नई दिल्ली: साहित्य अकादमी ने अपनी वेबलाइन साहित्य श्रृंखला के अंतर्गत अखिल भारतीय युवा लेखक सम्मेलन (All India Young Writers virtual Conference) का आयोजन किया. आभासी मंच पर आयोजित इस कार्यक्रम का उदघाटन मंत्री (संस्कृति), भारतीय उच्चायोग, यूके और नेहरू सेंटर, लंदन के निदेशक अमीश त्रिपाठी ने किया. वहीं उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता साहित्य अकादमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने की.
युवा पुरस्कार और नवोदय योजना की जानकारी
वर्चुअल माध्यम से आयोजित किए गए इस सम्मेलन की शुरुआत में अकादमी के सचिव के. श्रीनिवास राव ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि हर क्षेत्र में युवाओं की ऊर्जावान उपस्थिति उल्लेखनीय है. युवाओं को आध्यात्मिक पथ पर चलते हुए भी देखा जा सकता है. उन्होंने 24 भाषाओं में साहित्य अकादमी के युवा पुरस्कार और नवोदय योजना के बारे में भी जानकारी दी, जिसके तहत अकादमी युवा लेखकों की पहली पुस्तक प्रकाशित करती है. उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी अधिक से अधिक भारतीय भाषाओं में युवा लेखकों को प्रोत्साहित करती है.
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अच्छा लेखक बनने के लिए अच्छा पाठक बनना जरूरी
अमीश त्रिपाठी ने उद्घाटन भाषण में कहा कि एक अच्छा लेखक बनने के लिए एक उत्साही पाठक होना चाहिए और जितना संभव हो उतनी भाषाओं में साहित्य पढ़ना चाहिए. इसके अलावा एक लेखक को अपने साहित्यिक लेखन में दर्शन और गहन विचारों का समावेश करना चाहिए, जो समाज की भलाई में मदद कर सकें. उन्होंने आगे कहा कि पश्चिम में भी केवल लेखन से भरण-पोषण करना अब भी कठिन है, पैसा कमाने के लिए दूसरी तरह की नौकरी करनी पड़ती है, इसमें कोई अनादर नहीं है. अंत में उन्होंने इस ओर इशारा किया कि कोई भी किताब खुद नहीं बिकती है, इसकी अच्छी मार्केटिंग करना जरूरी है, लेकिन किसी का लेखन बिना किसी समझौते के होना चाहिए.
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अपनी जड़ों की खोज करें युवा लेखक
वहीं चंद्रशेखर कंबार ने उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष के रूप में बोलते हुए अपनी खुशी व्यक्त की कि कोविड 19 महामारी और इसके कारण हुए लॉकडाउन के दौरान भी लेखक एक साथ हैं. उन्होंने कहा कि उनकी मूल संस्कृति रचनात्मक लेखन के लिए उनकी प्रमुख प्रेरणा है. जिसने उन्हें अपने आप को शब्दों में व्यक्त करने में सक्षम बनाया, उन्होंने युवा लेखकों से अपनी जड़ों की खोज करने का प्रयास करने का सुझाव दिया, क्योंकि यही रचनात्मक अभिव्यक्ति की नींव है.
कई कविताओं का हुआ पाठन
सम्मेलन में रुजब मुशहारी (बोडो), अनुज लुगुन (हिंदी), सस्मिता अमृतराज (कन्नड़), गोविंद मोपकर (कोंकणी), सृष्टि पौडयाल (नेपाली), राजकुमार मिश्रा (संस्कृत) और आदिल फ़राज़ (उर्दू) ) ने अपनी कविताओं का पाठ किया और उनका हिंदी/अंग्रेजी में अनुवाद प्रस्तुत किया.