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जमात-ए-इस्लामी हिंद ने चुनाव परिणाम पर जताई चिंता, सांप्रदायिकता और ध्रुवीकरण को बताया घातक

Jamaat-e-Islami Hind expressed concern over election results: जमात-ए-इस्लामी हिंद ने हाल ही में आए 5 राज्यों के चुनाव परिणामों पर चिंता जताई है. संस्था के उपाध्यक्ष इंजीनियर सलीम ने प्रेस वार्ता कर कहा कि हम इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं. राष्ट्रीय राजनीति जिस दिशा में आगे बढ़ रही है ऐसे में मुसलमानों को एकजुट रहना चाहिए और मानवता के लिए आदर्श बनने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने चुनाव परिणाम पर जताई चिंता
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने चुनाव परिणाम पर जताई चिंता
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Dec 5, 2023, 5:48 PM IST

नई दिल्ली: हाल में हुए विधानसभा चुनाव में हिंदी पट्टी के तीन प्रमुख राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा सत्ता में आई है. वहीं, तेलंगाना की सत्ता पर कांग्रेस काबिज हुई है. अब चुनाव परिणामों पर अलग-अलग राजनीतिक दलों और संगठन के बयान आ रहे हैं. इसी कड़ी में जमात-ए-इस्लामी हिंद ने भी विधानसभा चुनाव परिणाम पर अपनी प्रतिक्रिया दी है.

जमात-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष इंजीनियर सलीम ने कहा कि राष्ट्रीय राजनीति जिस दिशा में आगे बढ़ रही है, ऐसे समय में हमको एकजुट होना होगा. हम इन चुनावों के जीतने और हारने वालों दोनों को गंभीरता से आत्मनिरीक्षण करने और विचार करने के लिए आमंत्रित करते हैं. इस बात पर विचार करते हैं कि हमारा देश किस दिशा में जा रहा है और इसका हमारे संवैधानिक मूल्यों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है. ऐसे में मुसलमानों को एकजुट रहना चाहिए और मानवता के लिए आदर्श बनने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

ये भी पढ़ें :तीन राज्यों में करारी हार के बावजूद विपक्षी दलों में पहली पार्टी बनी AAP जिसके दो राज्यों में सरकार, BJP का तंज

उन्होंने आगे कहा कि जिस तरह से हिंदी पट्टी में सांप्रदायिक और ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाई गई वह गंभीर चिंता का विषय है. इन राज्यों में चुनाव जीतने वाली पार्टी ने किसी भी राज्य में मुस्लिम समुदाय के किसी भी सदस्य को एक भी टिकट नहीं दिया.

ऐसा प्रतीत होता है कि शीर्ष राजनेताओं को मतदाताओं को धार्मिक आधार पर विभाजित करने के लिए सांप्रदायिक बयानों के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल से भरपूर लाभ मिला है. चुनाव अभियान में व्यक्तिगत हमले, चरित्र हनन और निराधार आरोप लगाए गए, जिससे राजनीतिक संवाद का स्तर गिरा और एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में हमारी छवि धूमिल हुई.

महत्वपूर्ण समस्याओं और चुनौतियों के संबंध में बहुत कम चर्चा और बहसें हुईं. चुनावों का एक और खेदजनक पहलू विपक्ष द्वारा प्रदर्शित अयोग्यता थी, जो प्रतिक्रियावादी राजनीति का शिकार हो गया और गंभीरता, परिपक्वता और जिम्मेदारी की भावना का पूर्ण अभाव प्रदर्शित किया. उनकी तैयारी की कमी, नेताओं का गलत चयन और गलत टिकट वितरण ने चुनावी मोर्चे पर उनकी कमजोरी को उजागर कर दिया.

