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करप्शन के नाम पर MCI गया NMC आयाः डॉ. अनिल बंसल

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Published : Oct 1, 2020, 10:15 PM IST

Updated : Oct 3, 2020, 7:23 PM IST

दिल्ली मेडिकल काउंसिल के एंटीक्वैरी सेल सेल के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल बंसल ने कहा कि सरकार शुरू से ही इंटीग्रेटेड मेडिकल कोर्स को लागू करना चाहती थी. पर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया शुरू से ही इसका विरोध करता रहा.

Dr. Anil Bansal talk about NMC and MCI
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया

नई दिल्लीः देशभर में मेडिकल एजुकेशन को नियमित और नियंत्रित करने वाली संस्था मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) अब बीते दिनों की बात हो गई है. 25 सितंबर से अब इसकी जगह नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने ले लिया है.

करप्शन के नाम पर NMC गया MCI आयाः डॉ. अनिल बंसल

बता दें कि देश की चिकित्सा व्यवस्था को डिजाइन करना, मेडिकल कॉलेज को लाइसेंस देना, उसे नियंत्रित करना और देश में कहीं भी प्रैक्टिस करने के लिए चिकित्सकों को रजिस्ट्रेशन प्रदान करने का काम एमसीआई का काम था. एमसीआई की इतनी अहम जिम्मेदारी थी, लेकिन जहां भ्रष्टाचार की कोपलें फूटने लगी.

मेडिकल की पढ़ाई कराने वाली डीम्ड यूनिवर्सिटी मशरूम की तरह जगह-जगह पैदा होने लगी. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया जो पार्लियामेंट एक्ट के तहत बना था, उसके कामकाज के तरीकों पर सवाल पैदा होने लगे. 90 के दशक के बाद यहां भ्रष्टाचार जोर पकड़ने लगा.

इनके कई पूर्व अध्यक्षों के ऊपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे. उसके बाद सरकार की नजरें टेढ़ी हुई और इसे हटा कर इसकी जगह पर एनएमसी लाने का प्रस्ताव लाया गया. 24 सितंबर भारतीय चिकित्सा परिषद के आधिकारिक कामकाज का आखरी दिन साबित हुआ और उसके एक दिन बाद ही 25 सितंबर से नेशनल मेडिकल काउंसिल ने अपना कामकाज संभाल लिया.

'एक समान मान्यता देना चाहती थी सरकार'

दिल्ली मेडिकल काउंसिल के एंटीक्वैरी सेल सेल के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल बंसल बताते हैं कि सरकार शुरू से ही इंटीग्रेटेड मेडिकल कोर्स को लागू करना चाहती थी. इसके तहत आयुर्वेदिक होम्योपैथिक, यूनानी और नेचुरोपैथी समेत हर तरह की पुराने चिकित्सा पद्धतियों को एक समान मान्यता देना चाहती थी, लेकिन मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया शुरू से ही इसका विरोध करते रहा.

डॉ. अनिल बंसल बताते हैं कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी एमसीआई के पक्ष में ही अपना फैसला दिया. इंटीग्रेटेड मेडिकल प्रैक्टिस को कानूनी अमलीजामा पहनाने के लिए आईएमसी एक्ट में बदलाव जरूरी था, जो कानूनन हो नहीं पा रहा था. इसीलिए भ्रष्टाचार के नाम पर एमसीआई को ही खत्म कर दिया गया और इसकी जगह पर नेशनल मेडिकल काउंसिल बना दिया गया है.

'झोलाछाप और क्वालिफाइड डॉक्टर्स होंगे एक समान'

डॉक्टर बंसल ने बताया कि एमसीआई के एक्ट 15 (2b) में स्पष्ट उल्लेख था कि कोई भी व्यक्ति बिना रजिस्ट्रेशन के प्रैक्टिस करते हुए पाए जाने पर एक साल की सजा या 1000 रुपये का जुर्माना या दोनों का प्रावधान था. लेकिन एनएमसी एक्ट के तहत इन सभी को मान्यता मिल जाएगा. वे बिना रजिस्ट्रेशन के ही प्रैक्टिस कर सकेंगे. इसे झोलाछाप डॉक्टरों को कानूनी सरंक्षण मिल जाएगा.

