नई दिल्ली: लंबे समय से महिला आरक्षण बिल को लेकर चर्चाएं हो रही हैं और कई महिला संगठन, इस बिल को लागू करने की मांग भी करते आए हैं. इस बीच मंगलवार को लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया गया. हालांकि, लोकसभा की कार्यवाही बुधवार तक के लिए स्थगित कर दी गई है, लेकिन बिल के पेश होने से चर्चाओं ने एक बार फिर जन्म ले लिया है.
डीसीडबल्यू अध्यक्ष ने दी प्रतिक्रिया: दिल्ली महिला आयोग की चेयरपर्सन स्वाति मालीवाल ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर महिला आरक्षण बिल को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने लिखा, 'आजादी के 76 साल बाद सरकार ने माना जब तक महिलाएं संसद और विधानसभा में नहीं होंगी, तब तक देश की प्रगति सिर्फ कागज पर होगी. महिलाओं का मुद्दा आज देश में ज्वलंत है, जिसके चलते केंद्र सरकार देश में महिला आरक्षण बिल ला रही है. सरकार को बधाई देती हूं और आशा है अब बृजभूषण जैसों की जगह संसद में महिलाएं लेंगी.'
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आज़ादी के 76 साल बाद सरकार ने माना जब तक महिलाएँ संसद और विधान सभा में नहीं होंगी, तब तक देश की प्रगति सिर्फ़ काग़ज पे होगी। महिलाओं का मुद्दा आज देश में ज्वलंत है जिसके चलते केंद्र #WomenReservationBill देश में ला रहा है। सरकार को बधाई देती हूँ और आशा है अब ब्रिज भूषण जैसों की…
— Swati Maliwal (@SwatiJaiHind) September 19, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
">आज़ादी के 76 साल बाद सरकार ने माना जब तक महिलाएँ संसद और विधान सभा में नहीं होंगी, तब तक देश की प्रगति सिर्फ़ काग़ज पे होगी। महिलाओं का मुद्दा आज देश में ज्वलंत है जिसके चलते केंद्र #WomenReservationBill देश में ला रहा है। सरकार को बधाई देती हूँ और आशा है अब ब्रिज भूषण जैसों की…
— Swati Maliwal (@SwatiJaiHind) September 19, 2023आज़ादी के 76 साल बाद सरकार ने माना जब तक महिलाएँ संसद और विधान सभा में नहीं होंगी, तब तक देश की प्रगति सिर्फ़ काग़ज पे होगी। महिलाओं का मुद्दा आज देश में ज्वलंत है जिसके चलते केंद्र #WomenReservationBill देश में ला रहा है। सरकार को बधाई देती हूँ और आशा है अब ब्रिज भूषण जैसों की…
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किया जाए कमेटी का गठन: उधर, समाजशास्त्री और महिला कार्यकर्ता डॉ. आकृति भाटिया ने कहा कि महिला आरक्षण बिल के पीछे दो मुख्य बातें हैं. पहली यह कि इसमें केवल उच्च जाति की पढ़ी-लिखी महिलाओं को जगह न देकर दलित और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए भी आरक्षण होना चाहिए. दूसरी बात यह है कि पंचायतों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिया गया है, लेकिन सभी जानते हैं कि उनके नाम पर उनके पति द्वारा सभी निर्णय लिए जाते हैं. ऐसा महिला सांसदों के साथ न हो, इसके लिए कमेटी का गठन हो जो इसकी नियमित जांच करे.
महिला पहलवानों को मिले इंसाफ: उन्होंने यह भी कहा कि इस बिल को चुनावी मुद्दा बनाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए. अगर मौजूदा सरकार सच में महिलाओं के विकास और सशक्तिकरण की बात करती है, तो यह हर क्षेत्र में दिखना चाहिए. साथ ही उन्होंने महिला पहलवानों के धरने को याद करते हुए कहा कि अगर केंद्र सरकार सच में महिलाओं के लिए काम करती है, तो फिर प्रोटेस्ट कर रही महिलाओं को अभी तक इंसाफ क्यों नहीं मिला? उल्टा उन्हें पुलिस ने मारा पीटा और कई बार हिरासत में भी लिया. हालांकि अगर यह बिल संसद में पास हो जाता है तो महिलाओं के लिए बेहद खुशी की बात होगी.
