नई दिल्ली: पूरे देश समेत राजधानी दिल्ली में इन दिनों राखी के त्योहार (Raksha Bandhan) को देखते हुए बाजारों में चहल-पहल पहले के मुकाबले अब बढ़ने लगी है. लोग भी शॉपिंग के लिए बाजारों का रुख कर रहे हैं. लेकिन जिस राखी पर पूरा त्योहार टिका है, उसे बनाने वाले कोरोना की मार (corona effect on Rakhi makers) झेल रहे हैं. आर्थिक तंगी की चलते न सिर्फ बाजारों में हालात खराब हैं बल्कि मजदूरों को मिलने वाला मेहनताना आधा हो गया है.
राखी एक ऐसा त्योहार है, जिसमें मजदूरों को काफी रोजगार मिलता था लेकिन कोरोना के बाद हालात बदल गये हैं. जिस पुरानी दिल्ली और यमुना पार के इलाकों में बड़ी संख्या में राखी बनाने का काम किया जाता था. वहां कोरोना की वजह से काम न के बराबर हो गया है.
सदर बाजार (Rakhi business sadar market) और उसके आसपास के इलाकों में इस बार राखी बनाने के व्यापार से जुड़े लोगों ने राखियां तो बनाई हैं लेकिन व्यापार पिछले वर्षों के मुकाबले इस साल नहीं है. जिसकी वजह से राखी बनाने वाले मजदूरों को निराशा हाथ लगी है.
हालांकि अभी राखी के त्योहार में कुछ दिन का समय बाकी है. ऐसे में व्यापारी और मजदूरों को उम्मीद है कि उनके द्वारा बनाई गई राखियां बिक जाएंगी और वो अपने परिवार का पालन पोषण कर सकेंगे.
कोरोना के कारण बदले हालातों की वजह से राखी बनाने वालों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. वह सड़क पर बैठकर ग्राहकों का इंतजार करते हैं और घर से बनाकर लाई रखियों की पैकिंग करके बेचने पर उन्हें पूरे दिन में बमुश्किल 200 रुपये ही प्रति व्यक्ति मिल पाता है. जो कि 4 लोगों के परिवार का पेट भरने के लिए भी काफी नहीं है. दूसरी तरफ महंगाई अपनी चरम सीमा पर है. सब्जी और दूध के दाम 50 रुपये के ऊपर हैं. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई का खर्चे के साथ बाकी चीजें अलग है।
कोरोना की वजह से तंगी की मार झेल रहे मजदूरों को दिन भर भूखा पेट रहकर काम करना पड़ रहा है.जो किसी त्रासदी से कम नही है.ऐसा मजदूरों को इसलिए भी करना पड़ रहा है.क्योंकि 200 रुपये के दिन भर की कमाई में या तो वह अपने बच्चों को दो वक्त का खाना मुहैया करा सकते हैं या खुद खाना खा सकते हैं.ऐसे में मजदूर अपने बच्चों को दो वक्त का खाना देने के लिए खुद दिन भर भूखे रहते हैं।
राखी बनाने वाले मजदूर मनोज ने बताया कि वर्तमान हालातों में राखी बनाने की लागत की बड़ी मुश्किल से निकल पा रही है, मेहनताना निकलना तो दूर की बात है. 12 राखियों के 1 पैकेट को बनाने में अमूमन 30 से 40 मिनट का समय लगता है. जिसकी लागत कच्चा माल महंगा होने की वजह से पहले का मुकाबले बढ़ गई है.
एक राखी को बनाने के लिए उसमें लगभग 5 आइटम को एक साथ जोड़ना पड़ता है. जैसे धागा, मोती, पंख के साथ और चीजें शामिल होती हैं. जबकि उसके बाद राखी की पैकिंग अलग से होती है. कुल मिलाकर देखा जाय तो 12 राखियों के पैकेट को बनाने में लगभग 17 से 20 का खर्चा (cast in rakhi making) आता है लेकिन बाजार में तंगी के चलते ये बमुश्किल अपनी लागत पर ही बिक पाती हैं. जबकि यही 12 रखियों का पैकेट रिटेलर और दुकानदार 120 रुपये में बेचते हैं.