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Infant Protection Day 2023: शिशु संरक्षण दिवस आज, जानिए सर्दियों में कैसे करें न्यू बॉर्न बेेबी की देखभाल

न्यू बॉर्न बेेबी का शरीर नाजुक होता है. इसे खास देखरेख की जरूरत होती है. ठंड का मौसम न्यू बॉर्न बेेबी के लिए चुनौतीपूर्ण रहता है. ऐसे में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए जानिए चाइल्ड स्पेशलिस्ट और सीनियर कंसल्टेंट डॉ. धीरेन गुप्ता से..... Infant Protection Day 2023, History of infant Protection Day

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Nov 7, 2023, 1:04 PM IST

इन बातों का रखें ध्यान

नई दिल्ली: दुनियाभर में जन्में नवजात शिशुओं के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए हर साल 7 नवंबर को शिशु संरक्षण दिवस मनाया जाता है. इस पीछे की मुख्य वजह यह है कि पहली बार माता पिता बने लोगों को शिशु संरक्षण के मुद्दे पर जागरूक किया जाए. आइए जानते हैं कब से मनाया जाता है शिशु संरक्षण दिवस और किस तरह अपने नवजात को रखे स्वस्थ?

दिल्ली के करोलबाग में स्थित सर गंगाराम अस्पताल में चाइल्ड स्पेशलिस्ट और सीनियर कंसल्टेंट डॉ. धीरेन गुप्ता ने बताया कि सबसे पहले 1990 में यूरोपियन देशों ने शिशु संरक्षण दिवस की शुरुआत की. इसका मुख्य उद्देश्य नवजात शिशुओं को एक्स्ट्रा प्रोटेक्शन के लिए पहली बार माता पिता बने पेरेंट्स को जागरूक करना है. धीरे धीरे अन्य कई देशों में इसको मनाया जाने लगा. बीते कुछ वर्षों से भारत में भी शिशु संरक्षण दिवस मनाया जाता है.

शिशु सुरक्षा
शिशु सुरक्षा

सर्दी के मौसम में शिशु की देखभाल: डॉ. धीरेन ने बताया कि अभी ठंड़ का मौसम शुरू होने वाला है. ठंड़ में पहली बार पेरेंटिंग वर्ल्ड में आने वाले माता पिता को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. कई बार देखने में आता है कि पेरेंट्स अपने नवजात शिशु को गर्म कपड़े पहना देते हैं. डॉ. ने बताया कि ज्यादा कपड़े पहनाने की जरूरत नहीं है. बल्कि अपने रूम टेंपरेचर को ध्यान में रख कर कपड़े पहनाने चाहिए. मतलब जितने कपड़े पहन कर आपको ठंड महसूस न हो उससे बस 1% ज्यादा कपड़े पहनाने चाहिए. जैसे अगर आपने कपड़ों की दो लेयर पहनी है, तो बच्चे को एक लेयर और पहनना चाहिए. वहीं, ठंड के मौसम में शिशु की देखभाल के लिए मां को अपने खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए. अगर मां के खानपान में कोई परेशानी होती है तो इसका सीधा असर नवजात बच्चे पर पड़ता है.

नवजात को मां का पहला दूध जरूर पिलाएं: समाज में कई तरह के मिथ हैं कि मां के स्तन से निकलने वाला पहला दूध बच्चे को नहीं पिलाना चाहिए. डॉ. धीरेन ने बताया मां के स्तन से निकलने वाला पहला गाढ़ा दूध बच्चे की इम्यूनिटी को सबसे ज्यादा स्ट्रॉन्ग करता है. 6 महीने तक बच्चे को केवल मां का ही दूध पिलाना चाहिए. इससे बच्चे को अन्य कई तरह की बीमारियों से लड़ने की ताकत मिलती है.

शिशुओं के लिए टीकाकरण है जरूरी: जब बच्चा पैदा होता है, तब से 5 वर्ष की आयु तक बच्चों का समय-समय पर टीकाकरण किया जाता है. डॉ. ने बताया कि नवजात शिशु को जीवनभर सुरक्षा देने में टीकाकरण का बहुत बड़ा योगदान है. इसलिए बच्चे को सभी टीके लगवाने चाहिए. उन्होंने बताया कि सरकारी और निजी सभी अस्पतालों में एक जैसा टीकाकरण किया जाता है. पेरेंट्स अपनी सुविधा के अनुसार कोई भी विकल्प चुन सकते हैं.

यह भी पढ़ें- देश में हर मिनट एक नवजात की होती है मौत, जानें Infant Protection Day क्यों है खास

शिशु संरक्षण के लिए क्या न करें: शिशु संरक्षण दिवस का मुख्य उद्देश्य शिशु को संपूर्ण संरक्षण प्रदान करना है और इससे जुड़े सभी आयामों को लेकर नए पेरेंट्स को जागरूक करना है. तो इसमें उन बातों को भी ध्यान रखने की जरूरत है कि शिशु संरक्षण के लिए क्या नहीं करना चाहिए.

