नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने जामिया हिंसा मामले की जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई को टाल दिया है. चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई के बाद 4 अगस्त को सुनवाई करने का आदेश दिया.
आज सुनवाई के दौरान एएसजी अमन लेखी ने कहा कि उन्होंने मसलों की सूची प्राप्त की है. तब कोर्ट ने कहा कि वे अभी कोर्ट के रिकॉर्ड में नहीं हैं. उसके बाद लेखी ने वो रिकॉर्ड कोर्ट को सौंपे. लेखी ने कहा कि याचिकाएं सुनवाई योग्य हैं कि नहीं, इस पर भी कोर्ट को विचार करना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि हम मामलों की सुनवाई कभी भी कर सकते हैं. लेकिन हमें मसलों की प्रति उपलब्ध नहीं कराई जा रही है. वरिष्ठ वकील कॉलिन गोन्साल्विस ने कहा कि मसलों की सूची कोर्ट की रजिस्ट्री को जमा की गई थी. तब कोर्ट ने लेखी से कहा कि सभी मामलों की सुनवाई के लिए मसलों की सूची सौंप दी गई है.
दो दिन में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था
पिछले 13 जुलाई को कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वो जामिया हिंसा मामले में जांच की मांग करने वाली याचिकाओं का दो दिनों के अंदर जवाब दाखिल करे. कोर्ट ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर दो दिनों में जवाब दाखिल नहीं करेंगे तो वे कड़ा आदेश दे सकते हैं. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया था कि केंद्र सरकार के जवाब के बाद वे चार दिनों के अंदर अपना जवाबी हलफनामा दायर करें. पिछले 6 जुलाई को कोर्ट ने सुनवाई टालते हुए सभी पक्षों को उन मसलों की सूची देने का निर्देश दिया था जिन पर कोर्ट सुनवाई करेगा. कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की ओर से बताए गए आपत्तिजनक जवाब को हटाने का निर्देश दिया था.
हलफनामे में गृहमंत्री के नाम पर आपत्ति जताई थी
तुषार मेहता ने एक याचिकाकर्ता के जवाबी हलफनामा कुछ अंशों पर गंभीर आपत्ति जताई थी. जवाबी हलफनामे में कहा गया था कि गृहमंत्री के आदेश से छात्रों की पिटाई की गई. मेहता ने कहा था कि हलफनामे में कहा गया है कि आम लोगों की राय है कि पुलिस को ऊपर से आदेश दिया गया था. उन्होंने कहा था कि याचिकाकर्ता के इस हलफनामे का स्रोत क्या है. याचिकाकर्ता ने खुद ही पुलिस को निजी संपत्ति को नष्ट करने का जिम्मेदार ठहराया है. ये गैरजिम्मेदार दलील है और उनकी असली मंशा सामने आ गई है कि छात्र आंदोलन की आड़ में हिंसा की गई.
'दिल्ली पुलिस पर क्रूरता का इलजाम गलत'
दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे कहा है कि जामिया हिंसा की इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों से साफ पता चलता है कि छात्र आंदोलन की आड़ में स्थानीय लोगों की मदद से हिंसा को अंजाम दिया गया. दिल्ली पुलिस ने कहा है कि 13 और 15 दिसंबर 2019 को हुई हिंसा के मामले में तीन एफआईआर दर्ज किए गए हैं. इस हिंसा में पत्थरों, लाठियों , पेट्रोल बम, ट्यूबलाईट्स इत्यादि का इस्तेमाल किया गया. इस घटना में कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे. दिल्ली पुलिस ने कहा कि दिल्ली पुलिस पर क्रूरता का इलजाम गलत है.
'कानून का उल्लंघन सही नहीं'
दिल्ली पुलिस ने कहा है कि विरोध करना सबका अधिकार है लेकिन विरोध करने की आड़ में कानून का उल्लंघन करना और हिंसा और दंगे में शामिल होना सही नहीं है. दिल्ली पुलिस ने कहा है कि ये आरोप सही नहीं है कि युनिवर्सिटी प्रशासन की बिना अनुमति के पुलिस परिसर में घुसी और छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की. दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान और आरोपियों की पूरी लिस्ट हाईकोर्ट को सौंपी है.
जांच के नाम पर घंटों बैठाने का आरोप
पिछले 22 मई को हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था. याचिका वकील नबीला हसन ने दायर की है. याचिकाकर्ता की ओर से वकील स्नेहा मुखर्जी ने कहा था कि जामिया युनिवर्सिटी के कई छात्रों को पुलिस ने बुलाया और जांच के नाम पर घंटों बैठाए रखा. यहां तक कि कोरोना के संकट के दौरान भी छात्रों को पुलिस परेशान कर रही है. याचिका में कहा गया था कि जामिया यूनिवर्सिटी की हालत आज भी वैसी ही है जैसी पहले थी. इसलिए इस मामले पर जल्द सुनवाई की जाए.
पुलिस की कार्रवाई पर रोक की मांग ठुकराई थी
19 दिसंबर 2019 को हाईकोर्ट ने छात्रों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई पर रोक की मांग ठुकरा दिया था. कोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था. 19 दिसंबर 2019 को जब कोर्ट ने छात्रो के खिलाफ़ गिरफ्तारी और पुलिस कार्रवाई पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था तो चीफ जस्टिस डीएन पटेल की कोर्ट में ही कुछ वकीलों ने शर्म, शर्म के नारे लगाए थे. चीफ जस्टिस बिना कोई रिएक्शन दिये उठकर अपने चैम्बर में चले गए थे. उसके बाद 20 दिसंबर 2019 को हाईकोर्ट ने कुछ वकीलों की मांग पर इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी का गठन कर कार्रवाई करने की बात कही थी.