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Delhi Govt vs LG: अब स्पेशलिस्ट को लेकर दिल्ली सरकार और LG के बीच टकराव, आगे क्या करेंगे केजरीवाल? - दिल्ली सरकार बनाम एलजी

दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव का एक नया मामला सरकार में तैनात "स्पेशलिस्ट" बन गए हैं. दिल्ली सरकार के अलग-अलग विभागों में तैनात 400 स्पेशलिस्ट को उपराज्यपाल ने सोमवार को हटाने का आदेश जारी किया है. इस पर सरकार ने कोर्ट जाने का निर्णय लिया है.

दिल्ली सरकार और LG के बीच टकराव
दिल्ली सरकार और LG के बीच टकराव
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Published : Jul 4, 2023, 3:51 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली में एक बार फिर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और एलजी वीके सक्सेना के बीच टकराव बढ़ता दिख रहा है. इस बार टकराव का कारण दिल्ली सरकार में तैनात "स्पेशलिस्ट" हैं, जिन्हें उपराज्यपाल ने नौकरी से हटाने का आदेश जारी कर दिया है. एलजी ने दिल्ली सरकार के अलग-अलग विभागों, बोर्ड आदि में तैनात 400 स्पेशलिस्ट की सेवाओं को अवैध करार देते हुए उनकी सेवा को समाप्त कर दिया है. एलजी के इस फैसले को केजरीवाल सरकार ने अदालत में चुनौती देने का निर्णय लिया है. सरकार का कहना है कि एलजी के पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है. उनका एकमात्र उद्देश्य हर दिन दिल्ली सरकार को पंगु बनाने के नए-नए तरीके खोजना है.

दिल्ली सरकार में सर्विसेज को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए गत माह केंद्र द्वारा अध्यादेश लाया गया था और इस अध्यादेश को भी दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. सरकार का कहना है कि जब तक सर्विसेज का अधिकार सरकार के पास नहीं होगा अधिकारी कैबिनेट के फैसले को नहीं मानेंगे. वे मनमानी तरीके से काम करेंगे.

अब सोमवार को दिल्ली सरकार के 23 प्रमुख विभागों में स्पेशलिस्ट के तौर पर काम पर रखे गए 400 से ज्यादा निजी लोगों को नौकरी से हटा दिया गया. यह लोग फेलो एसोसिएट, फेलो एडवाइजर, डिप्टी एडवाइजर स्पेशलिस्ट, सीनियर रिसर्च ऑफिसर, कंसल्टेंट के तौर पर दिल्ली सरकार को अपनी सेवाएं दे रहे थे. दिल्ली सरकार के सर्विस विभाग ने इन लोगों को नौकरी से हटाने की सिफारिश करते हुए एलजी के प्रस्ताव भेजा था, जिसे एलजी ने मंजूरी दे दी.

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ये भी पढ़ें: LG Vs Kejriwal: एलजी ने कहा- दिल्ली को मुफ्त की आदत, केजरीवाल बोले- आप बाहरी, लोगों का अपमान न करें

क्या कहते हैं कानून के जानकार: कड़कड़डूमा कोर्ट के अधिवक्ता मनीष भदौरिया का कहना है कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है. यहां किसी भी पद पर नियुक्ति के मामले में अधिकांश शक्तियां उपराज्यपाल के पास हैं. कुछ शक्तियां दिल्ली सरकार के पास भी हैं. लेकिन, किसी भी पद को सृजित करने के लिए दिल्ली सरकार को एलजी से अनुमति लेना अनिवार्य है. दिल्ली सरकार किसी पद को सृजित करने के लिए उसकी पूरी वैधानिकता के साथ एलजी को प्रस्ताव भेजती है फिर एलजी द्वारा आगे उस प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद ही किसी भी नए पद का सृजन हो सकता है.

अगर दिल्ली सरकार ने 400 पदों को बिना वैधानिक प्रक्रिया पूरी किए उपराज्यपाल व राष्ट्रपति की बिना अनुमति के सृजित किया था तो एलजी को इन्हें बर्खास्त करने का पूरा अधिकार है. इस मामले में अगर दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट में जाती है तो इन पदों को सृजित करने की पूरी वैधानिकता साबित करनी होगी.

मनीष भदौरिया, अधिवक्ता

नियुक्ति में कई प्रकार की गड़बड़ियां: सर्विसेज विभाग ने अपनी जांच में इन लोगों की नियुक्ति में कई प्रकार की गड़बड़ियां और कमियां पाई थी. यहां तक कि कई चयनित प्रत्याशी विज्ञापन और बताए गए शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव संबंधी जरूरी पात्रता मानदंडों को भी पूरा नहीं करते थे. बावजूद उन्हें नौकरी दी गई. संबंधित विभाग ने भी इन लोगों के द्वारा पेश किए गए वर्क एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट को वेरीफाई नहीं किया. कई मामलों में इन दस्तावेजों में भी हेराफेरी और फर्जीवाड़ा पाया गया. इसी को ध्यान में रखते हुए उपराज्यपाल ने ऐसे सभी विभागों, कॉरपोरेशन, बोर्ड, सोसायटी और स्वायत्त निकाय जिन पर दिल्ली सरकार प्रशासनिक अधिकार है, वहां बिना मंजूरी लिए विभिन्न पदों पर तैनात किए गए इन निजी लोगों को तुरंत नौकरी से हटाने के प्रस्ताव को स्वीकृति दी है.

