नई दिल्ली: साहित्य अकादमी में मशहूर शायर मजरूह सुल्तानपुरी की 100वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक संगोष्ठी आयोजित की गई. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने की.
साथ ही उद्घाटन वक्तव्य साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष सदस्य गोपीचंद नारंग ने किया. अपने वक्तव्य में प्रोफेसर गोपीचंद नारंग ने कहा कि मजरूह सुल्तानपुरी एक सच्चे तरक्की पसंद और इंकलाबी शायर थे. उन्होंने अपने जीवन में अनेक अपेक्षाओं को सहा लेकिन अपनी बात कहने का फन नहीं बदला.
दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित
मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म 1 अक्तूबर, 1919 को हुआ था. उन्हें बीसवीं सदी के बेहतरीन शायरों में गिना जाता है. उन्होंने हिंदी फिल्मों में अपनी प्रसिद्ध गीतकार और उर्दू की लाजवाब शायरियों से चार चांद लगाए. उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. इसके साथ ही प्रोफेसर गोपीचंद ने शायर सुल्तानपुरी के जीवन से जुड़े कई प्रसंगों को याद किया. उन्होंने बताया कि गज़लों को कितना भी हुस्न और माशूक से जोड़ा जाता रहा. फिर भी वह अपने इंकलाब और आजादी के स्वर को अपने कलाम में पेश करते रहे.
कई हिंदी फिल्मों में पेश किया अपना हुनर
आपको बता दें मजरूह सुल्तानपुरी ने कई हिंदी फिल्मों में अपना शायरी का फन पेश किया. जिसमें से 'क्या कहना', 'बंबई का बाबू', 'कारवां', 'अनामिका', 'मिस्टर एंड मिसेज 55' आदि सहित कई शानदार फिल्में शामिल हैं.
साहित्य पर चर्चा
इस कार्यक्रम में उस दौर से जुड़े कई लेखक कवि और साहित्यकार शामिल हुए. जिन्होंने शायर मजरूह सुल्तानपुरी से जुड़े कई वाक्यों को साझा किया और उनके साहित्य और शायरी से जुड़ी बातों को याद करते हुए अपना वक्तव्य रखा.