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सिलिकॉन से तैयार की गई गुड़िया लूसी, जानें कैसे दूर करेगी लाखों बच्चों की मुश्किल

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Sep 24, 2023, 2:22 PM IST

सिलिकॉन से तैयार की गई 2500 ग्राम की नवजात बच्ची लूसी को सांस लेते और उसके धड़कते दिल को देखकर कोई भी कन्फ्यूज हो सकता है कि यह पुतला है या जिंदा बच्ची. दरअसल, यह एक नियोनेटल लंग सिमुलेटर सिलिकॉन बेबी है, जो डॉक्टर के प्रशिक्षण के काम आएगी.

सिलिकॉन से तैयार सिमुलेशन
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सिलिकॉन से तैयार सिमुलेशन

नई दिल्ली: ओखला स्थित इंद्रप्रस्थ इंस्टिट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (आईआईआईटी) में खुले मेडिकल कॉबोटिक्स सेंटर ने चिकित्सा जगत में बड़े बदलाव की उम्मीद जगाई है. इसके साथ ही स्वदेशी तकनीक की भी धाक जम रही है. इस सेंटर की स्थापना आईआईआईटी दिल्ली फाउंडेशन के आईहब अनुभूति और आईआईटी दिल्ली के टेक्नोलॉजी इन्नोवेशन हब की ओर से की गई है. शुक्रवार को यहां डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने डेमो देकर बताया कि किस तरह से यहां पर डॉक्टर को प्रशिक्षण दिया जाएगा. आईआईआईटी के डायरेक्टर डॉक्टर रंजन बोस ने कहा कि इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मेडिकल साइंस के सहयोग से मानव जीवन को आसान बनाने की यह पहल काफी सराहनीय है.

लूसी की धड़कन से संवरेगा बच्चों का जीवन

सिलिकॉन से तैयार की गई 2500 ग्राम की नवजात बच्ची लूसी को सांस लेते और उसके धड़कते दिल को देखकर कोई भी कन्फ्यूज हो सकता है कि यह पुतला है या जिंदा बच्ची. दरअसल, यह एक नियोनेटल लंग सिमुलेटर सिलिकॉन बेबी है, जो डॉक्टर के प्रशिक्षण के काम आएगी. इंद्रप्रस्थ इंस्टिट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (आईआईआईटी) में रखे गए सिलिकॉन के सिमुलेशन के माध्यम से मेडिकल के स्टूडेंट्स को गंभीर मरीज को वेंटिलेटर लगाने, उसका ऑक्सीजन लेवल नियंत्रित करने और दिल की धड़कनों को नियंत्रित करने का प्रशिक्षण दिया जायेगा.

गंभीर मरीजों को वेंटिलेटर लगाने की प्रक्रिया काफी जटिल होती है. नवजात बच्चों के मामले में यह और भी मुश्किल होता है. ऐसे में डॉक्टर बच्चों को वेंटिलेटर देने की प्रैक्टिस बच्चों पर नहीं कर सकते हैं. उन्हें इसके लिए काफी परफेक्ट होना पड़ता है. अभी तक यह प्रैक्टिस प्लास्टिक के पुतले पर की जाती थी, लेकिन उसमें समस्या यह होती थी कि बच्चे को एकदम ओरिजिनल रूप दे पाना मुश्किल था. आईआईआईटी में शुरू किए गए मेडिकल कॉबोटिक्स सेंटर में मावरिक कंपनी द्वारा तैयार किया गया सिमुलेशन रखा गया है. डॉक्टर इस पर बच्चों से संबंधित सभी मेडिकल प्रैक्टिस का अभ्यास कर सकते हैं.

यह होगा फायदा
मावरिक के को-फाउंडर डॉक्टर रितेज कुमार ने बताया कि भारत दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है, जहां मेडिकल के छात्र सिलिकॉन के सिमुलेशन पर प्रैक्टिस करेंगे. मावरिक ने पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से सभी सिमुलेशन को तैयार किया है. उन्होंने बताया कि लूसी को अभी फेफड़े और हृदय संबंधी बीमारी के लिए कस्टमाइज करके तैयार किया गया है. हम आने वाले समय में इस तरह के सिमुलेशन तैयार कर रहे हैं, जिस मानव शरीर से संबंधित सभी बीमारियों का इलाज और उसके लक्षण आदि समाहित होंगे. इससे डॉक्टर को मरीज को समझने में और उनका इलाज करने में बहुत आसानी हो जाएगी.

