नई दिल्ली: चुनाव आते ही यमुना के कायाकल्प की बात होती है. यह सिलसिला सालों से चला रहा है, लेकिन यमुना की सफाई असलियत में होती दिख नहीं रही है. अब जब केंद्र में नई सरकार के बने करीब 2 महीने होने को हैं और दिल्ली में नई सरकार के लिए करीब 6 महीने बाद चुनाव होने हैं, ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने यमुना किनारे पहुंची और वहां की स्थिति की जायजा लिया.
वादों में दम नजर नहीं आता!
यूं तो दिल्ली में यमुना के कई घाट हैं और कई जगह से लोग पुल के सहारे यमुना को पार करते हैं, लेकिन इनमें सबसे प्रमुख है, आईटीओ से लक्ष्मीनगर को जोड़ने वाला यमुना पुल. यहां से दिखने वाली यमुना की बदहाली की तस्वीर इसलिए भी मायने रखती है, क्योंकि यह जगह दिल्ली सचिवालय के बिल्कुल करीब है. जहां से दिल्ली की सरकार चलती है लेकिन यहां भी यमुना को सत्ता और व्यवस्था के करीब होने का फायदा नहीं मिला. यहां भी यमुना पानी कम, कूड़ा ज्यादा समेटे नजर आती है.
हाल ही में एक सीवर ट्रीटमेंट प्लांट के शिलान्यास के मौके पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक सुर में यमुना के कायाकल्प की बात कही थी, लेकिन पूर्व के ऐसे वादे और उनकी हकीकत देखें, तो इस वादे में भी दम नजर नहीं आता. कई रिपोर्ट में यह बात साफ हो चुकी है कि यमुना में पानी नहीं, केवल कूड़ा करकट बचा है. पानी जैसा जो कुछ दिखता है, वह भी अब पानी नहीं है, क्योंकि उसमें अब थोड़ा भी ऑक्सीजन नहीं बचा है.
यमुना को 15 वां स्थान
2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो गंगा के कायाकल्प के इरादे के साथ एक अलग से मंत्रालय ही बना दिया गया, तब यमुना की स्थिति में भी सुधार की उम्मीद जगी थी. लेकिन 5 साल बाद फिर से उन वादों के दोहराने से स्थिति साफ हो गई. 2015 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने भी यमुना की स्थिति में सुधार का वादा किया था. पार्टी की तरफ से जारी किए गए 70 प्वाइंट एक्शन प्लान में यमुना को 15 वां स्थान मिला था, लेकिन साढ़े चार साल की सरकार के बाद भी यमुना की स्थिति में सुधार नहीं दिखता है.
'इंटरसेप्टर सीवर परियोजना का काम पूरा'
हालांकि आम आदमी पार्टी दावा करती रही है कि उन्होंने यमुना की सफाई के लिए इंटरसेप्टर सीवर परियोजना का 92 फीसदी काम पूरा कर लिया है, करीब 110 एमजीडी गंदे नाले के पानी को यमुना में प्रवाहित होने से रोका जा रहा है. इधर दिल्ली जल बोर्ड द्वारा भी यमुना के कायाकल्प की योजनाओं के दावे किए जाते रहे हैं. दिल्ली सरकार ने 2019 के अपने बजट में यमुना में गिरने वाले गंदे पानी और ठोस कचरे के प्रबंधन के लिए अलग से 75 करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया है. लेकिन दिल्ली सचिवालय के समीप ही यमुना की बदतर स्थिति देखकर लगता नहीं कि ये वादे और योजनाएं जमीनी अमली जामा पहन रही हैं.
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के शुरू होने के बाद से ही दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच सामंजस्य की स्थिति दिख रही है. अब देखने वाली बात यह होगी कि केंद्र और राज्य के बीच का सुखद संबंध भी यमुना की स्थिति सुधारने में सहायक हो पाता है या नहीं, या फिर 6 महीने बाद यमुना नए कलेवर में परोसे जा रहे पुराने वादों और सपनों की साक्षी बनकर ही रह जाती है.