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दिल्ली दंगा मामला: हाईकोर्ट ने माना योजनाबद्ध तरीके से फैलाई गई दहशत और असुरक्षा की भावना - दिल्ली दंगा मामला

दिल्ली दंगा मामले में उमर खालिद को दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) की तरफ से बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दिया कि दिल्ली दंगे के दौरान योजनाबद्ध तरीके से दहशत और असुरक्षा की भावना फैलाई गई.

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दिल्ली दंगा मामला
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Published : Oct 20, 2022, 6:39 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली दंगा मामले में आरोपी उमर खालिद की जमानत याचिका को खारिज (Umar Khalid Bail Dismissed) करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने यह माना कि दिल्ली दंगे (Delhi Violece) के दौरान योजनाबद्ध तरीके से दहशत और असुरक्षा की भावना फैलाया गया. जमानत याचिका पर फैसले के दौरान कोर्ट ने अपने आदेश में कई अहम बिंदुओं का उल्लेख किया. दिल्ली हाईकोर्ट (High Court On Delhi Violece) की तरफ से की गई टिप्पणी आगे आने वाले यूएपीए और दंगों के मामले में नजीर के तौर पर सामने आएगी.

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और रजनीश भटनागर की पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट तौर पर कहा कि यह राजनीतिक संस्कृति या लोकतांत्रिक विरोध नहीं था, बल्कि आतंकवादी गतिविधि थी. पहले से तय योजना के मुताबिक उत्तर-पूर्वी दिल्ली में रहने वाले लोगों की आवश्यक सेवाओं को बाधित करने और असुविधा पैदा करने के लिए जानबूझकर सड़कों को अवरुद्ध किया गया था. जिससे दहशत और असुरक्षा की भावना पैदा हुई.

हाईकोर्ट ने कहा कि महिला प्रदर्शनकारियों द्वारा पुलिस कर्मियों पर हमला किया गया. पुलिस का पीछा करना और लोगों को दंगे में शामिल करना पूर्व नियोजित योजना का हिस्सा है. यह प्रथम दृष्टया आतंकवादी कृत्य प्रतीत होता है. हाईकोर्ट ने कहा कि खालिद का नाम साजिश की शुरुआत से लेकर दंगों तक आया है. दंगे में इस्तेमाल किए गए हथियारों और हमले के तरीके और हिंसा से हुई मौतों से यह स्पष्ट होता है कि यह पूर्व नियोजित था.

ये भी पढ़ें : दिल्ली दंगे के मुख्य आरोपी उमर खालिद की जमानत खारिज

कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता ने अपने अमरावती के भाषण में अमेरिका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा का उल्लेख किया था. सीडीआर विश्लेषण से पता चलता है कि अपीलकर्ता और अन्य सह-आरोपियों के बीच दंगों के बाद एक के बाद एक कई कॉल किए गए थे. हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि इन दंगों की योजना दिसंबर 2019 से फरवरी 2020 तक हुई बैठकों में बनाई गई थी.

ये भी पढ़ें : हाईकोर्ट में दिल्ली पुलिस बोली, शाहीन बाग का धरना महिलाओं का स्वतंत्र आंदोलन नहीं था

वहीं, सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ प्रदीप शर्मा ने बताया कि न्याय की दृष्टि में प्रत्येक मामला अपने आप में एक अलग अस्तित्व रखता है. अलग-अलग साक्ष्यों घटनाओं की स्थितियों को देखते हुए न्यायमूर्ति अपना फैसला सुनाते हैं. दिल्ली हाई कोर्ट के वर्तमान फैसले में कई ऐसे महत्वपूर्ण बिंदु कोर्ट ने उल्लेखित किए हैं, जो आगे आने वाले यूएपीए के मामलों में नजीर के तौर पर काम करेंगे.

नई दिल्ली: दिल्ली दंगा मामले में आरोपी उमर खालिद की जमानत याचिका को खारिज (Umar Khalid Bail Dismissed) करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने यह माना कि दिल्ली दंगे (Delhi Violece) के दौरान योजनाबद्ध तरीके से दहशत और असुरक्षा की भावना फैलाया गया. जमानत याचिका पर फैसले के दौरान कोर्ट ने अपने आदेश में कई अहम बिंदुओं का उल्लेख किया. दिल्ली हाईकोर्ट (High Court On Delhi Violece) की तरफ से की गई टिप्पणी आगे आने वाले यूएपीए और दंगों के मामले में नजीर के तौर पर सामने आएगी.

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और रजनीश भटनागर की पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट तौर पर कहा कि यह राजनीतिक संस्कृति या लोकतांत्रिक विरोध नहीं था, बल्कि आतंकवादी गतिविधि थी. पहले से तय योजना के मुताबिक उत्तर-पूर्वी दिल्ली में रहने वाले लोगों की आवश्यक सेवाओं को बाधित करने और असुविधा पैदा करने के लिए जानबूझकर सड़कों को अवरुद्ध किया गया था. जिससे दहशत और असुरक्षा की भावना पैदा हुई.

हाईकोर्ट ने कहा कि महिला प्रदर्शनकारियों द्वारा पुलिस कर्मियों पर हमला किया गया. पुलिस का पीछा करना और लोगों को दंगे में शामिल करना पूर्व नियोजित योजना का हिस्सा है. यह प्रथम दृष्टया आतंकवादी कृत्य प्रतीत होता है. हाईकोर्ट ने कहा कि खालिद का नाम साजिश की शुरुआत से लेकर दंगों तक आया है. दंगे में इस्तेमाल किए गए हथियारों और हमले के तरीके और हिंसा से हुई मौतों से यह स्पष्ट होता है कि यह पूर्व नियोजित था.

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कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता ने अपने अमरावती के भाषण में अमेरिका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा का उल्लेख किया था. सीडीआर विश्लेषण से पता चलता है कि अपीलकर्ता और अन्य सह-आरोपियों के बीच दंगों के बाद एक के बाद एक कई कॉल किए गए थे. हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि इन दंगों की योजना दिसंबर 2019 से फरवरी 2020 तक हुई बैठकों में बनाई गई थी.

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वहीं, सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ प्रदीप शर्मा ने बताया कि न्याय की दृष्टि में प्रत्येक मामला अपने आप में एक अलग अस्तित्व रखता है. अलग-अलग साक्ष्यों घटनाओं की स्थितियों को देखते हुए न्यायमूर्ति अपना फैसला सुनाते हैं. दिल्ली हाई कोर्ट के वर्तमान फैसले में कई ऐसे महत्वपूर्ण बिंदु कोर्ट ने उल्लेखित किए हैं, जो आगे आने वाले यूएपीए के मामलों में नजीर के तौर पर काम करेंगे.

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