नई दिल्ली: जामिया हिंसा मामले में जांच की मांग करने वाली याचिकाओं को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वो दो दिनों के अंदर जवाब दाखिल करे. चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि अगर दो दिनों में जवाब दाखिल नहीं करेंगे, तो वे कड़ा आदेश दे सकते हैं. मामले की अगली सुनवाई 21 जुलाई को होगी.
सुनवाई के दौरान वकील सलमान खुर्शीद ने कहा कि कोर्ट की ओर से कुछ मसले तय किए गए हैं. तब केंद्र सरकार के वकील रजत नायर ने कहा कि ये हमें कल रात को मिले हैं. सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्हें कोई जवाब नहीं मिला है.
तब कोर्ट ने नायर को कहा कि आप एक-एक याचिकाकर्ता का जवाब दीजिए. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि केंद्र सरकार के जवाब के बाद वे चार दिनों के अंदर अपना जवाबी हलफनामा दायर करें. 20 जुलाई के बाद कोई पक्षकार ये नहीं कहे कि उन्हें जवाब की प्रति नहीं मिली है.
गृहमंत्री के नाम पर जताई थी आपत्ति
पिछले 6 जुलाई को कोर्ट ने सुनवाई टालते हुए सभी पक्षों को उन मसलों की सूची देने का निर्देश दिया था जिन पर कोर्ट सुनवाई करेगा. कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की ओर से बताए गए आपत्तिजनक जवाब को हटाने का निर्देश दिया था. तुषार मेहता ने एक याचिकाकर्ता के जवाबी हलफनामा कुछ अंशों पर गंभीर आपत्ति जताई थी.
जवाबी हलफनामे में कहा गया था कि गृहमंत्री के आदेश से छात्रों की पिटाई की गई. मेहता ने कहा था कि हलफनामे में कहा गया है कि आम लोगों की राय है कि पुलिस को ऊपर से आदेश दिया गया था. उन्होंने कहा था कि याचिकाकर्ता के इस हलफनामे का स्रोत क्या है. याचिकाकर्ता ने खुद ही पुलिस को निजी संपत्ति को नष्ट करने का जिम्मेदार ठहराया है. ये गैरजिम्मेदार दलील है और उनकी असली मंशा सामने आ गई है.
आरोपों का क्या है आधार
मेहता ने कहा था कि ऐसे आरोप सार्वजनिक भाषण देने में ठीक लगते है, लेकिन किसी संवैधानिक कोर्ट में नहीं. आज कल गैरजिम्मेदाराना दलीलों का चलन हो गया है. इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए.
ऐसी दलीलों के लिए धारा 226 का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. तब कोर्ट ने कहा था कि गैरजिम्मेदाराना दलीलों की इस समय कोई प्रासंगिकता नहीं है. मेहता ने कहा था कि कोर्ट याचिकाकर्ताओं से ये पूछे कि उनके इन आरोपों का आधार क्या है. आप प्रधानमंत्री पर भी आरोप लगा सकते हैं लेकिन उसके लिए साक्ष्य होना चाहिए. तब कोर्ट ने पूछा था कि आप ऐसे आरोप कैसे लगा रहे हैं.
पहले भी टल चुकी सुनवाई
पिछले 29 जून को भी कोर्ट ने सुनवाई टाल दी थी. पिछले 5 जून को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता और वकील नबीला हसन ने कोर्ट से दिल्ली पुलिस के हलफनामे का जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए समय देने की मांग की थी, जिसके बाद कोर्ट ने सुनवाई टाल दी थी. अपने हलफनामे में दिल्ली पुलिस ने कहा है कि जामिया हिंसा सोची समझी योजना के तहत की गई थी.
छात्र आंदोलन की आड़ में की गई हिंसा
दिल्ली पुलिस ने कहा है कि जामिया हिंसा की इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों से साफ पता चलता है कि छात्र आंदोलन की आड़ में स्थानीय लोगों की मदद से हिंसा को अंजाम दिया गया. दिल्ली पुलिस ने कहा है कि 13 और 15 दिसंबर 2019 को हुई हिंसा के मामले में तीन एफआईआर दर्ज किए गए हैं.
इस हिंसा में पत्थरों, लाठियों , पेट्रोल बम, ट्यूबलाईट्स इत्यादि का इस्तेमाल किया गया. इस घटना में कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे. दिल्ली पुलिस ने कहा कि दिल्ली पुलिस पर क्रूरता का इंतजाम गलत है.
विरोध करना सबका अधिकार
दिल्ली पुलिस ने कहा है कि विरोध करना सबका अधिकार है लेकिन विरोध करने की आड़ में कानून का उल्लंघन करना और हिंसा और दंगे में शामिल होना सही नहीं है. दिल्ली पुलिस ने कहा है कि ये आरोप सही नहीं है कि युनिवर्सिटी प्रशासन की बिना अनुमति के पुलिस परिसर में घुसी और छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की. दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान और आरोपियों की पूरी लिस्ट हाईकोर्ट को सौंपी है.
जांच के नाम पर घंटों बैठाने का आरोप
पिछले 22 मई को हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था. याचिका वकील नबीला हसन ने दायर की है. याचिकाकर्ता की ओर से वकील स्नेहा मुखर्जी ने कहा था कि जामिया युनिवर्सिटी के कई छात्रों को पुलिस ने बुलाया और जांच के नाम पर घंटों बैठाए रखा.
यहां तक कि कोरोना के संकट के दौरान भी छात्रों को पुलिस परेशान कर रही है. याचिका में कहा गया था कि जामिया युनिवर्सिटी की हालत आज भी वैसी ही है जैसी पहले थी. इसलिए इस मामले पर जल्द सुनवाई की जाए.
93 छात्र हुए थे घायल
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कहा था कि जामिया के 93 छात्र घायल हुए. छात्रों ने सीसीटीवी फुटेज के साथ शिकायत भी की. उन्होंने ललिता कुमारी के केस का हवाला देते हुए कहा था कि इन शिकायतों के आधार पर एफआईआर दर्ज की जाए.
तब तुषार मेहता ने कहा था कि कई एफआईआर दायर करने से बेहतर है कि एक समग्र एफआईआर दर्ज की जाए. सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि हाईकोर्ट के पहले के आदेश का पालन नहीं किया गया क्योंकि कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है. अगर उन्हें जवाब दाखिल करने के लिए समय चाहिए, तो उसके लिए भी एक हलफनामा दाखिल होना चाहिए.