नई दिल्ली: दिल्ली-एनसीआर में मंगलवार देर रात करीब 1 बजकर 57 मिनट पर 6.3 तीव्रता का भूकंप आया (Earthquake tremors felt across Delhi-NCR). इसके अलावा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, राजस्थान में भी लोगों ने भूकंप के झटके महसूस किए. भूकंप के वक्त ज्यादातर लोग सोए हुए थे लेकिन झटके महसूस होने के बाद वे घरों से बाहर निकल आए. भूकंप का केंद्र नेपाल के बाद उत्तराखंड का पिथौरागढ़ था, लेकिन उसका असर दिल्ली-एनसीआर में भी महसूस किया गया. विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली में हाई रिस्क सिस्मिक जोन है इसलिए यहां आसपास के इलाकों में आए भूकंप से प्रभाव पड़ता है. नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, बीते 24 से 36 घंटों में भारत व आसपास के इलाकों में 6 जगहों पर भूकंप के झटके महसूस किए गए.
लोगों ने बताया कि भूकंप के झटकों के कारण घरों में पंखे, अलमीरा और बेड आदि हिलने लगे. फिलहाल किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है. ग्रेटर नोएडा निवासी एक शख्स ने बताया कि मैं मेरे कुछ दोस्तों के साथ अपने घर पर फिल्म देख रहा था. तभी मुझे झटके महसूस हुए. मुझे लगा कि मेरा दोस्त मेरी कुर्सी हिला रहा है लेकिन फिर उन सब ने भी इसे महसूस किया. इसके बाद हम कुछ देर के लिए खंभे के पास खड़े रहे. बताया जा रहा है कि भूकंप का केंद्र नेपाल में था जहां एक घर गिरने के कारण 6 लोगों की मौत हो गई है.
नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के मुताबिक इस भूकंप का केंद्र नेपाल के मणिपुर में जमीन से 10 किमी नीचे गहराई था. वहीं मंगलवार देर रात करीब 3 बजकर 15 मिनट पर नेपाल में 3.6 रिक्टर स्केल की तीव्रता का भी भूकंप दर्ज किया गया. इससे पहले मंगलवार रात 9 बजकर 35 मिनट पर 3.5 तीव्रता का भूकंप जमीन के 5 किलोमीटर नीचे दर्ज किया गया था. साथ ही करीब रात 8 बजकर 52 मिनट पर भी 4.9 तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया था. इस लिहाज से अकेले नेपाल में ही एक दिन में चार बार एक ही इलाके के आसपास भूकंप आया.
नेशनल सेंटर ऑफ सिस्मोलॉजी के वैज्ञानिक वेद प्रकाश ठाकुर ने बताया कि भूकंप जिनकी तीव्रता 4.0 से कम होती है उनसे नुकसान की संभावना बेहद कम होती है. चूंकि बुधवार को जो भूकंप आया है उसका केंद्र नेपाल और उत्तराखंड है, इसलिए दिल्ली पर कम असर पड़ा है. यह हल्की एडजस्टमेंट का नतीजा है जो खतरनाक नहीं होते. दिल्ली के आसपास ऐसी कोई फॉल्ट प्लेट नहीं है, जिसपर इस समय प्रेशर काफी ज्यादा हो. इसी वजह से इसे सिस्मिक जोन 4 में रखा गया है. नेपाल में आए भूकंप का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि इस तरह के भूकंप उदाहरण है कि हिमालय रीजन में प्रेशर बढ़ रहा है.
भारत में भूकंप जोन मैप को सिस्मिक जोन के आधार पर चार भागों में बांटा गया है. जोन 5 भूकंप के लिहाज से ज्यादा खतरनाक होता है, जबकि जोन 2 में सबसे कम खतरा होता है. दिल्ली 295 सालों से भूकंप का एपिसेंटर रहा है. पास में ही हिमालय पर्वत होने के कारण यहां पर कई बार उच्च तीव्रता वाले भूकंप के झटके भी महसूस किए जा चुके हैं.
अधिक तीव्रता होने पर इन इलाकों में अधिक खतरा: वेद प्रकाश बताते हैं कि दिल्ली तीन सबसे एक्टिव सिस्मिक फॉल्ट लाइंस पर स्थित है इसमें सोहना फॉल्ट लाइन, मथुरा फॉल्ट लाइन और दिल्ली-मुरादाबाद फॉल्ट लाइन शामिल है. इसके अलावा गुरुग्राम भी सात सबसे एक्टिव सिस्मिक फॉल्ट लाइन पर स्थित है जो दिल्ली के अलावा एनसीआर को भी सबसे खतरनाक एरिया बनाता है. अगर इनमें से कोई भी लाइन एक्टिव होती है तो इससे 7.5 तक की तीव्रता वाला भूकंप आने की आशंका होती है.
कम खतरे वाले क्षेत्र: वहीं दूसरी तरफ जेएनयू, एम्स, छतरपुर और नारायणा कम खतरे वाले क्षेत्र हैं. यहां भूकंप का ज्यादा खतरा नहीं बताया जाता है. इसके अलावा लुटियंस दिल्ली, मंत्रालय संसद और वीआईपी इलाके भी हाई रिस्क जोन में आते हैं लेकिन यमुना के अंतर्गत आने वाले इलाकों जैसे खतरनाक नहीं हैं. बता दें कि इससे पहले दिल्ली में 29 मई 2021 को भूकंप आया था.
क्यों आता है भूकंप: धरती मुख्य तौर पर चार परतों से बनी हुई है. इनर कोर, आउटर कोर, मैंटल और क्रस्ट. क्रस्ट और ऊपरी मैंटल कोर को लिथोस्फेयर कहते हैं. ये 50 किलोमीटर की मोटी परत कई वर्गों में बंटी हुई है, जिसे टेक्टोनिक प्लेट्स कहा जाता है. ये टेक्टोनिक प्लेट्स अपनी जगह पर हिलती रहती हैं. जब ये प्लेट बहुत ज्यादा हिल जाती हैं, तो भूकंप महसूस होता है. इस दौरान एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे आ जाती है.
भूकंप की तीव्रता का अंदाजा केंद्र (एपीसेंटर) से निकलने वाली ऊर्जा की तरंगों से लगाया जाता है. इन तरंगों से सैंकड़ो किलोमीटर तक कंपन होता है और धरती में दरारें तक पड़ जाती है. अगर भूकंप की गहराई उथली हो तो इससे बाहर निकलने वाली ऊर्जा सतह के काफी करीब होती है, जिससे भयानक तबाही होती है, लेकिन जो भूकंप धरती की गहराई में आते हैं, उनसे सतह पर ज्यादा नुकसान नहीं होता. समुद्र में भूकंप आने पर ऊंची और तेज लहरें उठती हैं, जिसे सुनामी भी कहते हैं.
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कैसे मापी जाती है भूकंप की तीव्रता: भूकंप की तीव्रता को मापने के लिए रिक्टर स्केल का पैमाना इस्तेमाल किया जाता है. इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल कहा जाता है. रिक्टर स्केल पर भूकंप को 1 से 9 तक के आधार पर मापा जाता है. भूकंप को इसके केंद्र यानी एपीसेंटर से मापा जाता है.
भूकंप से जान-माल की हानि, इमारतों, बांध, पुल आदि को को नुकसान पहुंचता है. पहाड़ी व पर्वतीय इलाकों में हिम स्खलन भी होता है जो वहां पर क्षति का कारण हो सकता है. साथ ही विद्युत लाइन के टूट जाने से आग भी लग सकती है. और तो और भूकंप से क्षतिग्रस्त बांध के कारण बाढ़ तक आ सकती है.
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