नई दिल्ली : दक्षिणी दिल्ली स्थित सिद्धपीठ कालकाजी मंदिर में कालका मां के दर्शन के बाद बाजार से गुजरते हुए श्रद्धालु अक्सर झूला झूल कर ही अपनी यात्रा पूरी करते हैं. बच्चों की जिद्द पर माता-पिता उन्हें मंदिर परिसर में मौजूद झूले झुलाते हैं और फिर अपने घर को लौट जाते हैं, लेकिन इस कोरोना काल का असर झूला कारोबार पर भी पड़ा है.
Kalka Ji Temple के झूला कारोबारी मोहम्मद यूसुफ ने ईटीवी भारत को बताया कि पिछले 2 साल से लाखों रुपये का नुकसान हो चुका है और अब जब मंदिर खुल गया है तब भी बहुत कम लोग हैं, जो Jhoola झूलने के लिए आ रहे हैं.
उन्होंने बताया कि वह मेले और त्योहारों पर भी अपने झूले लगाते हैं, लेकिन पिछले 2 साल से कारोबार पूरी तरीके से ठप है, न तो मेलों का आयोजन हो रहा है और न ही दिवाली दशहरे पर झूले लगाए जा रहे हैं, जिसके कारण पिछले 2 साल से वह लाखों रुपये का नुकसान झेल चुके हैं. वहीं जो लोग इस कारोबार से जुड़े हैं, उन मजदूरों को भी पैसा देना पड़ता है क्योंकि वह लोग हमारे साथ ही रहते हैं.
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मोहम्मद यूसुफ की पत्नी मुन्नी बेगम ने बताया पिछले 26 सालों से मंदिर में Jhoola का कारोबार कर रहे हैं. शुरुआत में ₹6000 यहां झूले लगाने का किराया देते थे, लेकिन अब ₹20,000 किराया देते हैं. हालात यह है कि कई बार महीने में किराया और यहां काम कर रहे मजदूरों की तनख्वाह तक नहीं निकल पाती.
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साथ ही उन्होंने मंदिर में झूले का कारोबार करने को लेकर कहा कि यहां सब मिलजुल कर रहते हैं, जो श्रद्धालु दर्शन करके आते हैं. हम उन्हें झूला झूलाते हैं और वह बहुत खुश होकर यहां से जाते हैं.
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