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NCCSA First Meeting: सीएम केजरीवाल ने नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी की बुलाई पहली मीटिंग - दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी की पहली मीटिंग बुलाई है. दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास पर यह बैठक 20 जून को 12 बजे होगी. एक अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को लेकर मीटिंग बुलाई गई है.

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मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल
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Published : Jun 15, 2023, 5:10 PM IST

नई दिल्ली: केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश का विरोध कर रहे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 20 जून को अपने आवास पर नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस ऑथोरिटी की पहली मीटिंग बुलाई है. अध्यादेश में ही इस अथॉरिटी के गठन करने का जिक्र था. नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस ऑथोरिटी की यह बैठक उस दिन मुख्यमंत्री आवास पर दोपहर 12 बजे होगी.

मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों की मानें तो ऑथोरिटी की पहली बैठक में एक अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का मुद्दा अहम होगा. केंद्र सरकार ने 19 मई को दिल्ली सरकार में तैनात अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग, अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी बनाने की घोषणा की थी. जिसके अध्यक्ष दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं. मुख्यमंत्री का मानना है कि दिल्ली की जनता के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश की कई खतरनाक बातें अब सामने आने लगी हैं. इसमें कई ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिसके बाद दिल्ली की चुनी हुई सरकार का कोई मतलब नहीं रह गया है. उनका कहना है कि केंद्र ने अध्यादेश लाकर सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ही खारिज नहीं किया है, बल्कि दिल्ली सरकार को पूरी तरह से खत्म कर दिया है. अध्यादेश के अनुसार, अब मुख्य सचिव ये तय करेगा कि कैबिनेट का निर्णय सही है या गलत. इसी तरह, अगर सचिव को लगता है कि मंत्री का आदेश कानूनी रूप से गलत है तो वो मानने से इंकार कर सकता है. यह दुनिया में पहली बार हो रहा है कि सचिव को मंत्री का बॉस बना दिया गया है.

अधिकारियों के आदेश नहीं मानने के दो उदाहरण

अरविंद केजरीवाल ने इससे जुड़े दो उदाहरण भी साझा किया. उन्होंने कहा कि पहला मामला विजिलेंस सचिव से जुड़ा है. सर्विसेज मंत्री सौरभ भारद्वाज ने विजिलेंस सचिव को एक वर्क ऑर्डर दिया कि किस तरह से कार्य किया जाएगा, मगर विजिलेंस सचिव ने दिल्ली सरकार के अंदर खुद को एक स्वतंत्र प्राधिकारी घोषित कर दिया है. वो कह रहे हैं कि अध्यादेश के आने के बाद मैं दिल्ली की चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं हूं. एलजी के प्रति मैं बनाए गए प्राधिकरण के तहत ही जवाबदेह हूं. सीएम ने कहा कि इस तरह सरकार में रोजमर्रा के कार्य के लिए भी विजिलेंस सचिव का कहना है कि मेरा कोई बॉस नहीं है. मैं तो एक स्वतंत्र प्राधिकारी हूं.

झुग्गियां तोड़ने के खिलाफ दलीलें

सीएम ने दूसरा उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली में एक जगह झुग्गियां तोड़ी गई. दिल्ली सरकार के वकील ने झुग्गियां तोड़ने के खिलाफ बहुत कमजोर दलीलें दी. उसकी दलीलों को सुन कर ऐसा लगा रहा था कि वो दूसरी पार्टी से मिला हुआ है. इसके बाद संबंधित मंत्री ने सचिव को आदेश दिया कि हमें अगली सुनवाई में कोई अच्छा और वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त करना चाहिए. इस पर संबंधित सचिव फाइल में लिखती है कि अधिवक्ता की नियुक्ति का अधिकार मेरा है. मंत्री इसके लिए मुझे आदेश नहीं दे सकते है कि हमें किस अधिवक्ता को नियुक्त करना चाहिए. इस लिहाज से मैं मंत्री के आदेश को कानूनी रूप से सही नहीं मानता हूं और उनका आदेश खारिज करता हूं. सीएम केजरीवाल ने कहा कि इस तरह से हम सरकार कैसे चलाएंगे. अब तो हर सचिव यह तय कर रहा है कि मंत्री का कौन सा आदेश गैर-कानूनी है और कौन सा नहीं है.

