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हिंदी दिवस: प्रोफेसर चंद्रदेव यादव ने बताई हिंदी की असली परिभाषा

देश आज हिंदी दिवस मना रहा है. हिंदुस्तान में हिंदी की सार्थकता और प्रासंगिकता पर चर्चा हो रही है. इसी को लेकर ईटीवी भारत ने खास बातचीत की, जामिया में हिंदी के प्रोफेसर और हिंदी के आलोचक चंद्रदेव यादव से.

प्रो. चंद्रदेव से खास बातचीत
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Published : Sep 14, 2019, 5:43 PM IST

Updated : Sep 14, 2019, 6:05 PM IST

नई दिल्ली: वर्तमान समय में हिंदी की प्रासंगिकता और सार्थकता को लेकर ईटीवी भारत ने जामिया के प्रोफेसर चंद्रदेव यादव से बातचीत की. उन्होंने बताया कि हिंदी की बात सिर्फ एक दिन नहीं होनी चाहिए.

हिन्दी दिवस पर प्रो. चंद्रदेव से खास बातचीत
हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से हिंदी के इर्द-गिर्द है और ऐसे में हिंदी हमारी न सिर्फ आजीविका, बल्कि जीवन यापन से भी जुड़ी है.

'बनी रहे हिंदी की मूल भावना'
प्रोफेसर चंद्रदेव ने कहा कि हिंदी को इसके विस्तृत दायरे में देखा जाना चाहिए और कोशिश होनी चाहिए कि हिंदी की जो मूल भावना है, वो बनी रहे. उन्होंने कहा कि हमारे पास हिंदी में ऐसे शब्दों का अथाह सागर है, जिन्हें हम रोजमर्रा में इस्तेमाल कर सकते हैं या जो मीडिया इस्तेमाल कर सकता है. लेकिन उसकी जगह पर क्लिष्ट भाषा का इस्तेमाल होता है.

'उदार प्रवृति की है हिंदी'
प्रोफेसर ने उदाहरण देते हुए कहा कि हम नदी का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन लोग दरिया लिखने लगते हैं. इसे लेकर भी चर्चा होती रही है कि हिंदी को उदार भाव से अपनाया जाना चाहिए और इसमें बाकी भाषाओं के शब्दों को भी समाहित करना चाहिए जैसा अंग्रेजी में होता है. इस चर्चा को लेकर चन्द्रदेव यादव का कहना था कि हिंदी पहले से ही उदार प्रवृत्ति की है और इसमें कई ऐसे शब्द हैं, जो दूसरी भाषाओं के हैं.

चंद्रदेव यादव का जोर इस बात पर रहा कि हिंदी की मूल भावना को बनाए रखते हुए उसे वर्तमान समय से जोड़ने की कोशिश होनी चाहिए और उन्होंने इसे लेकर प्रसन्नता भी जाहिर की कि ऐसी कोशिशें हो भी रही हैं और क्रम बना रहना चाहिए लेकिन हिंदी की जरूरत और इससे अपने सम्बन्धों को एक दिन की रस्म अदायगी से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.

नई दिल्ली: वर्तमान समय में हिंदी की प्रासंगिकता और सार्थकता को लेकर ईटीवी भारत ने जामिया के प्रोफेसर चंद्रदेव यादव से बातचीत की. उन्होंने बताया कि हिंदी की बात सिर्फ एक दिन नहीं होनी चाहिए.

हिन्दी दिवस पर प्रो. चंद्रदेव से खास बातचीत
हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से हिंदी के इर्द-गिर्द है और ऐसे में हिंदी हमारी न सिर्फ आजीविका, बल्कि जीवन यापन से भी जुड़ी है.

