नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अर्जी को खारिज कर दिया. याचिका में चुनाव आयोग के शिवसेना पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न के रोक लगाने के हाईकोर्ट के सिंगल बेंच के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि चुनाव आयोग चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 की प्रक्रिया के अनुसार मामले को आगे बढ़ाएगा.
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि भारत के चुनाव आयोग के समक्ष कार्यवाही पर कोई रोक नहीं होगी. इसलिए, भारत का चुनाव आयोग उसके समक्ष लंबित विवाद के फैसले के साथ आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र है.
उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे दोनों धड़ों ने पार्टी के नाम शिवसेना और उसके चुनाव चिह्न पर दावा किया है. हालांकि, ईसीआई ने 8 अक्टूबर को एक अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें दोनों खेमे को 'शिवसेना' पार्टी के नाम और प्रतीक का उपयोग करने से रोक दिया था. जब तक कि यह तय नहीं हो जाता कि दो प्रतिद्वंद्वी गुटों में से कौन उनका उपयोग करने का हकदार है.
सितंबर में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने चुनाव आयोग को शिंदे गुट द्वारा 'असली' शिवसेना के रूप में मान्यता देने और पार्टी के धनुष और तीर के प्रतीक का उपयोग करने की याचिका पर फैसला करने की अनुमति दी थी. शीर्ष अदालत ने ठाकरे खेमे की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें शिंदे खेमे के विधायकों की अयोग्यता के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दायर याचिका पर फैसला आने तक ईसीआई की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की गई थी.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की उस याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था, जिसमें शिवसेना पार्टी के नाम और तीर-धनुष के चुनाव चिह्न को फ्रीज करने के भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) के फैसले को चुनौती दी गई थी. ठाकरे ने एकल-न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी, जिसने ईसीआई के फैसले को बरकरार रखा था.
हालांकि, एकल न्यायाधीश ने कहा था कि यह पार्टियों के साथ-साथ आम जनता के हित में होगा. यदि ईसीआई चुनाव चिह्न और पार्टी के नाम के आवंटन से संबंधित कार्यवाही को यथासंभव शीघ्रता से तय करे. अपनी अपील में ठाकरे ने कहा कि एकल-न्यायाधीश इस बात की सराहना करने में विफल रहे कि चुनाव आयोग का आदेश "स्पष्ट रूप से अवैध, बिना अधिकार क्षेत्र के और गैर-कानूनी, कानून और तथ्यों दोनों में है. कहा गया कि फ्रीजिंग का आदेश पारित करते हुए आयोग ने यह मानकर कार्रवाई की है कि शिवसेना पार्टी के दो गुट हैं. दलील में तर्क दिया गया कि यह नहीं कहा जा सकता है कि पार्टी में दो गुट हैं, ईसीआई ने शिंदे और उनके खेमे के अन्य विधायकों के खिलाफ शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित अयोग्यता की कार्यवाही पर ध्यान दिए बिना अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया है.