उन्होंने बताया कि इससे डॉक्टर अपना सिनेरियो लाइब्रेरी मेंटेन कर सकेंगे. विभिन्न हालत में किस तरह से इलाज किया जाए और उसका क्या रिजल्ट आता है इसका डाटा तैयार कर सकेंगे. प्रोग्रामिंग के माध्यम से कैसे को संशोधित कर सकेंगे और उनको दोबारा से टेस्ट कर सकेंगे. वाइटल साइन को रियल टाइम में चेक कर सकेंगे. इसकी मदद से डॉक्टर नवजात बच्चों के लंग मैकेनिक्स, हीमोडायनेमिक्स, रेस्पिरेटरी कंट्रोल, गैस एक्सचेंज और स्पेशल इफेक्ट्स का गहनता से अध्ययन कर सकेंगे.

मारविक की डायरेक्टर कनिका चहल ने बताया कि कंपनी ने सिलिकॉन का ऑस्क्यूलेशन टास्क ट्रेनर (एटीटी) तैयार किया है. इसके माध्यम से डॉक्टर बच्चों और बड़ों में हृदय, लंग और पेट संबंधी बीमारियों को अच्छे से समझ सकेंगे. स्टेथोस्कोप का प्रयोग करके संबंधित व्यक्ति के दिल की धड़कन और उसकी सांसों का पैटर्न और उनकी एक्यूरेसी को आसानी से समझ सकेंगे. इसके अलावा कंपनी ने नवजात बच्चों के पैरों को विशेष रूप से डिजाइन किया है. इनमें दो तरह के पैर हैं. एक में नसें नजर आ रही हैं और दूसरे में नसें नजर नहीं आ रही हैं. बच्चों को इंजेक्शन देते समय बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है. प्रैक्टिस में कमी या जरा सी लापरवाही से मासूम बच्चों को बहुत तकलीफ होती है और कई बार उनकी जान भी चली जाती है.

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उन्होंने बताया कि सिलिकॉन की यह बेबी सिमुलेशन बच्चों को इंजेक्शन देने की प्रैक्टिस के लिए बहुत काम आयेंगे. जिन बच्चों की नसे नजर नहीं आती है उनके पैर की हड्डियों में टीका या अन्य इंजेक्शन लगाया जाता है. यह बहुत तकलीफदेह होता है. ऐसे में यदि डॉक्टर ने अच्छी प्रैक्टिस नहीं की है या वह अपने काम में परफेक्ट नहीं है तो इंजेक्शन देने में बच्चों को बहुत पीड़ा होती है. इसलिए नस वाले और बिना नस वाले पैरों में बच्चों को इंजेक्शन देने की प्रैक्टिस इस पर किया जा सकता है. इसी तरह से बच्चों का ब्लड सैंपल लेना भी काफी दर्दनाक होता है. ब्लड निकलते समय बच्चों को बहुत तकलीफ होती है. लेकिन यदि अच्छे से प्रैक्टिस की गई है तो डॉक्टर के लिए या कम थोड़ा आसान हो जाता है.

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सिलिकॉन से तैयार सिमुलेशन

नई दिल्ली: ओखला स्थित इंद्रप्रस्थ इंस्टिट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (आईआईआईटी) में खुले मेडिकल कॉबोटिक्स सेंटर ने चिकित्सा जगत में बड़े बदलाव की उम्मीद जगाई है. इसके साथ ही स्वदेशी तकनीक की भी धाक जम रही है. इस सेंटर की स्थापना आईआईआईटी दिल्ली फाउंडेशन के आईहब अनुभूति और आईआईटी दिल्ली के टेक्नोलॉजी इन्नोवेशन हब की ओर से की गई है. शुक्रवार को यहां डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने डेमो देकर बताया कि किस तरह से यहां पर डॉक्टर को प्रशिक्षण दिया जाएगा. आईआईआईटी के डायरेक्टर डॉक्टर रंजन बोस ने कहा कि इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मेडिकल साइंस के सहयोग से मानव जीवन को आसान बनाने की यह पहल काफी सराहनीय है.

लूसी की धड़कन से संवरेगा बच्चों का जीवन

सिलिकॉन से तैयार की गई 2500 ग्राम की नवजात बच्ची लूसी को सांस लेते और उसके धड़कते दिल को देखकर कोई भी कन्फ्यूज हो सकता है कि यह पुतला है या जिंदा बच्ची. दरअसल, यह एक नियोनेटल लंग सिमुलेटर सिलिकॉन बेबी है, जो डॉक्टर के प्रशिक्षण के काम आएगी. इंद्रप्रस्थ इंस्टिट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (आईआईआईटी) में रखे गए सिलिकॉन के सिमुलेशन के माध्यम से मेडिकल के स्टूडेंट्स को गंभीर मरीज को वेंटिलेटर लगाने, उसका ऑक्सीजन लेवल नियंत्रित करने और दिल की धड़कनों को नियंत्रित करने का प्रशिक्षण दिया जायेगा.

