नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो योगेश सिंह ने मणिपुर हिंसा पर कहा है कि विश्वविद्याल मणिपुर हिंसा पीड़ित विद्यार्थियों के लिए हर सहायता करने के लिए तैयार है. मणिपुर की समस्या को पूरा देश समझता है. दिल्ली विश्वविद्यालय ऐसे सभी पीड़ित विद्यार्थियों के लिए हर संभव मदद के लिए तैयार है. यदि किसी विद्यार्थी को कोई दिक्कत है तो वह डीयू प्रशासन से संपर्क कर सकता है. अगर अलग से भी कुछ प्रावधान करने की जरूरत पड़ी तो विश्वविद्यालय ऐसा करने का भी प्रयास करेगा. यह बात उन्होंने एक कार्यक्रम के दौरान कही.
इस आधार पर मिलेगा सीईएस में प्रवेश: कुलपति ने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा शुरू की गई अनूठी योजना, कॉम्पिटेंस एन्हांसमेंट स्कीम के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू हो चुका है. इस योजना के तहत कोई भी नागरिक अपने कौशल को बढ़ाने के लिए डीयू के वर्तमान प्रोग्रामों में प्रवेश ले सकता है. कोई व्यक्ति, जो मौजूदा पाठ्यक्रम के लिए निर्दिष्ट न्यूनतम पात्रता मानदंड और पूर्व-आवश्यकताएं (यदि कोई हो) पूरी करता है, तो वह सीटों की उपलब्धता के अधीन उस पाठ्यक्रम के लिए पंजीकरण करवा सकता है.
उन्होंने बताया कि 60 वर्ष से कम उम्र वाले आवेदकों को कोर्स की अनिवार्य योग्यता के आधार पर प्रवेश किया जाएगा. वहीं वरिष्ठ नागरिकों के लिए प्रवेश मेरिट और उम्र के आधार पर होगा, जहां योग्यता और उम्र को क्रमश: 70 प्रतिशत और 30 प्रतिशत का महत्व दिया जाएगा. पाठ्यक्रम में सीटों की संख्या, उस पाठ्यक्रम की कक्षा की कुल क्षमता का अधिकतम 10 प्रतिशत या 6 सीटें (जो भी कम हो) होगी. इस दौरान हिंदू स्टडीज को लेकर उन्होंने कहा कि इस पर अभी काम चल रहा है. लगभग एक सप्ताह में एडमिशन पॉलिसी आ जाएगी. फिलहाल यह प्रायोगिक तौर पर किया जा रहा है.
सीयूईटी से विद्यार्थियों को मिल रहा उचित मौका: सीयूईटी टेस्ट को लेकर एक प्रश्न के जवाब में कुलपति ने कहा कि देश में कई तरह के शिक्षा बोर्ड काम कर रहे हैं. सभी का मार्किंग सिस्टम अलग-अलग हो सकता है. इसलिए सीयूईटी से सभी प्रदेशों के विद्यार्थियों को दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए उचित मौका मिल रहा है. यह सीयूईटी का दूसरा वर्ष है. पिछले वर्ष के अनुभवों के आधार पर कई बदलाव हुए हैं. यह दुनिया का सबसे बड़ा टेस्ट था, जिसे एनटीए ने बखूबी आयोजित करके बड़ा काम किया है.
675 बहु विषयक और 109 कौशल शिक्षा के पाठ्यक्रम: डीयू की डीन एकेडमिक अफेयर्स प्रो. के. रत्नाबली ने दिल्ली विश्वविद्यालय में एनईपी 2020 के कार्यान्वयन को लेकर बताया कि, दिल्ली विश्ववियालय ने स्नातक स्तर के विद्यार्थियों को केंद्र में रखकर एनईपी 2020 का कार्यान्वयन शुरू किया है. इसी के अनुसार विश्वविद्यालय ने यूजीसीएफ 2022 तैयार किया है. इसमें 675 बहुविषयक पाठ्यक्रम शामिल किए गए हैं. वहीं समग्र शिक्षा के तहत कौशल शिक्षा के 109 पाठ्यक्रम शामिल किए गए हैं. इसमें रिसर्च और इनोवेशन पर पूरा ध्यान रखा गया है.
एनईपी 2020-क्या है नया: यूजीसीएफ 2022 के अनुसार, इसके अनुसार विद्यार्थी अपनी रुचि के प्रोग्राम चुने सकते हैं और अपनी शिक्षा योजना के अनुसार वह मेजर और माइनर विषय चुन सकते हैं. जैसे मेजर सब्जेक्ट फिजिक्स के साथ माइनर के रूप में संस्कृत का चयन किया जा सकता है. साथ ही विद्यार्थी अपनी रुचि के अनुसार कौशल पाठ्यक्रमों में से विकल्प चुनने के साथ इंटर्नशिप/अप्रेंटिसशिप/सामुदायिक आउटरीच और प्रोजेक्ट का विकल्प चुन सकते हैं. इसके अलावा वे डिसर्टेशन/अकेडमिक प्रोजेक्ट या एंटरप्रेन्योरशिप का विकल्प भी चुन सकते हैं.