  1. बच्चे को पेट के बल न लिटाएं: डॉ. धीरेन गुप्ता ने बताया कि नवजात के संरक्षण के लिए दो बातों का ध्यान देना बेहद जरूरी है. इसमें पहली मुख्य बात यह है कि नवजात को कभी भी पेट के बल नहीं लिटाना चाहिए. ऐसा करने से बच्चे को सांस लेने में दिक्कत होती है. जन्म के शुरुआती 3 महीने तक ये केवल नाक से ही सांस ले पाते है. ऐसे में अगर बच्चे को पेट के बाल लेटाया जाता है उसको जुकाम होने की आशंका बढ़ जाती हैं.
  2. तेज हीटर और AC बढ़ा सकती है तकलीफ: कई लोग ऐसे होते हैं, जिनको न तो ज्यादा गर्मी बर्दाश होती है और न सर्दी. ऐसे लोग तेज़ हीटर और AC चला कर अपने आपको नॉर्मल रखते हैं. लेकिन ऐसा करना नवजात के लिए हानिकारक हो सकता है. डॉक्टर ने बताया कि जिस रूम में बच्चा रहता है या सोता है उसको ड्राई न करें. तेज टेंपरेचर के कारण शिशु को जुकाम हो सकता है. कमरे का तापमान सामान्य रखना चाहिए.
  3. बच्चे को कभी भी बोतल से दूध नहीं पिलाएं: शिशु संरक्षण के मुद्दे पर डॉ. धीरेन ने तीसरी मुख्य बात यह बताई कि बच्चे को कभी भी बोतल से दूध नहीं पिलाना चाहिए. इससे नवजात को जल्दी जल्दी जुकाम होता है. इसके अलावा कई अन्य बीमारियां भी नवजात को हो जाती है. तो इसके इस्तेमाल से बचें

गौरतलब है कि, साल 1990 में 50 लाख से अधिक नवजात शिशुओं की मृत्यु वैश्विक स्तर हो गई. इन मौतों के पीछे गरीबी,अशिक्षा, कम उम्र में शादी, 100 फीसदी संस्थागत प्रसव न होना, माता और बच्चे में उचित पोषण का अभाव, नियमिक टीकाकरण सहित कई कारणों को पाया गया. भारत में शिशु मृत्यु दर कई देशों की तुलना में काफी ज्यादा है. इसके बाद 1990 दशक में दुनिया के कई देशों ने सामूहिक रूप से बाल स्वास्थ्य देखभाल में सुधार और शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) को कम करने का संकल्प लिया. इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए सबसे पहले यूरोपीय देशों ने शिशु संरक्षण दिवस मनाने का फैसला किया.

इन बातों का रखें ध्यान

नई दिल्ली: दुनियाभर में जन्में नवजात शिशुओं के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए हर साल 7 नवंबर को शिशु संरक्षण दिवस मनाया जाता है. इस पीछे की मुख्य वजह यह है कि पहली बार माता पिता बने लोगों को शिशु संरक्षण के मुद्दे पर जागरूक किया जाए. आइए जानते हैं कब से मनाया जाता है शिशु संरक्षण दिवस और किस तरह अपने नवजात को रखे स्वस्थ?

दिल्ली के करोलबाग में स्थित सर गंगाराम अस्पताल में चाइल्ड स्पेशलिस्ट और सीनियर कंसल्टेंट डॉ. धीरेन गुप्ता ने बताया कि सबसे पहले 1990 में यूरोपियन देशों ने शिशु संरक्षण दिवस की शुरुआत की. इसका मुख्य उद्देश्य नवजात शिशुओं को एक्स्ट्रा प्रोटेक्शन के लिए पहली बार माता पिता बने पेरेंट्स को जागरूक करना है. धीरे धीरे अन्य कई देशों में इसको मनाया जाने लगा. बीते कुछ वर्षों से भारत में भी शिशु संरक्षण दिवस मनाया जाता है.

शिशु सुरक्षा
शिशु सुरक्षा

सर्दी के मौसम में शिशु की देखभाल: डॉ. धीरेन ने बताया कि अभी ठंड़ का मौसम शुरू होने वाला है. ठंड़ में पहली बार पेरेंटिंग वर्ल्ड में आने वाले माता पिता को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. कई बार देखने में आता है कि पेरेंट्स अपने नवजात शिशु को गर्म कपड़े पहना देते हैं. डॉ. ने बताया कि ज्यादा कपड़े पहनाने की जरूरत नहीं है. बल्कि अपने रूम टेंपरेचर को ध्यान में रख कर कपड़े पहनाने चाहिए. मतलब जितने कपड़े पहन कर आपको ठंड महसूस न हो उससे बस 1% ज्यादा कपड़े पहनाने चाहिए. जैसे अगर आपने कपड़ों की दो लेयर पहनी है, तो बच्चे को एक लेयर और पहनना चाहिए. वहीं, ठंड के मौसम में शिशु की देखभाल के लिए मां को अपने खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए. अगर मां के खानपान में कोई परेशानी होती है तो इसका सीधा असर नवजात बच्चे पर पड़ता है.

