था कि उसे चार्जशीट की कॉपी मिल चुकी है. उमर खालिद ने चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट दिनेश कुमार को बताया था कि उसने चार्जशीट में बताए गए किसी बयान पर हस्ताक्षर नहीं किया है. कोई भी व्यक्ति उस कागज पर लिख सकता है. उमर खालिद ने कहा था कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि चार्जशीट कोर्ट में आने से पहले ही सार्वजनिक हो जाती है.
'दिल्ली पुलिस पर नहीं है भरोसा'
उमर खालिद ने कहा था कि वो पिछले 4 महीने से हिरासत में है. उसके खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाए गए हैं. उसके बारे में अखबारों में खबरें पढ़कर काफी चिढ़ होती है. उमर खालिद ने कहा था कि उसे दिल्ली पुलिस पर बिल्कुल भरोसा नहीं है, केवल कोर्ट पर भरोसा है. उसने कोर्ट से आग्रह किया था कि ऐसी घटना आगे नहीं हो. उसके बाद कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से इस मामले में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.
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पूरक चार्जशीट पर लिया था संज्ञान
बता दें कि 24 नवंबर 2020 को कोर्ट ने उमर खालिद, शरजील इमाम और फैजान खान के खिलाफ दायर पूरक चार्जशीट पर संज्ञान लिया था. दिल्ली पुलिस की स्पेशल ने उमर खालिद, शरजील इमाम और फैजान खान के खिलाफ 22 नवंबर 2020 को पूरक चार्जशीट दाखिल की गई थी. इसमें स्पेशल सेल ने यूएपीए की धारा 13, 16, 17, और 18 के अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 109, 124ए, 147, 148, 149, 153ए, 186, 201, 212, 295, 302, 307, 341, 353, 395, 419, 420, 427, 435, 436, 452, 454, 468, 471 और 43 के अलावा आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 और प्रिवेंशन आफ डेमेज टू पब्लिक प्रोपर्टी एक्ट की धारा 3 और 4 के तहत आरोप लगाए गए हैं.