समग्र शिक्षा के तहत योग्यता संवर्धन पाठ्यक्रमों के रूप में 22 भारतीय भाषाएं और ईवीएस व 26 मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं. अनुसंधान और नवाचार को केंद्र में रखते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय ने उदमोद्य फाउंडेशन की स्थापना की है. चार वर्ष के प्रोग्राम में प्रत्येक वर्ष के बाद प्रमाणपत्र/डिप्लोमा/डिग्री/ऑनर्स डिग्री का प्रावधान किया गया है. वहीं आजीवन सीखने, अप-स्किलिंग और री-स्किलिंग का भी शिक्षा नीति में प्रावधान किया गया है. व्यवसायिक पाठ्यक्रमों की श्रृंखला में एक्वाकल्चर उद्यमिता, मछली पालन, मछली आहार का निर्माण, मछली प्रजनन और लार्वा पालन, सजावटी मछली उत्पादन, बायो-फ्लॉक प्रौद्योगिकी और मोती उत्पादन जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को जोड़ना भी शामिल है.
दिल्ली सरकार ने सबसे पहले किया था लागू: कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि शिक्षा सबके लिए सुलभ होनी चाहिए. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी 2020) का यही मकसद है और दिल्ली विश्वविद्यालय इसे लेकर पूरी तरह से गंभीर है. उन्होंने एनईपी 2020 को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय की अब तक की उपलब्धियां भी गिनवाई. वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने के उद्देश्य से 29 जुलाई, 2020 को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी 2020) लॉन्च की गई थी, जिसे सबसे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा लागू किया गया था.
कुलपति ने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने शैक्षणिक सत्र 2022-23 से अंडर ग्रेजुएट करिकुलम फ्रेमवर्क 2022 (यूजीसीएफ) के माध्यम से स्नातक स्तर पर एनईपी 2020 को लागू किया है. उन्होंने बताया कि यूजीसीएफ 2022 को इस तरह से तैयार किया गया है कि यह विद्यार्थियों को बहु-विषयक दृष्टिकोण के साथ अपने शैक्षणिक पथ को विकसित करने के लिए लचीलापन देता है. यह अनुसंधान और नवाचार पर जोर देने के साथ-साथ समग्र और कौशल शिक्षा प्रदान करता है.
विचार के कार्यान्वन में लगेगा वक्त: उन्होंने कहा, इसका उद्देश्य विश्लेषणात्मक और रचनात्मक सोच विकसित करना है. यूजीसीएफ 2022 में इंटर्नशिप, अप्रेंटिसशिप, प्रोजेक्ट और सामुदायिक आउटरीच के प्रावधानों को शामिल किया गया है. एनईपी के फॉर्मेट और रेगुलराइजेशन पर बहुत काम हो गया है, अब इसका दूसरा चरण शुरू हो रहा है. शिक्षक और शिक्षार्थी का गहरा संबंध रहा है. भारत गुरु-शिष्य परंपरा पर बहुत लंबे समय तक चला है. अंग्रेज जो शिक्षा पद्धति लेकर आए, उन्हें अफसर चाहिए थे. एनईपी 2020 में ये विचार रखा गया है कि सभी संस्थान डिग्रियां देने वाले हों. हालांकि फिलहाल यह बड़ी चुनौती है. इसके कार्यान्वयन में वक्त लगेगा. लेकिन इस पर धीरे धीरे काम हो रहा है.
कुलपति ने यह भी बताया कि हर नया प्रावधान परिवर्तनों की ओर लेकर जाता है और परिवर्तनों को शुरू में स्वीकारने में कुछ दिक्कतें आती हैं. एनईपी को सभी ने खुले मन से स्वीकार किया है और शिक्षक भी इसके लिए पूरी तरह से तैयार हैं. अंडरग्रैजुएट कैरीकुलम फ्रेमवर्क 2022 के तहत पढ़ाई शुरू हो चुकी है. अब आगे पीजी कैरीकुलम फ्रेमवर्क पर काम होगा. किसी भी अन्य विश्वविद्यालय से अगर कोई विद्यार्थी तीन वर्षीय यूजी प्रोग्राम पास कर के आता है तो दिल्ली विश्वविद्यालय में उसे 2 वर्षीय पीजी प्रोग्राम में दाखिला मिलेगा और जो 4 वर्षीय यूजी प्रोग्राम पास करके आएगा तो उसे एक वर्षीय पीजी प्रोग्राम में दाखिला मिलेगा.
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उन्होंने बताया कि विदेशी विश्वविद्यालयों से भी एमओयू साइन हो रहे हैं और ज्वाइंट डिग्री प्रोग्रामों के लिए योजना तैयार हो रही है. दिल्ली विश्वविद्यालय में 22 भारतीय भाषाओं की पढ़ाई को लेकर कुलपति ने कहा कि, अगर इन्हें पढ़ने वाले विद्यार्थी आएं तो इसके लिए इन भाषाओं को शिक्षक जोड़ो जाएंगे. इसके लिए योजना अनुसार कॉलेजों के क्लस्टर भी बनाए गए हैं, ताकि कम विद्यार्थियों की स्थिति में विद्यार्थियों को संयुक्त रूप से पढ़ाया जा सके.
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