नई दिल्ली: राजधानी की राजनीति पूरी तरह से इन दिनों संत रविदास मंदिर के मुद्दे पर केंद्रित होती जा रही है. तमाम विपक्षी दल इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं. 10 अगस्त को रविदास मंदिर गिराए जाने के बाद सबसे पहले 'आप' ने इस पर सवाल उठाया था. अब 'आप' के ही वरिष्ठ नेता और दिल्ली सरकार में अनुसूचित जाति जनजाति मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने इसे लेकर बीजेपी को कटघरे में खड़ा किया है. इसके ठीक बाद दिल्ली प्रदेश कांग्रेस ने भी इस पर सवाल उठाया था. कार्यकारी अध्यक्ष राजेश लिलोठिया ने इसके लिए केंद्र सरकार को दलित विरोधी करार दिया.
बसपा प्रमुख ने उठाए सवाल
दलितों के मुद्दों पर मुखर रहने वाली बसपा प्रमुख मायावती ने इसमें केंद्र के साथ-साथ दिल्ली सरकार को भी कटघरे में खड़ा किया है. उन्होंने मांग की है कि दिल्ली और केंद्र सरकार मिलकर मंदिर को दोबारा बनवाएं. मंदिर के पुनर्निर्माण की दिशा में तो कोई कदम नहीं उठा रहा लेकिन इस मुद्दे ने सियासी रूप जरूर ले लिया है.
बीजेपी पर बरसे 'आप' के दलित नेता
'आप' इसे लेकर फिर मुखर हो गई है. इस बार 17 अगस्त को राजेंद्र पाल गौतम फिर से सामने आए और उनके साथ 'आप' के एससी-एसटी विंग के अध्यक्ष भी थे. दोनों इस मुद्दे पर बीजेपी पर जमकर बरसे थे. इसके अगले ही दिन 'आप' इस मुद्दे को लेकर बीजेपी मुख्यालय पहुंच गई और पुलिस के रोके जाने पर बीजेपी और डीडीए के विरोध में खूब नारेबाजी हुई.
संत रविदास की मूर्ति की जगह जाने से रोका
इसी दिन कांग्रेस पार्टी के 2 दलित चेहरे पीएल पुनिया और कुमारी शैलजा तुगलकाबाद में उस जगह पहुंचने के लिए निकले जहां संत रविदास की मूर्ति गिराई गई थी, लेकिन प्रशासन ने उन्हें वहां जाने से रोक दिया. इससे पहले इन लोगों ने प्रदर्शन किया और इसके लिए केंद्र को कटघरे में खड़ा किया.
दिल्ली में विधानसभा की 13 सीटें आरक्षित
अब देखने वाली बात होगी कि चुनाव से पहले रविदास मंदिर का मुद्दा सुलझता है या फिर 2020 के विधानसभा चुनाव में वोटों के ध्रुवीकरण का जरिया बन जाता है. इसका कारण है दिल्ली में विधानसभा की 13 सीटें आरक्षित हैं. वहीं आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर दलित वोटर जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.