नई दिल्ली: सितंबर महीने से ही राजधानी दिल्ली में प्रदूषण लोगों की चिंताएं बढ़ा देता है. इस बार लॉकडाउन के चलते अब तक दिल्ली के एयर क्वालिटी इंडेक्स में रिकॉर्ड सुधार देखा गया है. मौसम की मेहरबानी के चलते इन दिनों भी स्थिति बेहतर है. हालांकि आने वाले दिनों के लिए भी एजेंसियां तैयार हैं. कहा जा रहा है कि इस बार प्रदूषण की रिपोर्टिंग और काउंटर दोनों पर काम किया जाएगा.
हो रही प्लानिंग
मिली जानकारी के मुताबिक़, पंजाब और हरियाणा की सरकारों ने पराली जलाने पर नियंत्रण के लिए अपनी कार्ययोजना पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए) को सौंप दी है. दिल्ली की अन्य एजेंसियों ने भी दिवाली और पराली दोनों को ध्यान में में रखते हुए अपनी प्लानिंग पहले ही शुरू कर दी है. दिल्ली की साउथ MCD ने तो ज़ोन-वाइज़ टीम गठन का भी इंतज़ाम कर लिया है. हालाँकि इसके बावजूद ये सवाल है कि क्या इस साल के प्रयास प्रदूषण के विस्तार को रोकने में कारगर होंगे.
एक नज़र
एक अनुमान के मुताबिक़, दिल्ली में पराली का धुआं 44 फ़ीसदी तक प्रदूषण लिए ज़िम्मेदार होता है. नवंबर-दिसंबर में दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है. हालात इस कदर खराब हो जाते हैं कि प्रदूषण का स्तर 1000 के पार तक चला जाता है. दिल्ली में कुल 13 हाट्स्पाट हैं जहां पर एजेंसियों को ख़ास मॉनिटरिंग करनी पड़ती है. वाहनों से होने वाला प्रदूषण भी यहाँ हवा की गुणवत्ता को ख़राब करने में महत्वपूर्ण योगदान निभाता है. ऐसे में हर साल की तरह इस साल भी बनने वाली स्थितियों से कैसे निपटा जाएगा सभी के दिमाग़ में बस यही एक सवाल है.
क्या कहते हैं जानकार
स्काईमेट वेदर के वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रदूषण पर नज़र रखने वाले महेश पलावत कहते हैं कि दिल्ली में प्रदूषण की मॉनिटरिंग बड़े लेवल पर है. यहाँ संसाधनों का इस्तेमाल कर भी प्रदूषण par रोक इसलिए भी नहीं लग पाती है क्योंकि इस समय हवाओं के रुख़ से लेकर लोगों की गतिविधियों तक सब प्रदूषण के लिए अनुकूल होता है. हालाँकि इस बार प्रयास बेहतर हैं. लॉकडाउन के दौरान इसमें गिरावट दर्ज की गई थी. इंडुस्ट्रीज़ बंद होने से इस पर बड़ा असर पड़ा लेकिन ज़रूरी काम करने भी होंगे.
तैयार हैं हम!
सवाल उठता है की प्रदूषण के लिए बन रही तमाम अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद हम लोग स्थितियों से निपटने के लिए कितने तैयार हैं. ख़ासकर तब जबकि देश एक महामारी से पहले ही लड़ रहा है.