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अदालत ने सबूतों के अभाव में जेएनयू के पूर्व छात्र को बलात्कार के आरोप से बरी किया

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Published : Jul 27, 2023, 12:13 PM IST

दिल्ली की एक अदालत ने सबूतों के अभाव में जेएनयू के पूर्व छात्र नेता को बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया है. एएसजे पवन कुमार ने अपने फैसले में कहा कि अदालत का मानना है कि संदेह का लाभ आरोपी के पक्ष में जाता है, इसलिए, उसको बरी किया जाता है.

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नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने 2016 में साथी छात्रा के साथ बलात्कार के आरोपी पूर्व जेएनयू के छात्र और आल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) दिल्ली इकाई के पूर्व अध्यक्ष अनमोल रतन को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है. सहायक सत्र न्यायाधीश पवन कुमार उसके खिलाफ वसंत कुंज पुलिस स्टेशन में दर्ज मामले की सुनवाई कर रहे थे. छात्र पर 20 और 21 अगस्त, 2016 की मध्यरात्रि को जेएनयू के एक छात्रावास के कमरे में महिला के साथ बलात्कार करने का आरोप था.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी और पीड़िता जेएनयू में उच्च अध्ययन कर रहे थे और दोनों अलग-अलग छात्रावासों में रहते थे. एएसजे पवन कुमार ने अपने फैसले में कहा कि अदालत का मानना है कि संदेह का लाभ आरोपी के पक्ष में जाता है और इसलिए, आरोपी को बरी कर दिया जाता है.


अदालत ने पाया कि दुर्भाग्य से अभियोजन पक्ष की गवाही, गुणवत्ता और कारणों की कसौटी पर खरी नहीं उतरी. कथित घटना की पृष्ठभूमि पर ध्यान देते हुए कि यह घटना आधी रात के बाद छात्रावास के कमरे में हुई और देर रात ढ़ाई बजे तक जारी रही, जबकि छात्र संघ के चुनाव अगले महीने होने वाले थे और सभी दल अपने उम्मीदवारों की घोषणा करने वाले थे. अदालत ने कहा कि वादी की यह बताने में विफलता पर कुछ संदेह पैदा हुआ कि उसने पहले अवसर पर चिंता क्यों नहीं जताई.

ये भी पढ़ें: Firing at Tis Hazari Court: अदालत परिसर में सुरक्षा व्यवस्था पर फिर उठे सवाल, वकीलों ने कहा- सख्ती से की जाए जांच

इसमें कहा गया है कि अभियोजन पक्ष के बयान पर अधिक संदेह है कि जब आरोपी कमरे को बाहर से बंद किए बिना बाथरूम में गया तो पीड़िता कमरे से भाग गई. अदालत ने कहा कि जब वह कमरे से भाग रही थी तो पीड़िता ने कोई अलार्म नहीं बजाया और हॉस्टल के किसी अन्य निवासी से मदद नहीं मांगी. अदालत ने कहा कि इस तथ्य के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि जब वह पीड़िता का पीछा कर रहा था तो किसी भी निवासी ने आरोपी को चिल्लाते हुए नहीं सुना. अदालत ने कहा कि उसकी गवाही का एक दूसरे स्वतंत्र गवाह, सुरक्षा गार्ड ने खंडन किया था.

सुरक्षा गार्ड ने गेट पर आरोपी की मौजूदगी से इनकार किया, जो पीड़िता के बताए अनुसार उसका पीछा करते हुए वहां आया था. इसमें कहा गया है कि इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता को गेट पर अकेला क्यों छोड़ दिया और चाबी लेने के लिए वापस अपने कमरे में क्यों लौट आया. उसने गार्ड की मौजूदगी में निकास द्वार पर भी पुलिस को क्यों नहीं बुलाया. अदालत ने कहा कि जिस व्यक्ति से पीड़िता ने मदद मांगी थी, उससे पूछताछ नहीं की गई और मेडिको-लीगल केस (एमएलसी) में हॉस्टल के दूसरे कमरे में स्नान करने और कपड़े बदलने के बारे में उसके बयान की पुष्टि नहीं की गई.

