नई दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने स्त्री सशक्तिकरण पर लिखी पुस्तक 'सिहरन' के विमोचन समारोह में शिरकत की. उन्होंने कहा कि कुछ लोग सीता-सावित्री को महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रतीक नहीं मानते, लेकिन यह सीता ही थीं, जिन्होंने एक बार अपना तिरस्कार होने के बाद राम को भी स्वीकार नहीं किया.
वह चाहती तो अयोध्या से तिरस्कृत होने के बाद अपने पिता के यहां जाकर राजसी सुख भोग सकती थी, लेकिन उन्होंने ऋषि वाल्मीकि के यहां शरण ली. अपने पर लगे आरोपों के प्रतियुतर एवं अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए अपने पुत्रों को जन्म दिया और सशक्त बना राम की सेना के समक्ष विजेता के रूप में स्थापित किया. इसी प्रकार सावित्री जैसी महिलाओं ने स्वयं यमराज को भी पराजित कर दिया. हमारे देश की महिलाओं का आदर्श सीता और सावित्री जैसी महिलाएं ही हो सकती हैं. आज जिस तरह फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं को पेश किया जा रहा है, वह हमारे समाज का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता.
अक्सर इस तरह की तस्वीर पेश की जाती है कि जैसे भारत में महिलाओं के साथ हमेशा से अत्याचार होता रहा है. यह विचार अतिरेक से भरा है. भारत में महिलाओं का सम्मान होता रहा है. हालांकि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आज महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने की आवश्यकता है.
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जगदीश ममगाई ने कहा कि महिलाओं ने इतिहास में कई बार स्वयं को पुरुषों की तुलना में बेहतर साबित किया है. यह कार्य दक्षिण की महान महिला रुद्रमा से लेकर ज्योतिबा फुले तक चलता रहा. आज भी यह कार्य जारी है. इसके बाद भी आज भी महिलाओं के साथ भयंकर भेदभाव जारी है. सब गुणों और सकारात्मकता के बावजूद आज भी महिलाएं असुरक्षित हैं. निर्भया से लेकर कंझावला कांड तक की घटनाएं यह दिखाती है कि महिलाओं के प्रति समाज अभी भी अपेक्षित तरीके से संवेदनशील नहीं है. उन्होंने कहा कि अब महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.
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