नगर निगम पर सवालों की सुई लटक रही है तो वहीं फायर डिपार्टमेंट द्वारा दिए गए क्लीयरेंस भी संदेह के घेरे मे है. होटल में फायर सेफ्टी से जुड़े नियमों का पालन हो नहीं हो रहा था और न ही बिल्डिंग बाई-लॉज़ का पालन हो रहा था. इसमें दिल्ली सरकार पर भी सवाल उठ रहे हैं.
'फायर डिपार्टमेंट से पूछिए सवाल'
उत्तरी दिल्ली नगर निगम के मेयर आदेश गुप्ता की मानें तो फायर डिपार्टमेंट की एनओसी के आधार पर ही निगम किसी भी बिल्डिंग को लाइसेंस देती है. सवाल फायर डिपार्टमेंट से पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने किस आधार पर इस बिल्डिंग को एनओसी दी थी. इसके साथ ही दिल्ली सरकार के अधीन लेबर डिपार्टमेंट लिफ्ट और वायरिंग की जांच करते हैं जिनसे सवाल पूछा जाना चाहिए.
'घटना के वक्त फायर एग्जिट बंद था'
गुप्ता की मानें तो उक्त होटल 1993 में ही निगम द्वारा बुक किया गया था. हालांकि बिल्डिंग प्रोटेक्टेड बिल्डिंग है और 2020 तक इस पर कार्रवाई नहीं हो सकती है. गुप्ता ने कहा कि घटना के वक्त फायर एग्जिट बंद था जिसकी वजह से लोगों को भागने का समय भी नहीं मिला. दिल्ली सरकार के अधीन काम करने वाले कर्मचारी यहां लिफ्ट और वायरिंग की जांच करते हैं लेकिन इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा.
'महापौर हैं मौत के ज़िम्मेदार'
नेता विपक्ष अनिल लाकड़ा कहते हैं कि यह हादसा निगम अधिकारियों और नेताओं की लीपापोती और भ्रष्टाचार के चलते हुआ है. होटल में किसी भी तरह का रेस्टोरेंट चलाने की इजाजत नहीं थीं. लेकिन निगम अधिकारियों की मिलीभगत के चलते यहां ग्राउंड फ्लोर और टॉप फ्लोर पर रेस्तरां चलाया जा रहा था. भाजपा के नेता अब तरह-तरह के बहाने बनाकर अपनी जिम्मेदारियों से भागते हुए नजर आ रहे हैं. सच्चाई यह है कि सभी लोगों की मौत के जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि खुद महापौर हैं.
'दिल्ली सरकार और निगम दोनों ही दोषी हैं'
कांग्रेस दल के नेता मुकेश गोयल ने इस हादसे के लिए दिल्ली सरकार और निगम दोनों के नेताओं को जिम्मेदार बताया है. लाइसेंस रिन्यू करते समय निगम को जांच करना चाहिए था कि सभी नियमों का पालन हो रहा है या नहीं. दिल्ली सरकार के अधीन आने वाले कर्मचारी भी लिफ्ट और वायरिंग की जांच करते हैं. मामले में दोनों ही दोषी हैं