अभियोजन पक्ष की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है कि पीड़िता ने अपने दोस्तों के साथ सुरक्षित वातावरण में अपराध स्थल से कोई पुलिस कॉल नहीं की थी. कोर्ट ने कहा कि एक आपराधिक मुकदमे में सभी उचित संदेहों से परे अभियुक्त के अपराध को साबित करने का दायित्व अभियोजन पक्ष पर रहता है और संदेह का लाभ, यदि कोई हो, आवश्यक रूप से अभियुक्त के पक्ष में जाना चाहिए.

ये भी पढ़ें: अदालत के काम पर प्रश्नचिह्न लगाना और दखलंदाजी मंजूर नहीं: दिल्ली कोर्ट


नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने 2016 में साथी छात्रा के साथ बलात्कार के आरोपी पूर्व जेएनयू के छात्र और आल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) दिल्ली इकाई के पूर्व अध्यक्ष अनमोल रतन को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है. सहायक सत्र न्यायाधीश पवन कुमार उसके खिलाफ वसंत कुंज पुलिस स्टेशन में दर्ज मामले की सुनवाई कर रहे थे. छात्र पर 20 और 21 अगस्त, 2016 की मध्यरात्रि को जेएनयू के एक छात्रावास के कमरे में महिला के साथ बलात्कार करने का आरोप था.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी और पीड़िता जेएनयू में उच्च अध्ययन कर रहे थे और दोनों अलग-अलग छात्रावासों में रहते थे. एएसजे पवन कुमार ने अपने फैसले में कहा कि अदालत का मानना है कि संदेह का लाभ आरोपी के पक्ष में जाता है और इसलिए, आरोपी को बरी कर दिया जाता है.


अदालत ने पाया कि दुर्भाग्य से अभियोजन पक्ष की गवाही, गुणवत्ता और कारणों की कसौटी पर खरी नहीं उतरी. कथित घटना की पृष्ठभूमि पर ध्यान देते हुए कि यह घटना आधी रात के बाद छात्रावास के कमरे में हुई और देर रात ढ़ाई बजे तक जारी रही, जबकि छात्र संघ के चुनाव अगले महीने होने वाले थे और सभी दल अपने उम्मीदवारों की घोषणा करने वाले थे. अदालत ने कहा कि वादी की यह बताने में विफलता पर कुछ संदेह पैदा हुआ कि उसने पहले अवसर पर चिंता क्यों नहीं जताई.

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इसमें कहा गया है कि अभियोजन पक्ष के बयान पर अधिक संदेह है कि जब आरोपी कमरे को बाहर से बंद किए बिना बाथरूम में गया तो पीड़िता कमरे से भाग गई. अदालत ने कहा कि जब वह कमरे से भाग रही थी तो पीड़िता ने कोई अलार्म नहीं बजाया और हॉस्टल के किसी अन्य निवासी से मदद नहीं मांगी. अदालत ने कहा कि इस तथ्य के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि जब वह पीड़िता का पीछा कर रहा था तो किसी भी निवासी ने आरोपी को चिल्लाते हुए नहीं सुना. अदालत ने कहा कि उसकी गवाही का एक दूसरे स्वतंत्र गवाह, सुरक्षा गार्ड ने खंडन किया था.

सुरक्षा गार्ड ने गेट पर आरोपी की मौजूदगी से इनकार किया, जो पीड़िता के बताए अनुसार उसका पीछा करते हुए वहां आया था. इसमें कहा गया है कि इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता को गेट पर अकेला क्यों छोड़ दिया और चाबी लेने के लिए वापस अपने कमरे में क्यों लौट आया. उसने गार्ड की मौजूदगी में निकास द्वार पर भी पुलिस को क्यों नहीं बुलाया. अदालत ने कहा कि जिस व्यक्ति से पीड़िता ने मदद मांगी थी, उससे पूछताछ नहीं की गई और मेडिको-लीगल केस (एमएलसी) में हॉस्टल के दूसरे कमरे में स्नान करने और कपड़े बदलने के बारे में उसके बयान की पुष्टि नहीं की गई.

अभियोजन पक्ष की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है कि पीड़िता ने अपने दोस्तों के साथ सुरक्षित वातावरण में अपराध स्थल से कोई पुलिस कॉल नहीं की थी. कोर्ट ने कहा कि एक आपराधिक मुकदमे में सभी उचित संदेहों से परे अभियुक्त के अपराध को साबित करने का दायित्व अभियोजन पक्ष पर रहता है और संदेह का लाभ, यदि कोई हो, आवश्यक रूप से अभियुक्त के पक्ष में जाना चाहिए.

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