ओबीसी महिलाओं को मिले हिस्सेदारी: इसके अलावा दलित महिलाओं के लिए काम करने वाली सुमेधा बोध ने बताया कि इस बिल को 12 सितंबर 1996 को एचडी देवगौड़ा की सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में पेश किया था. उस समय 13 पार्टियों के गठबंधन की सरकार थी, लेकिन सरकार में शामिल जनता दल व कुछ अन्य पार्टी के नेता इस बिल के पक्ष में नहीं थे, जिससे इस बिल को रोक दिया गया था. महिला आरक्षण बिल पर हमेशा मांग रही है कि दलित वर्ग की महिलाओं और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अंतर्गत आने वाली महिलाओं को इसमें बराबर की हिस्सेदारी मिलनी चाहिए.
नहीं होना चाहिए आभारी: साथ ही कई महिला नेताओं व हस्तियों ने भी 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर प्रतिक्रिया दी है. सीपीएम नेता वृंदा करात ने कहा कि 'यह बिल सुनिश्चित करता है कि अगले परिसीमन अभ्यास तक महिलाएं चुनाव से वंचित रहें. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो 2024 के चुनावों और 18वीं लोकसभा के गठन तक संसद में 1/3 महिलाएं नहीं होंगी, कई विधानसभा चुनावों में 1/3 महिलाएं नहीं होंगी... क्या महिलाओं को मोदी सरकार द्वारा लाए गए इस बिल के लिए आभारी होना चाहिए? मैं कहूंगी कि बिल्कुल भी नहीं.'
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महिला आरक्षण बिल पर CPM नेता वृंदा करात ने कहा, "यह बिल सुनिश्चित करता है कि अगले परिसीमन अभ्यास तक महिलाएं चुनाव से वंचित रहें। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो 2024 के चुनावों और 18वीं लोकसभा के गठन तक संसद में 1/3 महिलाएं नहीं होंगी, कई विधानसभा चुनावों में 1/3 महिलाएं नहीं… pic.twitter.com/9cexUsRk9H
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">महिला आरक्षण बिल पर CPM नेता वृंदा करात ने कहा, "यह बिल सुनिश्चित करता है कि अगले परिसीमन अभ्यास तक महिलाएं चुनाव से वंचित रहें। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो 2024 के चुनावों और 18वीं लोकसभा के गठन तक संसद में 1/3 महिलाएं नहीं होंगी, कई विधानसभा चुनावों में 1/3 महिलाएं नहीं… pic.twitter.com/9cexUsRk9H
— ANI_HindiNews (@AHindinews) September 19, 2023महिला आरक्षण बिल पर CPM नेता वृंदा करात ने कहा, "यह बिल सुनिश्चित करता है कि अगले परिसीमन अभ्यास तक महिलाएं चुनाव से वंचित रहें। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो 2024 के चुनावों और 18वीं लोकसभा के गठन तक संसद में 1/3 महिलाएं नहीं होंगी, कई विधानसभा चुनावों में 1/3 महिलाएं नहीं… pic.twitter.com/9cexUsRk9H
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पहले भी ला सकते थे बिल: वहीं, समाजवादी पार्टी सांसद डिंपल यादव ने कहा कि सरकार को 9 साल पूरे हो गए हैं. अगर इन्हें महिला आरक्षण बिल लाना था तो ये पहले ला सकते थे. ये इसे आखिरी साल में ला रहे हैं, जब चुनाव हैं... सपा ने हमेशा इसका समर्थन किया है और हम सभी चाहते हैं कि ओबीसी के अंतर्गत आने वाली महिलाओं का भी आरक्षण इसमें निर्धारित हो, क्योंकि जो आखिरी पंक्ति में खड़ी महिलाएं हैं उन्हें उनका हक मिलना चाहिए.
