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Govatsa Dwadashi 2023: संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है गोवत्स द्वादशी का व्रत, जानिए क्या है महत्व

कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को रखा जाने वाला गोवत्स द्वादशी का व्रत संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है .इस दिन गाय और उसके बछड़े का पूजन किया जाता है.मान्यता है कि इस व्घरत को करने से घर में संतान वृद्धि ,संतान संस्कारी और नि:संतान दंपतियों को संतान होने की संभावनाएं बन जाती हैं .Govatsa Dwadashi 2023:

संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है गोवत्स द्वादशी का व्रत
संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है गोवत्स द्वादशी का व्रत
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Nov 8, 2023, 4:22 PM IST

नई दिल्ली : कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी का व्रत रखा जाता है. इस दिन गाय और उसके बछड़े का पूजन किया जाता है. शास्त्रों में कहा गया कि गाय के शरीर में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है. इसलिए गाय की पूजा, गाय की सेवा करने से सांसारिक, भौतिक और पारलौकिक सुख मिलता है, लेकिन देसी गाय ही इसके लिए होनी आवश्यक है. कामधेनु, नंदिनी, सुरभि आदि गाय हमारे देश में आवश्यकता पूर्ति के लिए बहुत फलदायक रही हैं.

शिव शंकर ज्योतिष एवं अनुसंधान केंद्र के अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा के मुताबिक, कामधेनु गाय महर्षि जमदग्नि के आश्रम में थी. महर्षि जमदग्नि उनकी खूब सेवा करते थे. जब क्षत्रिय राजा सहस्त्रबाहु उनके आश्रम में आए तो कामधेनु की कृपा से 56 व्यंजनों से उनकी सेवा की.

ये भी पढ़ें :गौ सेवा के लिए यूपी के शख्स ने नहीं की शादी, घर को बना दिया गौशाला, दिन-रात करते हैं सेवा

इक्ष्वाकु वंश में महाराज दिलीप ने संतान प्राप्ति के लिए की थी गौसेवाः जब सहस्त्रबाहु ने महर्षि जमदग्नि से कामधेनु गाय छीनने की कोशिश की तो गाय के शरीर से विशाल सेना निकल कर सहस्त्रबाहु के सैनिकों को परास्त कर दिया. इक्ष्वाकु वंश में जब महाराज दिलीप को संतान नहीं हुआ तो उन्हें ऋषियों को कामधेनु की पुत्री नंदिनी की सेवा करने की आज्ञा दी.

गोवत्स द्वादशी तिथि व्रत
द्वादशी तिथि आरंभ: 09 नवंबर 2023 प्रातः 10:40 बजे
द्वादशी तिथि समाप्त: 10 नवंबर 2023 दोपहर 12:35 बजे

गोवत्स द्वादशी की व्रत विधिः गोवत्स द्वादशी के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर किसी गौशाला में जाए और गाय की भरपूर सेवा करें. उनको चारा दान करें. गाय के सम्मुख प्रणाम करें. उसके माथे पर टीका लगाए और माला पहनाए. रोटियां या अन्य खाद्य वस्तुओं का गौशाला में गायों के उपयोग के लिए दान करें. शाम के समय व्रत का परायण करें. परायण के समय कामधेनु माता का अथवा नंदिनी गौ माता का ध्यान करके गौवंश के निमित्त संकल्प ले कि गौशाला में कुछ ना कुछ दान अवश्य करेंगे.

गौ माता की सेवा से घर में नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती हैंः जिस घर में गौ माता की सेवा होती है उस घर में नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती हैं. यदि आप गौशाला में नहीं जा सकते अथवा आपके यहां गाय नहीं है तो फिर कामधेनु गाय का एक स्वरूप अथवा प्रतिमा जिसमें वह बछड़े सहित हो, अपने घर में स्थापित करके नित्य दर्शन करें तो घर में संतान वृद्धि होती है. संतान संस्कारी हो जाती है. नि:संतान दंपतियों को भी संतान होने की संभावनाएं बन जाती हैं.