उन्होंने कहा कि हिंदी पट्टी में विपक्षी दल की हार और तेलंगाना में उनकी प्रचंड जीत. दोनों से कई सबक सीखे जा सकते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विपक्ष तब तक लोगों का विश्वास नहीं जीत सकता जब तक वह धर्मनिरपेक्षता और समान व्यवहार के संवैधानिक मूल्यों और सभी धार्मिक और जाति समूहों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता नहीं प्रदर्शित करेगा. विपक्ष को उपयोगी सीट समायोजन और सीट साझाकरण पर पहुंचने में अपनी विफलता पर भी विचार करना चाहिए.

ये भी पढ़ें :I.N.D.I.A. गठबंधन के प्रमुख नेताओं की बैठक टली, अब दिसंबर के तीसरे सप्ताह में होगी

नई दिल्ली: हाल में हुए विधानसभा चुनाव में हिंदी पट्टी के तीन प्रमुख राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा सत्ता में आई है. वहीं, तेलंगाना की सत्ता पर कांग्रेस काबिज हुई है. अब चुनाव परिणामों पर अलग-अलग राजनीतिक दलों और संगठन के बयान आ रहे हैं. इसी कड़ी में जमात-ए-इस्लामी हिंद ने भी विधानसभा चुनाव परिणाम पर अपनी प्रतिक्रिया दी है.

जमात-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष इंजीनियर सलीम ने कहा कि राष्ट्रीय राजनीति जिस दिशा में आगे बढ़ रही है, ऐसे समय में हमको एकजुट होना होगा. हम इन चुनावों के जीतने और हारने वालों दोनों को गंभीरता से आत्मनिरीक्षण करने और विचार करने के लिए आमंत्रित करते हैं. इस बात पर विचार करते हैं कि हमारा देश किस दिशा में जा रहा है और इसका हमारे संवैधानिक मूल्यों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है. ऐसे में मुसलमानों को एकजुट रहना चाहिए और मानवता के लिए आदर्श बनने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

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उन्होंने आगे कहा कि जिस तरह से हिंदी पट्टी में सांप्रदायिक और ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाई गई वह गंभीर चिंता का विषय है. इन राज्यों में चुनाव जीतने वाली पार्टी ने किसी भी राज्य में मुस्लिम समुदाय के किसी भी सदस्य को एक भी टिकट नहीं दिया.

ऐसा प्रतीत होता है कि शीर्ष राजनेताओं को मतदाताओं को धार्मिक आधार पर विभाजित करने के लिए सांप्रदायिक बयानों के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल से भरपूर लाभ मिला है. चुनाव अभियान में व्यक्तिगत हमले, चरित्र हनन और निराधार आरोप लगाए गए, जिससे राजनीतिक संवाद का स्तर गिरा और एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में हमारी छवि धूमिल हुई.

महत्वपूर्ण समस्याओं और चुनौतियों के संबंध में बहुत कम चर्चा और बहसें हुईं. चुनावों का एक और खेदजनक पहलू विपक्ष द्वारा प्रदर्शित अयोग्यता थी, जो प्रतिक्रियावादी राजनीति का शिकार हो गया और गंभीरता, परिपक्वता और जिम्मेदारी की भावना का पूर्ण अभाव प्रदर्शित किया. उनकी तैयारी की कमी, नेताओं का गलत चयन और गलत टिकट वितरण ने चुनावी मोर्चे पर उनकी कमजोरी को उजागर कर दिया.

उन्होंने कहा कि हिंदी पट्टी में विपक्षी दल की हार और तेलंगाना में उनकी प्रचंड जीत. दोनों से कई सबक सीखे जा सकते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विपक्ष तब तक लोगों का विश्वास नहीं जीत सकता जब तक वह धर्मनिरपेक्षता और समान व्यवहार के संवैधानिक मूल्यों और सभी धार्मिक और जाति समूहों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता नहीं प्रदर्शित करेगा. विपक्ष को उपयोगी सीट समायोजन और सीट साझाकरण पर पहुंचने में अपनी विफलता पर भी विचार करना चाहिए.

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