सीएम अरविंद केजरीवाल के अनुसार अध्यादेश में एक प्रावधान के तहत मुख्य सचिव को शक्ति दी गई है कि वो यह तय करेगा कि कैबिनेट का कौन सा निर्णय कानूनी और गैर-कानूनी है. जबकि राज्य की कैबिनेट सुप्रीम होती है. जिस तरह से देश की कैबिनेट सुप्रीम होती है. मगर अब अगर मुख्य सचिव को यह लगेगा कि कैबिनेट का निर्णय गैर-कानूनी है तो वो उसे उपराज्यपाल के पास भेजेगा. इसमें उपराज्यपाल को यह शक्ति दी गई है कि वो कैबिनेट के किसी भी निर्णय को पलट सकता है. आज तक भारत और दुनिया के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि मंत्री के उपर सचिव को और कैबिनेट के उपर मुख्य सचिव को बैठा दिया गया हो.

यह चीज आज तक कभी नहीं हुई. केंद्र सरकार के इस अध्यादेश में यह भी प्रावधान है कि दिल्ली सरकार के अधीन जितने भी आयोग, सांविधिक प्राधिकरण और बोर्ड हैं, उन सभी का गठन अब केंद्र सरकार करेगी. इसका मतलब साफ है कि दिल्ली जल बोर्ड का गठन अब केंद्र सरकार करेगी तो अब केंद्र सरकार ही दिल्ली जल बोर्ड को चलाएगी. इसी तरह, दिल्ली परिवहन निगम, दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग का गठन अब केंद्र सरकार करेगी. दिल्ली में अलग-अलग विभाग और सेक्टर से जुड़े 50 अधिक आयोग हैं और उनका गठन अब केंद्र सरकार करेगी तो फिर दिल्ली सरकार क्या करेगी? फिर चुनाव ही क्यों कराया जाता है? यह बहुत ही खतरनाक अध्यादेश है.

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मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों की मानें तो ऑथोरिटी की पहली बैठक में एक अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का मुद्दा अहम होगा. केंद्र सरकार ने 19 मई को दिल्ली सरकार में तैनात अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग, अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी बनाने की घोषणा की थी. जिसके अध्यक्ष दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं. मुख्यमंत्री का मानना है कि दिल्ली की जनता के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश की कई खतरनाक बातें अब सामने आने लगी हैं. इसमें कई ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिसके बाद दिल्ली की चुनी हुई सरकार का कोई मतलब नहीं रह गया है. उनका कहना है कि केंद्र ने अध्यादेश लाकर सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ही खारिज नहीं किया है, बल्कि दिल्ली सरकार को पूरी तरह से खत्म कर दिया है. अध्यादेश के अनुसार, अब मुख्य सचिव ये तय करेगा कि कैबिनेट का निर्णय सही है या गलत. इसी तरह, अगर सचिव को लगता है कि मंत्री का आदेश कानूनी रूप से गलत है तो वो मानने से इंकार कर सकता है. यह दुनिया में पहली बार हो रहा है कि सचिव को मंत्री का बॉस बना दिया गया है.

