नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की गई है, जिसमें बार काउंसिल ऑफ दिल्ली (बीसीडी) के हालिया फैसले को चुनौती दी गई है. दरअसल, बीसीडी ने दिल्ली में अधिवक्ता के नामांकन के लिए दिल्ली-एनसीआर के पते वाले आधार और मतदाता पहचान पत्र को अनिवार्य किया है. बिहार की निवासी अधिवक्ता रजनी कुमारी ने याचिका दायर की है. उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री ली है.
दायर याचिका में उन्होंने तर्क दिया है कि बीसीडी का निर्णय मनमाना और भेदभावपूर्ण है. न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने गुरुवार को मामले की संक्षिप्त सुनवाई की और याचिकाकर्ता से बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) को याचिका में पक्षकार बनाने को कहा. मामले की अगली सुनवाई अब दो मई 2023 को होगी.
13 अप्रैल को जारी हुआ था नोटिसः बीसीडी ने 13 अप्रैल को एक नोटिस जारी किया था, जिसमें कहा था कि बीसीडी के साथ नामांकन कराने का प्रस्ताव रखने वाले वकीलों को दिल्ली या एनसीआर को अपने निवास स्थान के रूप में दिखाते हुए अपना आधार और मतदाता पहचान पत्र पेश करना होगा. राष्ट्रीय राजधानी में दाखिला लेने के इच्छुक नए कानून स्नातकों को भी अनिवार्य रूप से दिल्ली-एनसीआर में अपने आधार और मतदाता पहचान पत्र की प्रतियां संलग्न करनी होंगी. कहा गया है कि अब से इन दस्तावेजों के बिना कोई नामांकन नहीं होगा.
अधिवक्ता ललित कुमार, शशांक उपाध्याय और मुकेश के माध्यम से हाई कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि बीसीडी का फैसला देश के दूर-दराज से आने वाले कानून स्नातकों को बेहतर संभावनाओं की उम्मीद में दिल्ली में कानून का अभ्यास करने से रोकेगा. दिल्ली या एनसीआर के पते के साथ आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र की आवश्यकता उन कानून स्नातकों के साथ भेदभाव करती है, जिनके पास दिल्ली या एनसीआर में कोई पता नहीं है. यह कानून स्नातकों के बीच उनके आवासीय पते के आधार पर एक मनमाना वर्गीकरण बनाता है, जो अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.