नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष समारोह की शृंखला के तहत शाम-ए-मौसीक़ी कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें उज़्बेकिस्तान के हवास (HAVAS) ग्रुप के कलाकारों ने गीत-संगीत की मनमोहक प्रस्तुतियां दी.
विश्वविद्यालय के इंटरनेशनल रिलेशंस कार्यालय ने रामानुजन कॉलेज के सहयोग से इस कार्यक्रम का आयोजन डीयू के वाइसरीगल लॉज के कान्वेंशन हाल में किया. कार्यक्रम का रोचक पहलु यह भी रहा कि विदेश की धरती से आए कलाकारों ने ठेठ भारतीय अंदाज में हिंदी में गीत गाए. कार्यक्रम से पूर्व दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि कलाकार दिलों और देशों को जोड़ने का काम करते हैं.
फिल्मों के माध्यम से जाना गया भारत
भारत और उज़्बेकिस्तान के संबंधों के बारे में चर्चा करते हुए कुलपति प्रो. योगेश सिंह कहा कि भारत को उज़्बेकिस्तान में फिल्मों के माध्यम से अधिक जाना गया. उन्होंने बताया कि जब यूएसएसआर था, उस समय भारतीय फिल्में भारत के साथ यूएसएसआर में भी रिलीज होती थी. उज़्बेकिस्तान के कलाकारों के कार्यक्रम की प्रस्तुति को लेकर उन्होंने सराहना करते हुए कहा कि हमारे दोस्त देश के कलाकारों द्वारा यहां कार्यक्रम प्रस्तुत करने पर हम उससे जुड़ाव महसूस करते हैं. कुलपति ने कहा कि हम चाहते हैं कि आने वाले समय में हमारे यहां से भी म्यूजिकल ग्रुप उज़्बेकिस्तान जाएं और दिल्ली विश्वविद्यालय के बच्चे भी वहां कार्यक्रम प्रस्तुत करें. कुलपति ने उज़्बेकिस्तान से आए कलाकारों का दिल्ली विश्वविद्यालय में आने पर स्वागत भी किया.
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कलाकारों ने जमाया रंग
कार्यक्रम के दौरान उज़्बेक भाई-बहनों की गायकी ने करीब 2 घंटे तक रंग जमाया और दर्शकों को बांधे रखा. गांधी जी के प्रिय गीत “वैष्णव जन तो तेने कहिए, जे पीर पराई....” से शुरू हुआ कार्यक्रम “मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है...” तक चलता रहा. इस दौरान हवास ग्रुप के डायरेक्टर रुस्तम एर्मातोवा के बड़े बेटे गुलोम्जनोव खाखरमोन, बड़ी बेटी गुलोम्जनोवा शाखनोजा, तथा छोटे बेटे गुलोम्जनोव दोस्तोनबेक और छोटी बेटी गुलोम्जनोवा रोबिया ने अपने गीत व संगीत के साथ एक दर्जन से अधिक गानों की प्रस्तुतियां दी. मेरा नाम जोकर फिल्म के गीत “जीना यहाँ मरना यहाँ, इसके सिवा जाना कहाँ...” से जहां भावुकता का रंग भरा तो वहीं “हर दिल जो प्यार करेगा, वो गाना गाएगा...” व “मैं शायर तो नहीं.” जैसे गीतों पर दर्शकों को गुनगुनाने और झूमने पर मजबूर कर दिया. फिल्मी गानों के साथ-साथ पियानो एवं वायलिन पर भी संगीत की रोचक प्रस्तुतियाँ दी.