भारतीय संस्कृति में गाय को माता का स्थान प्राप्त हैः आध्यात्मिक गुरु और ज्योतिषाचार्य शिवकुमार शर्मा के मुताबिक, नंदिनीकी सेवा के फलस्वरूप उन्हें रघुवंश का उत्तराधिकारी मिला. भारतीय संस्कृति में गाय को माता कहा गया है. इसके सभी अवयवों से उपयोगी वस्तुएं बनती हैं. गोमूत्र, गोबर, दूध दही, घृत, मक्खन आदि मानव के लिए बहुत उपयोगी हैं और औषधि के रूप में भी प्रयोग किए जाते हैं.

ये भी पढ़ें :गाय के दूध में होते हैं मां के दूध के गुण, जानिए क्या है गाय का महत्व

नई दिल्ली : कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी का व्रत रखा जाता है. इस दिन गाय और उसके बछड़े का पूजन किया जाता है. शास्त्रों में कहा गया कि गाय के शरीर में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है. इसलिए गाय की पूजा, गाय की सेवा करने से सांसारिक, भौतिक और पारलौकिक सुख मिलता है, लेकिन देसी गाय ही इसके लिए होनी आवश्यक है. कामधेनु, नंदिनी, सुरभि आदि गाय हमारे देश में आवश्यकता पूर्ति के लिए बहुत फलदायक रही हैं.

शिव शंकर ज्योतिष एवं अनुसंधान केंद्र के अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा के मुताबिक, कामधेनु गाय महर्षि जमदग्नि के आश्रम में थी. महर्षि जमदग्नि उनकी खूब सेवा करते थे. जब क्षत्रिय राजा सहस्त्रबाहु उनके आश्रम में आए तो कामधेनु की कृपा से 56 व्यंजनों से उनकी सेवा की.

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इक्ष्वाकु वंश में महाराज दिलीप ने संतान प्राप्ति के लिए की थी गौसेवाः जब सहस्त्रबाहु ने महर्षि जमदग्नि से कामधेनु गाय छीनने की कोशिश की तो गाय के शरीर से विशाल सेना निकल कर सहस्त्रबाहु के सैनिकों को परास्त कर दिया. इक्ष्वाकु वंश में जब महाराज दिलीप को संतान नहीं हुआ तो उन्हें ऋषियों को कामधेनु की पुत्री नंदिनी की सेवा करने की आज्ञा दी.

गोवत्स द्वादशी तिथि व्रत
द्वादशी तिथि आरंभ: 09 नवंबर 2023 प्रातः 10:40 बजे
द्वादशी तिथि समाप्त: 10 नवंबर 2023 दोपहर 12:35 बजे

गोवत्स द्वादशी की व्रत विधिः गोवत्स द्वादशी के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर किसी गौशाला में जाए और गाय की भरपूर सेवा करें. उनको चारा दान करें. गाय के सम्मुख प्रणाम करें. उसके माथे पर टीका लगाए और माला पहनाए. रोटियां या अन्य खाद्य वस्तुओं का गौशाला में गायों के उपयोग के लिए दान करें. शाम के समय व्रत का परायण करें. परायण के समय कामधेनु माता का अथवा नंदिनी गौ माता का ध्यान करके गौवंश के निमित्त संकल्प ले कि गौशाला में कुछ ना कुछ दान अवश्य करेंगे.

गौ माता की सेवा से घर में नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती हैंः जिस घर में गौ माता की सेवा होती है उस घर में नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती हैं. यदि आप गौशाला में नहीं जा सकते अथवा आपके यहां गाय नहीं है तो फिर कामधेनु गाय का एक स्वरूप अथवा प्रतिमा जिसमें वह बछड़े सहित हो, अपने घर में स्थापित करके नित्य दर्शन करें तो घर में संतान वृद्धि होती है. संतान संस्कारी हो जाती है. नि:संतान दंपतियों को भी संतान होने की संभावनाएं बन जाती हैं.

भारतीय संस्कृति में गाय को माता का स्थान प्राप्त हैः आध्यात्मिक गुरु और ज्योतिषाचार्य शिवकुमार शर्मा के मुताबिक, नंदिनीकी सेवा के फलस्वरूप उन्हें रघुवंश का उत्तराधिकारी मिला. भारतीय संस्कृति में गाय को माता कहा गया है. इसके सभी अवयवों से उपयोगी वस्तुएं बनती हैं. गोमूत्र, गोबर, दूध दही, घृत, मक्खन आदि मानव के लिए बहुत उपयोगी हैं और औषधि के रूप में भी प्रयोग किए जाते हैं.

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