नवजात को मां का पहला दूध जरूर पिलाएं: समाज में कई तरह के मिथ हैं कि मां के स्तन से निकलने वाला पहला दूध बच्चे को नहीं पिलाना चाहिए. डॉ. धीरेन ने बताया मां के स्तन से निकलने वाला पहला गाढ़ा दूध बच्चे की इम्यूनिटी को सबसे ज्यादा स्ट्रॉन्ग करता है. 6 महीने तक बच्चे को केवल मां का ही दूध पिलाना चाहिए. इससे बच्चे को अन्य कई तरह की बीमारियों से लड़ने की ताकत मिलती है.

शिशुओं के लिए टीकाकरण है जरूरी: जब बच्चा पैदा होता है, तब से 5 वर्ष की आयु तक बच्चों का समय-समय पर टीकाकरण किया जाता है. डॉ. ने बताया कि नवजात शिशु को जीवनभर सुरक्षा देने में टीकाकरण का बहुत बड़ा योगदान है. इसलिए बच्चे को सभी टीके लगवाने चाहिए. उन्होंने बताया कि सरकारी और निजी सभी अस्पतालों में एक जैसा टीकाकरण किया जाता है. पेरेंट्स अपनी सुविधा के अनुसार कोई भी विकल्प चुन सकते हैं.

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शिशु संरक्षण के लिए क्या न करें: शिशु संरक्षण दिवस का मुख्य उद्देश्य शिशु को संपूर्ण संरक्षण प्रदान करना है और इससे जुड़े सभी आयामों को लेकर नए पेरेंट्स को जागरूक करना है. तो इसमें उन बातों को भी ध्यान रखने की जरूरत है कि शिशु संरक्षण के लिए क्या नहीं करना चाहिए.

  1. बच्चे को पेट के बल न लिटाएं: डॉ. धीरेन गुप्ता ने बताया कि नवजात के संरक्षण के लिए दो बातों का ध्यान देना बेहद जरूरी है. इसमें पहली मुख्य बात यह है कि नवजात को कभी भी पेट के बल नहीं लिटाना चाहिए. ऐसा करने से बच्चे को सांस लेने में दिक्कत होती है. जन्म के शुरुआती 3 महीने तक ये केवल नाक से ही सांस ले पाते है. ऐसे में अगर बच्चे को पेट के बाल लेटाया जाता है उसको जुकाम होने की आशंका बढ़ जाती हैं.
  2. तेज हीटर और AC बढ़ा सकती है तकलीफ: कई लोग ऐसे होते हैं, जिनको न तो ज्यादा गर्मी बर्दाश होती है और न सर्दी. ऐसे लोग तेज़ हीटर और AC चला कर अपने आपको नॉर्मल रखते हैं. लेकिन ऐसा करना नवजात के लिए हानिकारक हो सकता है. डॉक्टर ने बताया कि जिस रूम में बच्चा रहता है या सोता है उसको ड्राई न करें. तेज टेंपरेचर के कारण शिशु को जुकाम हो सकता है. कमरे का तापमान सामान्य रखना चाहिए.
  3. बच्चे को कभी भी बोतल से दूध नहीं पिलाएं: शिशु संरक्षण के मुद्दे पर डॉ. धीरेन ने तीसरी मुख्य बात यह बताई कि बच्चे को कभी भी बोतल से दूध नहीं पिलाना चाहिए. इससे नवजात को जल्दी जल्दी जुकाम होता है. इसके अलावा कई अन्य बीमारियां भी नवजात को हो जाती है. तो इसके इस्तेमाल से बचें

गौरतलब है कि, साल 1990 में 50 लाख से अधिक नवजात शिशुओं की मृत्यु वैश्विक स्तर हो गई. इन मौतों के पीछे गरीबी,अशिक्षा, कम उम्र में शादी, 100 फीसदी संस्थागत प्रसव न होना, माता और बच्चे में उचित पोषण का अभाव, नियमिक टीकाकरण सहित कई कारणों को पाया गया. भारत में शिशु मृत्यु दर कई देशों की तुलना में काफी ज्यादा है. इसके बाद 1990 दशक में दुनिया के कई देशों ने सामूहिक रूप से बाल स्वास्थ्य देखभाल में सुधार और शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) को कम करने का संकल्प लिया. इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए सबसे पहले यूरोपीय देशों ने शिशु संरक्षण दिवस मनाने का फैसला किया.

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