'बनी रहे हिंदी की मूल भावना'
प्रोफेसर चंद्रदेव ने कहा कि हिंदी को इसके विस्तृत दायरे में देखा जाना चाहिए और कोशिश होनी चाहिए कि हिंदी की जो मूल भावना है, वो बनी रहे. उन्होंने कहा कि हमारे पास हिंदी में ऐसे शब्दों का अथाह सागर है, जिन्हें हम रोजमर्रा में इस्तेमाल कर सकते हैं या जो मीडिया इस्तेमाल कर सकता है. लेकिन उसकी जगह पर क्लिष्ट भाषा का इस्तेमाल होता है.

'उदार प्रवृति की है हिंदी'
प्रोफेसर ने उदाहरण देते हुए कहा कि हम नदी का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन लोग दरिया लिखने लगते हैं. इसे लेकर भी चर्चा होती रही है कि हिंदी को उदार भाव से अपनाया जाना चाहिए और इसमें बाकी भाषाओं के शब्दों को भी समाहित करना चाहिए जैसा अंग्रेजी में होता है. इस चर्चा को लेकर चन्द्रदेव यादव का कहना था कि हिंदी पहले से ही उदार प्रवृत्ति की है और इसमें कई ऐसे शब्द हैं, जो दूसरी भाषाओं के हैं.

चंद्रदेव यादव का जोर इस बात पर रहा कि हिंदी की मूल भावना को बनाए रखते हुए उसे वर्तमान समय से जोड़ने की कोशिश होनी चाहिए और उन्होंने इसे लेकर प्रसन्नता भी जाहिर की कि ऐसी कोशिशें हो भी रही हैं और क्रम बना रहना चाहिए लेकिन हिंदी की जरूरत और इससे अपने सम्बन्धों को एक दिन की रस्म अदायगी से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.

Intro:देश आज हिंदी दिवस मना रहा है. हिंदुस्तान में हिंदी की सार्थकता और प्रासंगिकता पर चर्चा हो रही है. इसी को लेकर ईटीवी भारत ने खास बातचीत की, जामिया में हिंदी के प्रोफेसर और हिंदी के आलोचक चंद्रदेव यादव से.


Body:नई दिल्ली: वर्तमान समय में हिंदी की प्रासंगिकता और सार्थकता को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में चंद्रदेव यादव ने कहा कि हिंदी की बात सिर्फ एक दिन नहीं होनी चाहिए. हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से हिंदी के इर्द-गिर्द है और ऐसे में हिंदी हमारी न सिर्फ आजीविका, बल्कि जीवन यापन से भी जुड़ी है.

उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी को इसके विस्तृत दायरे में देखा जाना चाहिए और कोशिश होनी चाहिए कि हिंदी की जो मूल भावना है, वह बनी रहे. उन्होंने कहा कि हमारे पास हिंदी में ऐसे शब्दों का अथाह सागर है, जिन्हें हम रोजमर्रा में इस्तेमाल कर सकते हैं या जो मीडिया इस्तेमाल कर सकता है. लेकिन उसकी जगह पर क्लिष्ट भाषा का इस्तेमाल होता है.

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हम नदी का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन लोग दरिया लिखने लगते हैं. इसे लेकर भी चर्चा होती रही है कि हिंदी को उदार भाव से अपनाया जाना चाहिए और इसमें बाकी भाषाओं के शब्दों को भी समाहित करना चाहिए जैसा अंग्रेजी में होता है. इस चर्चा को लेकर चन्द्रदेव यादव का कहना था कि हिंदी पहले से ही उदार प्रवृत्ति की है और इसमें कई ऐसे शब्द हैं, जो दूसरी भाषाओं के हैं.


Conclusion:चंद्रदेव यादव का जोर इस बात पर रहा कि हिंदी की मूल भावना को बनाए रखते हुए उसे वर्तमान समय से जोड़ने की कोशिश होनी चाहिए और उन्होंने इसे लेकर प्रसन्नता भी जाहिर की कि ऐसी कोशिशें हो भी रही हैं और क्रम बना रहना चाहिए लेकिन हिंदी की जरूरत और इससे अपने सम्बन्धों को एक दिन की रस्म अदायगी से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.
Last Updated : Sep 14, 2019, 6:05 PM IST
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