गंभीर मरीजों को वेंटिलेटर लगाने की प्रक्रिया काफी जटिल होती है. नवजात बच्चों के मामले में यह और भी मुश्किल होता है. ऐसे में डॉक्टर बच्चों को वेंटिलेटर देने की प्रैक्टिस बच्चों पर नहीं कर सकते हैं. उन्हें इसके लिए काफी परफेक्ट होना पड़ता है. अभी तक यह प्रैक्टिस प्लास्टिक के पुतले पर की जाती थी, लेकिन उसमें समस्या यह होती थी कि बच्चे को एकदम ओरिजिनल रूप दे पाना मुश्किल था. आईआईआईटी में शुरू किए गए मेडिकल कॉबोटिक्स सेंटर में मावरिक कंपनी द्वारा तैयार किया गया सिमुलेशन रखा गया है. डॉक्टर इस पर बच्चों से संबंधित सभी मेडिकल प्रैक्टिस का अभ्यास कर सकते हैं.

यह होगा फायदा
मावरिक के को-फाउंडर डॉक्टर रितेज कुमार ने बताया कि भारत दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है, जहां मेडिकल के छात्र सिलिकॉन के सिमुलेशन पर प्रैक्टिस करेंगे. मावरिक ने पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से सभी सिमुलेशन को तैयार किया है. उन्होंने बताया कि लूसी को अभी फेफड़े और हृदय संबंधी बीमारी के लिए कस्टमाइज करके तैयार किया गया है. हम आने वाले समय में इस तरह के सिमुलेशन तैयार कर रहे हैं, जिस मानव शरीर से संबंधित सभी बीमारियों का इलाज और उसके लक्षण आदि समाहित होंगे. इससे डॉक्टर को मरीज को समझने में और उनका इलाज करने में बहुत आसानी हो जाएगी.

उन्होंने बताया कि इससे डॉक्टर अपना सिनेरियो लाइब्रेरी मेंटेन कर सकेंगे. विभिन्न हालत में किस तरह से इलाज किया जाए और उसका क्या रिजल्ट आता है इसका डाटा तैयार कर सकेंगे. प्रोग्रामिंग के माध्यम से कैसे को संशोधित कर सकेंगे और उनको दोबारा से टेस्ट कर सकेंगे. वाइटल साइन को रियल टाइम में चेक कर सकेंगे. इसकी मदद से डॉक्टर नवजात बच्चों के लंग मैकेनिक्स, हीमोडायनेमिक्स, रेस्पिरेटरी कंट्रोल, गैस एक्सचेंज और स्पेशल इफेक्ट्स का गहनता से अध्ययन कर सकेंगे.

मारविक की डायरेक्टर कनिका चहल ने बताया कि कंपनी ने सिलिकॉन का ऑस्क्यूलेशन टास्क ट्रेनर (एटीटी) तैयार किया है. इसके माध्यम से डॉक्टर बच्चों और बड़ों में हृदय, लंग और पेट संबंधी बीमारियों को अच्छे से समझ सकेंगे. स्टेथोस्कोप का प्रयोग करके संबंधित व्यक्ति के दिल की धड़कन और उसकी सांसों का पैटर्न और उनकी एक्यूरेसी को आसानी से समझ सकेंगे. इसके अलावा कंपनी ने नवजात बच्चों के पैरों को विशेष रूप से डिजाइन किया है. इनमें दो तरह के पैर हैं. एक में नसें नजर आ रही हैं और दूसरे में नसें नजर नहीं आ रही हैं. बच्चों को इंजेक्शन देते समय बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है. प्रैक्टिस में कमी या जरा सी लापरवाही से मासूम बच्चों को बहुत तकलीफ होती है और कई बार उनकी जान भी चली जाती है.

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उन्होंने बताया कि सिलिकॉन की यह बेबी सिमुलेशन बच्चों को इंजेक्शन देने की प्रैक्टिस के लिए बहुत काम आयेंगे. जिन बच्चों की नसे नजर नहीं आती है उनके पैर की हड्डियों में टीका या अन्य इंजेक्शन लगाया जाता है. यह बहुत तकलीफदेह होता है. ऐसे में यदि डॉक्टर ने अच्छी प्रैक्टिस नहीं की है या वह अपने काम में परफेक्ट नहीं है तो इंजेक्शन देने में बच्चों को बहुत पीड़ा होती है. इसलिए नस वाले और बिना नस वाले पैरों में बच्चों को इंजेक्शन देने की प्रैक्टिस इस पर किया जा सकता है. इसी तरह से बच्चों का ब्लड सैंपल लेना भी काफी दर्दनाक होता है. ब्लड निकलते समय बच्चों को बहुत तकलीफ होती है. लेकिन यदि अच्छे से प्रैक्टिस की गई है तो डॉक्टर के लिए या कम थोड़ा आसान हो जाता है.

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