ये भी पढ़ें: CM केजरीवाल को बड़ा झटका, LG ने सरकार के 400 सलाहकार, विशेषज्ञ, फेलो को किया बर्खास्त

नई दिल्ली: दिल्ली में एक बार फिर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और एलजी वीके सक्सेना के बीच टकराव बढ़ता दिख रहा है. इस बार टकराव का कारण दिल्ली सरकार में तैनात "स्पेशलिस्ट" हैं, जिन्हें उपराज्यपाल ने नौकरी से हटाने का आदेश जारी कर दिया है. एलजी ने दिल्ली सरकार के अलग-अलग विभागों, बोर्ड आदि में तैनात 400 स्पेशलिस्ट की सेवाओं को अवैध करार देते हुए उनकी सेवा को समाप्त कर दिया है. एलजी के इस फैसले को केजरीवाल सरकार ने अदालत में चुनौती देने का निर्णय लिया है. सरकार का कहना है कि एलजी के पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है. उनका एकमात्र उद्देश्य हर दिन दिल्ली सरकार को पंगु बनाने के नए-नए तरीके खोजना है.

दिल्ली सरकार में सर्विसेज को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए गत माह केंद्र द्वारा अध्यादेश लाया गया था और इस अध्यादेश को भी दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. सरकार का कहना है कि जब तक सर्विसेज का अधिकार सरकार के पास नहीं होगा अधिकारी कैबिनेट के फैसले को नहीं मानेंगे. वे मनमानी तरीके से काम करेंगे.

अब सोमवार को दिल्ली सरकार के 23 प्रमुख विभागों में स्पेशलिस्ट के तौर पर काम पर रखे गए 400 से ज्यादा निजी लोगों को नौकरी से हटा दिया गया. यह लोग फेलो एसोसिएट, फेलो एडवाइजर, डिप्टी एडवाइजर स्पेशलिस्ट, सीनियर रिसर्च ऑफिसर, कंसल्टेंट के तौर पर दिल्ली सरकार को अपनी सेवाएं दे रहे थे. दिल्ली सरकार के सर्विस विभाग ने इन लोगों को नौकरी से हटाने की सिफारिश करते हुए एलजी के प्रस्ताव भेजा था, जिसे एलजी ने मंजूरी दे दी.

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क्या कहते हैं कानून के जानकार: कड़कड़डूमा कोर्ट के अधिवक्ता मनीष भदौरिया का कहना है कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है. यहां किसी भी पद पर नियुक्ति के मामले में अधिकांश शक्तियां उपराज्यपाल के पास हैं. कुछ शक्तियां दिल्ली सरकार के पास भी हैं. लेकिन, किसी भी पद को सृजित करने के लिए दिल्ली सरकार को एलजी से अनुमति लेना अनिवार्य है. दिल्ली सरकार किसी पद को सृजित करने के लिए उसकी पूरी वैधानिकता के साथ एलजी को प्रस्ताव भेजती है फिर एलजी द्वारा आगे उस प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद ही किसी भी नए पद का सृजन हो सकता है.

अगर दिल्ली सरकार ने 400 पदों को बिना वैधानिक प्रक्रिया पूरी किए उपराज्यपाल व राष्ट्रपति की बिना अनुमति के सृजित किया था तो एलजी को इन्हें बर्खास्त करने का पूरा अधिकार है. इस मामले में अगर दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट में जाती है तो इन पदों को सृजित करने की पूरी वैधानिकता साबित करनी होगी.

मनीष भदौरिया, अधिवक्ता

नियुक्ति में कई प्रकार की गड़बड़ियां: सर्विसेज विभाग ने अपनी जांच में इन लोगों की नियुक्ति में कई प्रकार की गड़बड़ियां और कमियां पाई थी. यहां तक कि कई चयनित प्रत्याशी विज्ञापन और बताए गए शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव संबंधी जरूरी पात्रता मानदंडों को भी पूरा नहीं करते थे. बावजूद उन्हें नौकरी दी गई. संबंधित विभाग ने भी इन लोगों के द्वारा पेश किए गए वर्क एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट को वेरीफाई नहीं किया. कई मामलों में इन दस्तावेजों में भी हेराफेरी और फर्जीवाड़ा पाया गया. इसी को ध्यान में रखते हुए उपराज्यपाल ने ऐसे सभी विभागों, कॉरपोरेशन, बोर्ड, सोसायटी और स्वायत्त निकाय जिन पर दिल्ली सरकार प्रशासनिक अधिकार है, वहां बिना मंजूरी लिए विभिन्न पदों पर तैनात किए गए इन निजी लोगों को तुरंत नौकरी से हटाने के प्रस्ताव को स्वीकृति दी है.

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