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#WATCH सरकार को 9 साल पूरे हो गए हैं। अगर इन्हें महिला आरक्षण बिल लाना था तो ये पहले ला सकते थे। ये इसे आखिरी साल में ला रहे हैं, जब चुनाव हैं...सपा ने हमेशा इसका समर्थन किया है और हम सभी चाहते हैं कि OBC महिलाओं का भी इसमें आरक्षण निर्धारित हो क्योंकि जो आखिरी पंक्ति में खड़ी… pic.twitter.com/YYHxORElkA
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देश की तरक्की में अहम कदम: महिला आरक्षण बिल पर पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा कि एनडीए की सरकार को 10 साल होने वाले हैं. अगर उन्होंने यह पहले ही किया होता तो 2024 के चुनाव में महिलाओं को बड़ी तादाद में भाग लेने का मौका मिलता. लेकिन देर आए, दुरुस्त आए, अच्छी बात है... देश की तरक्की में यह एक अहम कदम होगा.
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#WATCH NDA की सरकार को 10 साल होने वाले हैं। अगर उन्होंने यह पहले ही किया होता तो 2024 के चुनाव में महिलाओं को बड़ी तादाद में भाग लेने का मौका मिलता। लेकिन देर आए, दुरुस्त आए, अच्छी बात है... देश की तरक्की में यह एक अहम कदम होगा: महिला आरक्षण बिल पर PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती pic.twitter.com/J2oANpLtsi
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महिलाओं के लिए अभी नो एंट्री: उधर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, 'मैं उम्मीद करती हूं कि यह तुरंत लागू होगा लेकिन बिल में यह लिखा है कि यह परिसीमन के बाद ही लागू होगा. इसका यह मतलब हुआ कि यह आरक्षण 2029 तक लागू नहीं हो सकता. आपने दरवाजे तो खोल दिए हैं लेकिन दरवाजों पर महिलाओं के लिए अभी भी नो एंट्री है.' उनके अलावा अभिनेत्री कंगना रनौत ने कहा कि नए संसद के पहले सत्र में जो बिल पेश हुआ है वह महिला सशक्तिकरण को समर्पित है. पीएम मोदी कोई भी मुद्दे पर चर्चा कर सकते थे, लेकिन उन्होंने महिलाओं को वरीयता देते हुए यह मुद्दा उठाया.
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महिला आरक्षण बिल पर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, "मैं उम्मीद करती हूं कि यह तुरंत लागू होगा लेकिन बिल में यह लिखा है कि यह परिसीमन के बाद ही लागू होगा। इसका यह मतलब हुआ कि यह आरक्षण 2029 तक लागू नहीं हो सकता। आपने दरवाजे तो खोल दिए हैं लेकिन… pic.twitter.com/YNPJRA2FJl
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— ANI_HindiNews (@AHindinews) September 19, 2023महिला आरक्षण बिल पर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, "मैं उम्मीद करती हूं कि यह तुरंत लागू होगा लेकिन बिल में यह लिखा है कि यह परिसीमन के बाद ही लागू होगा। इसका यह मतलब हुआ कि यह आरक्षण 2029 तक लागू नहीं हो सकता। आपने दरवाजे तो खोल दिए हैं लेकिन… pic.twitter.com/YNPJRA2FJl
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#WATCH नए संसद भवन का पहला सत्र जो हुआ है वह महिला सशक्तिकरण एवं महिला उत्थान को समर्पित किया गया... प्रधानमंत्री आज किसी भी मुद्दे पर चर्चा कर सकते थे लेकिन उन्होंने महिला को प्राथमिकता देते हुए महिला सशक्तिकरण का मुद्दा उठाया...: महिला आरक्षण बिल पर अभिनेत्री कंगना रनौत, दिल्ली pic.twitter.com/9OhlKseG52
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गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय कैबिनेट ने संसद के विशेष सत्र के बीच सोमवार को इसे मंजूरी दे दी है. इसमें लोकसभा और विधानसभाओं जैसी निर्वाचित संस्थाओं में 33 फीसदी महिला आरक्षण का प्रावधान है. इस विधेयक को संसद के विशेष सत्र में पेश किया गया है. सत्र की शुरुआत से पहले प्रधानमंत्री ने कहा था कि यह समय बड़े, मूल्यवान और ऐतिहासिक फैसलों का है.
क्या है महिला आरक्षण विधेयक: यह संविधान के 85 वें संशोधन का विधेयक है. इसके अंतर्गत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों पर आरक्षण का प्रावधान है. इसी 33 फीसदी में से एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की जानी है. लैंगिक समानता और समावेशी शासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होने के बावजूद यह विधेयक बहुत लंबे समय से अधर में लटका हुआ है.
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