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दिल्ली विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों के योगदान को किया गया याद

आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के संयुक्त तत्वावधान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों के योगदान
स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों के योगदान
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Published : Nov 25, 2022, 8:30 PM IST

नई दिल्ली: आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के संयुक्त तत्वावधान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. "स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों के योगदान" विषय के तहत विश्वविद्यालय के कॉन्फ्रेंस सेंटर में आयोजित इस कार्यक्रम में एनसीएसटी के अध्यक्ष हर्ष चौहान मुख्यातिथि थे. इस अवसर पर एनसीएसटी सदस्य अनंत नायक विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे. कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने की. इस अवसर पर मुख्य अतिथि हर्ष चौहान ने अपने संबोधन में कहा कि भारत में जनजातीय समुदायों की छवि और वास्तविकता के बीच बहुत बड़ा अंतर है. इसलिए, इस तरह के आयोजनों से लोगों को जनजातीय आबादी के बारे में शिक्षित करने और भारतीय इतिहास में जनजातीय लोगों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाल कर उनकी धारणा को बदलने में मदद मिलेगी.

ये भी पढ़ें : सीएम केजरीवाल को जान से मारने की बीजेपी की धमकी को लेकर पुलिस में दर्ज कराएंगे शिकायत : सिसोदिया

इस अवसर पर अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के उपाध्यक्ष सत्येंद्र सिंह ने अपने संबोधन में अंग्रेजों के विरुद्ध प्रतिरोध का नेतृत्व करने वाले बिरसा मुंडा, तिलकामांझी, रानी चेन्नम्मा, भीमा नायक, चक्र बिसोई और उनके चाचा डोरा बिसोई, सिद्धू और कान्हू मुर्मू जैसे अनेकों प्रमुख जनजातीय क्रांतिकारियों के योगदान को रेखांकित किया. कहा कि हमें इन गुमनाम नायकों के योगदान को याद रखने की जरूरत है. एनसीएसटी की सचिव अलका तिवारी ने इस अवसर कहा कि संविधान द्वारा अनिवार्य एनसीएसटी की संरचना, कर्तव्यों, कार्यों और शक्तियों के बारे में लोगों को शिक्षित करना महत्वपूर्ण है. कार्यक्रम के विशेष अतिथि अनंत नायक ने कहा कि भारतीय इतिहास में जनजातीय समुदाय का योगदान अंग्रेजों के आगमन से बहुत पुराना है, जिसे रामायण और महाभारत के काल में भी देखा जा सकता है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने विश्वविद्यालयों द्वारा इस तरह के कार्यक्रमों के आयोजन के महत्व को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रम हमें हमारे उन गुमनाम नायकों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं जिन्होंने हमारे लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया. उन्होंने कहा कि ये हमारा दायित्व है कि हम उन्हें याद करें और उनके जीवन से प्रेरणा लें.

इस अवसर पर एनसीएसटी द्वारा तैयार किया गया एक वीडियो भी चलाया गया, जिसमें समकालीन समय में जनजातीय समुदायों के सामने आने वाली समस्याओं और उन्हें सशक्त बनाने में एनसीएसटी की भूमिका को दिखाया गया. कार्यक्रम के अंत में डीयू रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापन किया. दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों लूके कुमारी, विवेकानंदनर्तम और दीपक लाल कुजूर ने इस कार्यक्रम के आयोजन में महत्वपूर्ण ने भूमिका निभाई.

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नई दिल्ली: आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के संयुक्त तत्वावधान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. "स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों के योगदान" विषय के तहत विश्वविद्यालय के कॉन्फ्रेंस सेंटर में आयोजित इस कार्यक्रम में एनसीएसटी के अध्यक्ष हर्ष चौहान मुख्यातिथि थे. इस अवसर पर एनसीएसटी सदस्य अनंत नायक विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे. कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने की. इस अवसर पर मुख्य अतिथि हर्ष चौहान ने अपने संबोधन में कहा कि भारत में जनजातीय समुदायों की छवि और वास्तविकता के बीच बहुत बड़ा अंतर है. इसलिए, इस तरह के आयोजनों से लोगों को जनजातीय आबादी के बारे में शिक्षित करने और भारतीय इतिहास में जनजातीय लोगों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाल कर उनकी धारणा को बदलने में मदद मिलेगी.

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इस अवसर पर अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के उपाध्यक्ष सत्येंद्र सिंह ने अपने संबोधन में अंग्रेजों के विरुद्ध प्रतिरोध का नेतृत्व करने वाले बिरसा मुंडा, तिलकामांझी, रानी चेन्नम्मा, भीमा नायक, चक्र बिसोई और उनके चाचा डोरा बिसोई, सिद्धू और कान्हू मुर्मू जैसे अनेकों प्रमुख जनजातीय क्रांतिकारियों के योगदान को रेखांकित किया. कहा कि हमें इन गुमनाम नायकों के योगदान को याद रखने की जरूरत है. एनसीएसटी की सचिव अलका तिवारी ने इस अवसर कहा कि संविधान द्वारा अनिवार्य एनसीएसटी की संरचना, कर्तव्यों, कार्यों और शक्तियों के बारे में लोगों को शिक्षित करना महत्वपूर्ण है. कार्यक्रम के विशेष अतिथि अनंत नायक ने कहा कि भारतीय इतिहास में जनजातीय समुदाय का योगदान अंग्रेजों के आगमन से बहुत पुराना है, जिसे रामायण और महाभारत के काल में भी देखा जा सकता है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने विश्वविद्यालयों द्वारा इस तरह के कार्यक्रमों के आयोजन के महत्व को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रम हमें हमारे उन गुमनाम नायकों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं जिन्होंने हमारे लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया. उन्होंने कहा कि ये हमारा दायित्व है कि हम उन्हें याद करें और उनके जीवन से प्रेरणा लें.

इस अवसर पर एनसीएसटी द्वारा तैयार किया गया एक वीडियो भी चलाया गया, जिसमें समकालीन समय में जनजातीय समुदायों के सामने आने वाली समस्याओं और उन्हें सशक्त बनाने में एनसीएसटी की भूमिका को दिखाया गया. कार्यक्रम के अंत में डीयू रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापन किया. दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों लूके कुमारी, विवेकानंदनर्तम और दीपक लाल कुजूर ने इस कार्यक्रम के आयोजन में महत्वपूर्ण ने भूमिका निभाई.

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