'50 वर्षों से चल रही थी लड़ाई'

डॉक्टर बंसल के मुताबिक पिछले 50 वर्षों से इंटीग्रेटेड कोर्स को लेकर कोर्ट में लड़ाई चल रही थी. यह मामला 1979 में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. दरअसल पंजाब में मुख्तारचंद नाम का एक आयुर्वेदिक डॉक्टर एलोपैथिक दवाई की प्रैक्टिस कर रहा था. पंजाब सरकार ने उसे प्रैक्टिस करने से रोक दिया. इसके बाद मुख्तारचंद सुप्रीम कोर्ट में चला गया.

इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 10 साल तक बहस चलती रही. 1999 में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ गया. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कह दिया कि एमसीआई एक्ट के तहत कोई भी आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, नेचुरोपैथी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर एलोपैथिक दवाई की प्रैक्टिस नहीं कर सकते.

डॉ. बंसल बताते हैं कि इस आदेश के बावजूद आयुर्वेदिक डॉक्टर की संस्था अयुर्वेदिक कॉउंसिल ने एक नोटिस निकाल दिया. जिसमें उन्होंने दावा किया कि वे भी अपने पाठ्यक्रम में एलोपैथ की पढ़ाई करते हैं. इसलिए एलोपैथिक दवाई की प्रैक्टिस करने का अधिकार उनका भी है.

अपने अधिकार को लेने के लिए आयुर्वेदिक वाले केरला हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के ऊपर केरला हाईकोर्ट ने आयुर्वेदिक डॉक्टरों के अपील को रद्द कर दिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट जज सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच में भी उनकी अपील को रद्द कर दिया गया. इतना कुछ होने के बावजूद एलोपैथिक प्रैक्टिस करते रहे.

दिल्ली हाईकोर्ट में भी लटका रहा मामला'

इसके बाद डॉ. अनिल बंसल ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और दिल्ली मेडिकल काउंसिल की तरफ से 2009 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की. वहां उन्हें बताया गया कि पहले हमें स्टेट हाई कोर्ट में जाना है. वहां से अगर कुछ नहीं हो पाता है तो फिर इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हो सकती है. डीएमए की तरफ से दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की. यहां यह मामला 7 सालों तक चलता रहा.

आखिरकार 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑर्डर दिया. इस ऑर्डर के तहत अल्टरनेट प्रैक्टिस करने वाले कोई भी डॉक्टर एलोपैथिक दवाई मरीजों को प्रिसक्राइब नहीं कर सकते. इसके बाद आयुर्वेदिक वाले डबल बेंच में गए. वहां से भी इनके आवेदन को रद्द किया गया. इसके बाद वे दोबारा सुप्रीम कोर्ट गए. 2016 में आयुर्वेदिक डॉक्टरों की संस्था ने अपने केस को मजबूती से रखने के लिए महंगे वकील हरीश साल्वे को खड़ा किया.

'हरीश साल्वे ने दिखाई बड़ी चालाकी'

डॉ. बंसल ने बताया कि इस मामले में भी हरीश साल्वे ने काफी चालाकी की. जब भी कोर्ट में सुनवाई की तारीख पड़ती थी वह किसी न किसी बहाने से कहीं चले जाते और तारीख लगातार आगे बढ़ते रहे. 5 महीने तक ऐसा ही चलता रहा. सुप्रीम कोर्ट के जिस बेंच में केस की सुनवाई हो रही थी, उस बेंच में जस्टिस वाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे. वह झोलाछाप डॉक्टर के बिलकुल खिलाफ थे.

'एनएमसी आने के साथ ही एमसीआई से जुड़े सारे मामले बंद'

डॉ. बंसल ने बताया कि अभी भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है क्योंकि अब केंद्र सरकार ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को निरस्त कर दिया है. उसकी जगह पर नेशनल मेडिकल कमिशन आ गया है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट का यह मामला अपने आप हो रद्द हो गया है क्योंकि यह पूरा मामला एमसीआई एक्ट के तहत ही नहीं रहा तो यह भी अपने आप ही खत्म हो गया. डॉ. अनिल बंसल ने बताया कि इस मामले को आगे बढ़ाया जाए, लेकिन एलोपैथिक डॉक्टरों की शीर्ष संस्थाओं ने इस मामले में दिलचस्पी लेना बंद कर दिया.

एनएमसी के आने से ये फर्क पड़ेगा

डॉ. अनिल बंसल ने बताया कि एनएमसी के अस्तित्व में आने के बाद क्वालिटी हेल्थ एजुकेशन सिस्टम प्रभावित होगा. इसका असर देश की स्वास्थ्य पर पड़ेगा. अभी तक एमबीबीएस की पढ़ाई कर डॉक्टर क्रीम बनकर बाहर आते थे, लेकिन अब आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, नेचुरोपैथी और इलेक्ट्रोपैथी जैसी अल्टरनेटिव प्रैक्टिस करने वाले लोग स्वास्थ्य व्यवस्था को खराब कर देंगे.