अधिकारियों के आदेश नहीं मानने के दो उदाहरण

अरविंद केजरीवाल ने इससे जुड़े दो उदाहरण भी साझा किया. उन्होंने कहा कि पहला मामला विजिलेंस सचिव से जुड़ा है. सर्विसेज मंत्री सौरभ भारद्वाज ने विजिलेंस सचिव को एक वर्क ऑर्डर दिया कि किस तरह से कार्य किया जाएगा, मगर विजिलेंस सचिव ने दिल्ली सरकार के अंदर खुद को एक स्वतंत्र प्राधिकारी घोषित कर दिया है. वो कह रहे हैं कि अध्यादेश के आने के बाद मैं दिल्ली की चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं हूं. एलजी के प्रति मैं बनाए गए प्राधिकरण के तहत ही जवाबदेह हूं. सीएम ने कहा कि इस तरह सरकार में रोजमर्रा के कार्य के लिए भी विजिलेंस सचिव का कहना है कि मेरा कोई बॉस नहीं है. मैं तो एक स्वतंत्र प्राधिकारी हूं.

झुग्गियां तोड़ने के खिलाफ दलीलें

सीएम ने दूसरा उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली में एक जगह झुग्गियां तोड़ी गई. दिल्ली सरकार के वकील ने झुग्गियां तोड़ने के खिलाफ बहुत कमजोर दलीलें दी. उसकी दलीलों को सुन कर ऐसा लगा रहा था कि वो दूसरी पार्टी से मिला हुआ है. इसके बाद संबंधित मंत्री ने सचिव को आदेश दिया कि हमें अगली सुनवाई में कोई अच्छा और वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त करना चाहिए. इस पर संबंधित सचिव फाइल में लिखती है कि अधिवक्ता की नियुक्ति का अधिकार मेरा है. मंत्री इसके लिए मुझे आदेश नहीं दे सकते है कि हमें किस अधिवक्ता को नियुक्त करना चाहिए. इस लिहाज से मैं मंत्री के आदेश को कानूनी रूप से सही नहीं मानता हूं और उनका आदेश खारिज करता हूं. सीएम केजरीवाल ने कहा कि इस तरह से हम सरकार कैसे चलाएंगे. अब तो हर सचिव यह तय कर रहा है कि मंत्री का कौन सा आदेश गैर-कानूनी है और कौन सा नहीं है.

सीएम अरविंद केजरीवाल के अनुसार अध्यादेश में एक प्रावधान के तहत मुख्य सचिव को शक्ति दी गई है कि वो यह तय करेगा कि कैबिनेट का कौन सा निर्णय कानूनी और गैर-कानूनी है. जबकि राज्य की कैबिनेट सुप्रीम होती है. जिस तरह से देश की कैबिनेट सुप्रीम होती है. मगर अब अगर मुख्य सचिव को यह लगेगा कि कैबिनेट का निर्णय गैर-कानूनी है तो वो उसे उपराज्यपाल के पास भेजेगा. इसमें उपराज्यपाल को यह शक्ति दी गई है कि वो कैबिनेट के किसी भी निर्णय को पलट सकता है. आज तक भारत और दुनिया के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि मंत्री के उपर सचिव को और कैबिनेट के उपर मुख्य सचिव को बैठा दिया गया हो.

यह चीज आज तक कभी नहीं हुई. केंद्र सरकार के इस अध्यादेश में यह भी प्रावधान है कि दिल्ली सरकार के अधीन जितने भी आयोग, सांविधिक प्राधिकरण और बोर्ड हैं, उन सभी का गठन अब केंद्र सरकार करेगी. इसका मतलब साफ है कि दिल्ली जल बोर्ड का गठन अब केंद्र सरकार करेगी तो अब केंद्र सरकार ही दिल्ली जल बोर्ड को चलाएगी. इसी तरह, दिल्ली परिवहन निगम, दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग का गठन अब केंद्र सरकार करेगी. दिल्ली में अलग-अलग विभाग और सेक्टर से जुड़े 50 अधिक आयोग हैं और उनका गठन अब केंद्र सरकार करेगी तो फिर दिल्ली सरकार क्या करेगी? फिर चुनाव ही क्यों कराया जाता है? यह बहुत ही खतरनाक अध्यादेश है.

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