नई दिल्ली/गाजियाबाद: सन् 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में भारत के कई वीरों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. उनके बारे में आज भी बहुत कम लोग जानते हैं. इन्हीं जाबाजों में से एक थे गाजियाबाद के रतन सिंह, जिन्हें सन् 1999 में थल सेनाध्यक्ष ने सम्मानित किया था. इस युद्ध में उन्होंने दुश्मनों के हौसले पस्त कर दिए थे. जब वे शहीद हुए तो उनका ढाई साल का एक बेटा भी था, लेकिन उनके शहीद होने के बाद उनकी पत्नी लीवावती ने जिंदगी की जंग लड़कर न सिर्फ घर को संभाला, बल्कि बेटे को भी पढ़ा लिखाकर काबिल बनाया.
लीलावती ने बताया कि पति की शहादत के समय उनकी उम्र मात्र 20 साल थी. गोद में ढाई साल के बेटे को पालना काफी चुनौतीपूर्ण था, लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने 35 साल नौकरी कर बेटे का पालन पोषण किया. जब उनका बेटा पांच वर्ष का हुआ तो उसने अपने पिता के बारे में पूछना शुरू किया. उस समय वो बेटे से कह दिया करती थीं कि तुम्हारे पिता ड्यूटी पर हैं और मन लगाकर पढ़ाई करोगे तो वे जल्दी घर लौट आएंगे. उन्होंने करीब दो साल तक बेटे से यह बात छुपाकर रखी.
एक दिन उनके बेटे ने जब पिता के घर न आने के बारे में जानने की जिद की, तब उन्होंने बताया कि तुम्हारे पिता युद्ध में देश के लिए शहीद हो चुके हैं. यह सुनते ही उनका बेटा अचानक जमीन पर गिर गया और कई दिनों तक सदमे में रहा. इसके बाद उन्होंने बेटे को समझाया कि जिंदगी की लड़ाई से पीछे नहीं हट सकते और तुम्हें अभी कामयाब बनना है. वहीं, परिवार वालों ने लीलावती को नई जिंदगी शुरू करने के लिए काफी दबाव डाला, लेकिन उन्होंने यह कहकर सबको खामोश कर दिया कि जिंदगी में शादी सिर्फ एक बार होती है.
फिलहाल उनके पुत्र संजय कुमार की उम्र लगभग 50 वर्ष है और वे कस्टम्स और सेंट्रल एक्साइज विभाग में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. संजय कुमार बताते हैं कि उनकी ख्वाहिश भी पिता की तरह सेना में शामिल होकर दे की सेवा करने की थी. वे कई बार भर्ती प्रकिया में शामिल भी हुए, लेकिन किसी कारणवश उनका सेलेक्शन नहीं हो पाया. उन्होंने कहा कि वे अपने पिता पर बहुत गर्व करते हैं क्योंकि उनके पिता की शहादत को आज समाज में शौर्य के प्रतीक के रूप में जाना जाता है.
यह भी पढ़ें-Independence day Special: 'तिंरगा' ड्रेस से बनाए स्वतंत्रता दिवस को खास, अपने लुक में ऐसे लगाएं चार चांद