नई दिल्लीः देशभर में मेडिकल एजुकेशन को नियमित और नियंत्रित करने वाली संस्था मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) अब बीते दिनों की बात हो गई है. 25 सितंबर से अब इसकी जगह नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने ले लिया है.

करप्शन के नाम पर NMC गया MCI आयाः डॉ. अनिल बंसल

बता दें कि देश की चिकित्सा व्यवस्था को डिजाइन करना, मेडिकल कॉलेज को लाइसेंस देना, उसे नियंत्रित करना और देश में कहीं भी प्रैक्टिस करने के लिए चिकित्सकों को रजिस्ट्रेशन प्रदान करने का काम एमसीआई का काम था. एमसीआई की इतनी अहम जिम्मेदारी थी, लेकिन जहां भ्रष्टाचार की कोपलें फूटने लगी.

मेडिकल की पढ़ाई कराने वाली डीम्ड यूनिवर्सिटी मशरूम की तरह जगह-जगह पैदा होने लगी. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया जो पार्लियामेंट एक्ट के तहत बना था, उसके कामकाज के तरीकों पर सवाल पैदा होने लगे. 90 के दशक के बाद यहां भ्रष्टाचार जोर पकड़ने लगा.

इनके कई पूर्व अध्यक्षों के ऊपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे. उसके बाद सरकार की नजरें टेढ़ी हुई और इसे हटा कर इसकी जगह पर एनएमसी लाने का प्रस्ताव लाया गया. 24 सितंबर भारतीय चिकित्सा परिषद के आधिकारिक कामकाज का आखरी दिन साबित हुआ और उसके एक दिन बाद ही 25 सितंबर से नेशनल मेडिकल काउंसिल ने अपना कामकाज संभाल लिया.

'एक समान मान्यता देना चाहती थी सरकार'

दिल्ली मेडिकल काउंसिल के एंटीक्वैरी सेल सेल के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल बंसल बताते हैं कि सरकार शुरू से ही इंटीग्रेटेड मेडिकल कोर्स को लागू करना चाहती थी. इसके तहत आयुर्वेदिक होम्योपैथिक, यूनानी और नेचुरोपैथी समेत हर तरह की पुराने चिकित्सा पद्धतियों को एक समान मान्यता देना चाहती थी, लेकिन मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया शुरू से ही इसका विरोध करते रहा.

डॉ. अनिल बंसल बताते हैं कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी एमसीआई के पक्ष में ही अपना फैसला दिया. इंटीग्रेटेड मेडिकल प्रैक्टिस को कानूनी अमलीजामा पहनाने के लिए आईएमसी एक्ट में बदलाव जरूरी था, जो कानूनन हो नहीं पा रहा था. इसीलिए भ्रष्टाचार के नाम पर एमसीआई को ही खत्म कर दिया गया और इसकी जगह पर नेशनल मेडिकल काउंसिल बना दिया गया है.

'झोलाछाप और क्वालिफाइड डॉक्टर्स होंगे एक समान'

डॉक्टर बंसल ने बताया कि एमसीआई के एक्ट 15 (2b) में स्पष्ट उल्लेख था कि कोई भी व्यक्ति बिना रजिस्ट्रेशन के प्रैक्टिस करते हुए पाए जाने पर एक साल की सजा या 1000 रुपये का जुर्माना या दोनों का प्रावधान था. लेकिन एनएमसी एक्ट के तहत इन सभी को मान्यता मिल जाएगा. वे बिना रजिस्ट्रेशन के ही प्रैक्टिस कर सकेंगे. इसे झोलाछाप डॉक्टरों को कानूनी सरंक्षण मिल जाएगा.

'50 वर्षों से चल रही थी लड़ाई'

डॉक्टर बंसल के मुताबिक पिछले 50 वर्षों से इंटीग्रेटेड कोर्स को लेकर कोर्ट में लड़ाई चल रही थी. यह मामला 1979 में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. दरअसल पंजाब में मुख्तारचंद नाम का एक आयुर्वेदिक डॉक्टर एलोपैथिक दवाई की प्रैक्टिस कर रहा था. पंजाब सरकार ने उसे प्रैक्टिस करने से रोक दिया. इसके बाद मुख्तारचंद सुप्रीम कोर्ट में चला गया.

इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 10 साल तक बहस चलती रही. 1999 में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ गया. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कह दिया कि एमसीआई एक्ट के तहत कोई भी आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, नेचुरोपैथी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर एलोपैथिक दवाई की प्रैक्टिस नहीं कर सकते.

डॉ. बंसल बताते हैं कि इस आदेश के बावजूद आयुर्वेदिक डॉक्टर की संस्था अयुर्वेदिक कॉउंसिल ने एक नोटिस निकाल दिया. जिसमें उन्होंने दावा किया कि वे भी अपने पाठ्यक्रम में एलोपैथ की पढ़ाई करते हैं. इसलिए एलोपैथिक दवाई की प्रैक्टिस करने का अधिकार उनका भी है.

अपने अधिकार को लेने के लिए आयुर्वेदिक वाले केरला हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के ऊपर केरला हाईकोर्ट ने आयुर्वेदिक डॉक्टरों के अपील को रद्द कर दिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट जज सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच में भी उनकी अपील को रद्द कर दिया गया. इतना कुछ होने के बावजूद एलोपैथिक प्रैक्टिस करते रहे.

दिल्ली हाईकोर्ट में भी लटका रहा मामला'

इसके बाद डॉ. अनिल बंसल ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और दिल्ली मेडिकल काउंसिल की तरफ से 2009 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की. वहां उन्हें बताया गया कि पहले हमें स्टेट हाई कोर्ट में जाना है. वहां से अगर कुछ नहीं हो पाता है तो फिर इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हो सकती है. डीएमए की तरफ से दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की. यहां यह मामला 7 सालों तक चलता रहा.

आखिरकार 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑर्डर दिया. इस ऑर्डर के तहत अल्टरनेट प्रैक्टिस करने वाले कोई भी डॉक्टर एलोपैथिक दवाई मरीजों को प्रिसक्राइब नहीं कर सकते. इसके बाद आयुर्वेदिक वाले डबल बेंच में गए. वहां से भी इनके आवेदन को रद्द किया गया. इसके बाद वे दोबारा सुप्रीम कोर्ट गए. 2016 में आयुर्वेदिक डॉक्टरों की संस्था ने अपने केस को मजबूती से रखने के लिए महंगे वकील हरीश साल्वे को खड़ा किया.

'हरीश साल्वे ने दिखाई बड़ी चालाकी'

डॉ. बंसल ने बताया कि इस मामले में भी हरीश साल्वे ने काफी चालाकी की. जब भी कोर्ट में सुनवाई की तारीख पड़ती थी वह किसी न किसी बहाने से कहीं चले जाते और तारीख लगातार आगे बढ़ते रहे. 5 महीने तक ऐसा ही चलता रहा. सुप्रीम कोर्ट के जिस बेंच में केस की सुनवाई हो रही थी, उस बेंच में जस्टिस वाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे. वह झोलाछाप डॉक्टर के बिलकुल खिलाफ थे.

'एनएमसी आने के साथ ही एमसीआई से जुड़े सारे मामले बंद'

डॉ. बंसल ने बताया कि अभी भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है क्योंकि अब केंद्र सरकार ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को निरस्त कर दिया है. उसकी जगह पर नेशनल मेडिकल कमिशन आ गया है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट का यह मामला अपने आप हो रद्द हो गया है क्योंकि यह पूरा मामला एमसीआई एक्ट के तहत ही नहीं रहा तो यह भी अपने आप ही खत्म हो गया. डॉ. अनिल बंसल ने बताया कि इस मामले को आगे बढ़ाया जाए, लेकिन एलोपैथिक डॉक्टरों की शीर्ष संस्थाओं ने इस मामले में दिलचस्पी लेना बंद कर दिया.

एनएमसी के आने से ये फर्क पड़ेगा

डॉ. अनिल बंसल ने बताया कि एनएमसी के अस्तित्व में आने के बाद क्वालिटी हेल्थ एजुकेशन सिस्टम प्रभावित होगा. इसका असर देश की स्वास्थ्य पर पड़ेगा. अभी तक एमबीबीएस की पढ़ाई कर डॉक्टर क्रीम बनकर बाहर आते थे, लेकिन अब आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, नेचुरोपैथी और इलेक्ट्रोपैथी जैसी अल्टरनेटिव प्रैक्टिस करने वाले लोग स्वास्थ्य व्यवस्था को खराब कर देंगे.

Last Updated : Oct 3, 2020, 7:23 PM IST
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