नई दिल्ली: दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में कई केंद्रीय ट्रेड यूनियन, फेडरेशन, एसोसिएशन और संयुक्त किसान मोर्चा के संयुक्त आह्वान में श्रमिकों और किसानों के सम्मेलन का आयोजन किया गया. इसमें संगठनों ने कहा कि देश में 2014 से केंद्र सरकार द्वारा आक्रामक रूप से अपनाई जा रही विनाशकारी और कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों के कारण हमारे देश के श्रमिकों, किसानों और आम लोगों के सामने चिंताजनक स्थिति है.
आने वाले कार्यक्रमों को तय किया: ये नीतियां मजदूर विरोधी, किसान विरोधी और जन विरोधी है, जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और राष्ट्र की अखंडता के लिए विनाशकारी साबित हुई है. इस राष्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन इन विनाशकारी नीतियों से लोगों और उनकी आजीविका को बचाने के लिए आने वाले समय में संयुक्त और समन्वित कार्यक्रम तय करने के लिए किया गया है.
किसान आंदोलन से पीछे हटी सरकार: प्रदर्शन में शामिल हुए बच्चा प्रसाद सिंह ने कहा कि तीन कृषि कानूनों के जरिए किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया गया. वहीं बड़े कॉर्पोरेट घरानों ने सरकारी स्वामित्व वाले गोदामों के स्थान पर निजी गोदाम बनाने के लिए जमीन के बड़े हिस्से का अधिग्रहण किया. संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले किसानों के दृढ़ संघर्ष के कारण किसान 13 महीने तक दिल्ली की सीमाओं पर बैठे रहे. उन्होंने कठोर मौसम, कोविड महामारी, उत्पीड़न और दुर्व्यवहार का सामना करते हुए केंद्र सरकार को अपनी साख बचाने के लिए पीछे हटने के लिए मजबूर किया था.
वादे नहीं किए गए पूरे: लेकिन केंद्र सरकार द्वारा एमएसपी और बिजली (संशोधन) विधेयक आदि पर किसानों को दिए गए लिखित आश्वासन का भी सम्मान नहीं किया. सरकारी नीतियों के कारण किसानों पर कर्ज बढ़ गया है और किसानों से उनकी आय दोगुनी करने के सारे वायदे धरे के धरे रह गए हैं. पर्याप्त सिंचाई की कमी, गैर-कार्यशील फसल बीमा योजना, सार्वजनिक वितरण योजना को प्रत्यक्ष लाभ योजना ने किसानों की परेशानियों को बढ़ाया. किसानों द्वारा उत्पादन स्तर को ऊंचा करने के योगदान के बावजूद, कृषि अर्थव्यवस्था लगातार संकट का सामना कर रही है.
मजदूरों का हो रहा पलायन: उन्होंने यह भी कहा कि श्रमिकों को बढ़ती बेरोजगारी और सभी आवश्यक चीजों की बढ़ती कीमतों का सामना करना पड़ रहा है. स्थायी नौकरियां तेजी से घट रही है और आउटसोर्सिंग, विभिन्न प्रारूपों में अनुबंध कार्य, निश्चित अवधि के रोजगार, कार्य आदि के साथ-साथ कुल मिलाकर वास्तविक वेतन स्तर में भारी गिरावट अब सामान्य बात बनती जा रही है. खेती करने वाले मजदूर इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं और उन्हें पूरी तरह से गरीबी में धकेल दिया गया है. इसके चलते उन्हें सामाजिक सुरक्षा से वंचित होकर बड़ी संख्या में शहरों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
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